रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण ना देने के बेबुनियादी कारण
रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण ना देने के बेबुनियादी कारण
पिछले कुछ दिनों से रोहिंग्या शरणार्थियो को लेकर काफी चर्चा है। रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार से आये लोग है। वैसे शरणार्थियों के धर्म की चर्चा करना निरर्थक है फिर भी आपको बता दें कि अधिकांश रोहिंग्या मुसलमान हैं।
पिछले साल अक्टूबर में कई सशस्त्र लोगो ने म्यांमार बांग्लादेश सीमा पर म्यांमार की सीमा सुरक्षा बल पर हमला किया था जिसमे हमलावरों के अलावा 10 सैनिक मारे गए थे। म्यांमार सरकार के अनुसार यह हमला अका मुल मुजाहदीन नामक संगठन ने किया जो रोहिंग्यास के बीच आधारित है और इसके जवाब में रोहिंग्यास पर बड़े पैमाने पर हमला किया गया। लाखों रोहिंग्या परिवारों को अपनी जान बचा कर भागना पड़ा। रोहिंग्या लोगों के खिलाफ यह हिंसा और भेदभाव नए नहीं है। सैंकड़ो सालों से म्यांमार में रहते हुए भी इन्हें आजतक यहाँ की नागरिकता प्राप्त नहीं हुई है। पिछले सालों में हुई हिंसा में हजारों रोहिंग्या लोगों के घर जलाये गए है और हजारों मारे गए हैं। कई परिवार, जो अपनी जान बचा कर शरण लेने के लिए भाग रहे थे, इस प्रक्रिया में बच्चों समेत नदी में डूबकर मर गए।
आज सरकार इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय जा रही है कि इन्हें गैरकानूनी घोषित किया जाए ताकि 40000 रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजा जा सके। सोशल मीडिया पर भी लोग उनको वापस भेजने के कारण गिना रहे हैं। आईये एक नज़र इन कारणों पर डालें।
सोशल मीडिया पर काफी लोग लिख रहे हैं कि 50 से ज्यादा मुस्लिम देश हैं वो रोहिंग्या शरणार्थियो को शरण क्यों नहीं देते। कहने का अर्थ है भारत क्यों दे ? मुसलमान देश मुसलमानों को शरण दें। अब कोई इनसे पूछे कि शरण देने का आधार मानवता की जगह धर्म कब से हो गया। इतिहास में शरणार्थी समस्या का आधार धर्म कब से होने लगा? हम तो सोचते थे की शरण देने का आधार मानवता होता है।
रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण ना देने का दूसरा आधार बताया जा रहा है कि वह आतंकवादी हैं। उनसे देश की सुरक्षा को खतरा है। भारत में कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों के कैंप दिल्ली, जयपुर, नूह( हरियाणा), जम्मू चेन्नई और हैदराबाद में हैं। क्या कहीं पर किसी रोहिंग्या शरणार्थी पर आतंकवाद सम्बन्धी कोई मामला चल रहा है? अगर कुछ रोहिंग्यास पर आतंकवाद का मामला चल भी रहा है तो क्या किसी समुदाय को कुछ आतंकवादी तत्वों की वजह इस तरह आतंकवादी घोषित करना वाजिब है। क्या यह समुदाय आतंकवादी है या आतंकवाद से पीड़ित है?
तीसरा कारण लोग कह रहे हैं कि हमारी आर्थिक हालत ख़राब है और हम शरणार्थियों का बोझ नहीं उठा सकते। अगर यह कारण है तो ऐसा कहो ना। अपनी ख़राब आर्थिक हालात के लिए किसी को आतंकवादी क्यों कह रहे हो। वैसे पूरी दुनिया में अपनी आर्थिक प्रगति की गाथाएं गाने वालों की आर्थिक हालात इतनी कब से ख़राब हो गयी।
वसुधैव कटुम्बकम का नारा देने वाले अपने पड़ोसियों से ही नाता तोड़ रहे हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों के मामलें में यह सभी बहाने बेबुनियाद हैं और हमारी अपनी ही प्रतिबद्धता और अपने ही दिशानिर्देशों के खिलाफ है।
अब यहाँ प र इनकी मदद की जगह इन्हें आतंकवादी कहा जा रहा है।
हम सब एक बात याद रखें कि रोहिंग्यास को गैरकानूनी घोषित कर के उन्हें म्यांमार वापस भेजना उन्हें मौत के मूंह में धकेलना जैसा होगा और अपनी नैतिक जिम्मेदारी से मूंह मोड़ना जैसा होगा।
(लेखक डेवलेपमेंट प्रोफेश्नल के रूप में कार्यरत हैं और पिछले कई सालों से बाल अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।)


