इंसाफ की जंग में रोहित वेमुला की शाहादत से उभरे सवाल डॉ. अनिल कुमार पुष्कर हैदराबाद विवि में रोहित वेमुला की राजनैतिक हत्या को आत्महत्या मान लेने बेहेद आसान है। मगर यह मानने में उसकी शाहादत को हम सभी जानने-अनजानने काायर्ता, बुनियादी कमजोरी, अवसाद, आदिवासी संज्ञाओं से आंकेंगे। यह कहना अपने आप में दलित तबके के भीतर आर्थिक विपन्नता, और बुनियादी जरूरतों से अभावग्रस्त रोहित वेमुला जैसे तमाम लोगों को, जो जातीय और वर्गीय संघर्षों के बीच अपने ही की लजाई लजा रहे हैं, दलित होने का सामाजि‍क, राजनैतिक दंश झेल रहे हैं। उन सभी को सामाजि‍क तोर से बेइज्जत करना है।

इस आत्महत्या के पीछे दो कारण बताए जा रहे हैं। पहला कारण है याकूब मेनन की फांसी के विरोध में अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा प्रदर्शन। दूसरा कारण एबीवीपी के छात्रों के साथ झड़प।

क्या इन दो कारणों से कोई जागरूक और सामाजि‍क हितों को लेकर आंदोलित छात्र आत्महत्या कर सकता है? इस बात की गहराई में जाने पर कई सवाल अनायास ही उठते हैं, जैसे याकूब की फांसी के विरोध में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्रों के द्वारा चुने हुए कुछ छात्रों को विवि से बहिष्कृत कर दिया। ऐसे में जो भी सामाजि‍क या छात्र संगठनों के बीच अपने ही की लजाई लजा रहे हैं, दलित होने का सामाजि‍क, राजनैतिक दंश झेल रहे हैं।

उन सभी को सामाजि‍क तोर से बेइज्जत करना है। बिलकुल साक्ष है कि राजनैतिक तोर से आंदोलनों को नुक़सान पहुँचाने, संगठनों को को डरा देने, धमकाने और कुछ छात्रों को जो कि आर्थिक तोर से कमज़ोर हैं, दलित कम्युनिटी से आते हैं। उनके साथ अन्याय पूर्ण फैसले लिए गए।