नागपुर पाठशाला का सिलेबस दलित, मुस्लिम, पिछड़ा और स्त्री विरोधी है
रोहित वेमुला : रफ्ता-रफ्ता असहिष्णुता और आपातकाल
विवेक दत्त मथुरिया
हैदराबाद में एकलव्यी प्रतिभा के धनी दलित छात्र रोहित वेमुला द्वारा जिन हालातों के चलते आत्महत्या को मजबूर होना पड़ा, वह समाज और व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करती है।
आत्महत्या अकारण नहीं होती है। जब आत्महत्या की खुली वजह मौजूद हैं, फिर दोषियों को लेकर राजनीति करना कानून के राज और लोकतांत्रिक मूल्यों की खुली अवमानना है। रोहित वेमुला के सुसाइड नोट की भाषा सत्ताथीशों की समझ में नहीं आ सकती, क्योंकि वे हर बात को घर्म और जाति के नजरिए से देखने के आदी हैं।
श्रम मंत्री बंगारू दत्तात्रेय और एचआरडी मंत्रालय के आदेश-निर्देशों में प्रभावी तत्परता बहुत कुछ कहती है। इतने पर भी अपनी चिर-परचित शैली में मोदी सरकार और भाजपा कुतर्क गढ़ रही है। विडंबना यह है कि दलितों की मसीहाई करने का दावा करने वाले रामविलास पासवान, उदित राज जैसे सत्ताथारी दलित नेता मौन हैं और मायावती भी।
नागपुर पाठशाला का सिलेबस दलित, मुस्लिम, पिछड़ा और स्त्री विरोधी है। उसी पाठशाला के छात्र आज देश की सत्ता का संचालन कर रहे हैं। तब ऐसे में इंसाफ की कामना करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है।

जातीय असहिष्णुता का शिकार हुआ है रोहित वेमुला
नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसारे, कुलबर्गी, और अब रोहित वेमुला असहिष्णुता के प्रमाण नहीं तो क्या है? एक अघोषित आपातकाल टुकड़ों-टुकड़ों में लागू किया जा रहा है। आज देश का बुनियादी तबका अच्छे दिनों के विलोम का अभिशाप और त्रास भोग रहा है। देश के गाल बजाउ भाड़ बुद्धिजीवी और कॉरपोरेट मीडिया कुतर्कों के सहारे असहिष्णुता के खतरे को नकारने की कथित कोशिश में जुटा है। दूसरी और कॉरपोरेट घराने लूट में व्यस्त हैं। रोहित वेमुला जातीय असहिष्णुता का शिकार हुआ है।
बड़ा सवाल भाजपा और आरएसएस से है कि वे आखिर 21वी के भारत को किस सामाजिक और राजनीतिक अर्थशास्त्र से संचालित करना चाहते हैं? ताकि देश की जनता भी अपना एजेंडा तय कर सके और फिर कोई रोहित वेमुला आत्महत्या जैसा कायराना कदम उठाने को मजबूर न हो। रोहित प्रकरण को लेकर मोदी सरकार, संघ और भाजपा की ओर से जिस तरफ की सियासी बयानबाजी हो रही है, उससे उनके नागपुर की पाठशाला के ब्राह्मणवादी संस्कारों की ही पुष्टि हो रही है। तब ऐसे में टुकड़ा-टुकड़ा असहिष्णुता और रफ्ता-रफ्ता आपातकाल के खतरे को नकारा नहीं जा सकता। आडवाणी तो इसके लिए देश को पहले ही आगाह कर चुके हैं, आखिर आडवाणी उसी पाठशाला के छात्र रहे हैं। उनका सच ज्यादा मायने रखता है।
रोहित वेमुला इंसाफ की कामना मत करना आखिर मसला सत्ता और सियासत की भेट चढ़ चुका है। तुम 'निर्भया' कांड के पूरे सच से तो वाकिफ थे न!

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