सबिता विश्वास

WASHINGTON: A bipartisan Bill was on Thursday reintroduced in the US Congress to make companies that move call centres overseas ineligible for grants or guaranteed loans from the government, a move aimed at curbing the transfer of jobs to nations like India.

राष्ट्रपति डान डोनाल्ड ट्रंप मुसलमानों के खिलाफ नस्ली जिहाद का ऐलान करके इस ग्लोब पर काबिज हैं और ग्लोबल विलेज में आबाद आदम हव्वा की संताने उनके रहमोकरम पर जिंदा हैं। बाकी फिजां कयामत है। यह कयामती फिजां इन दिनों ग्लोबल हिंदुत्व है। उनकी ताजपोशी के बाद मुसलमानों के सफाया हुआ हो या न हुआ हो, अमेरिका में और अमेरिका से बाहर अश्वेत नस्लों के लिए आपदाएं सुनामी में तब्दील है और तीसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया है।

राम की सौगंध लेकर जिन लोगों ने इस देश को अमेरिकी उपनिवेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उनके धर्म-कर्म का नतीजा यह है कि श्वेत-अश्वेत विश्वयुद्ध में हिंदुओं का भी बेड़ा गर्क हो रहा है।

बहरहाल अमेरिका में कुक्लाक्स क्लान राजकाज में चुनाव से पहले हिदुओं के बारे में डान के बयानों के उलट हिंदुओं के प्रति मुसलमानों की तुलना में कोई नरमी बरतने वाली है, इसका सबूत अभी तक नहीं मिला है।

इसके उलट गौरतलब है कि अमेरिका में पिछले सप्ताह एक भारतीय इंजीनियर की हत्या के बाद अब एक भारतीय मूल के 43 वर्षीय कारोबारी की हत्या कर दी गयी है।

मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि साउथ कैरोलीना के घर में भारतीय मूल के एक बिजनेस मैन की हत्या गोली मार कर कर दी गयी।

शनिवार को भारतीय मूल के व्यापारी हरनीश पटेल रात 11.24 बजे अपनी दुकान बंद की और मात्र उसके 10 मिनट बाद लैंकेस्टर स्थित उनके घर के बाहर उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गयी।

इस पर खास तौर पर गौर करें कि पटेल की हत्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा 32 वर्षीय भारतीय इंजीनियर श्रीनिवास कुचिभोटला की हत्या की निंदा किये जाने के दो बाद ही की गयी है। 22 फरवरी को कैंसस में श्रीनिवास कुचिभोटला की हत्या गोली मार कर दी गयी थी।

भारत को वीसा देने के मामले में ओबामा जनमाने की छूट और रियायतें खत्म हैं। कैंसस में भारतीय इंजीनियर की हत्या के बाद हम सदमे से उबर भी नहीं सके हैं कि ताजा खबर यह है कि अमेरिकी संसद कानून बना रही है आउटसोर्सिंग खत्म करने के लिए और हमारे बच्चों ने ज्ञान की खोज के बदले तकनीक अपना ली है, 26 साल से तकनीक के अलावा कुछ नहीं सीखा!

संवैधानिक पद से ज्ञान, उच्च शिक्षा, शोध और विश्वविद्यालयों के हार्वर्ड के खिलाफ मुक्तबाजारी तकनीकी हार्डवायर साफ्टवायर का रोजगार है और उत्पादन प्रणाली में श्रम की कोई भूमिका नहीं है।

उत्पादन संबंध तमाम खत्म है और स्वदेश में रामंदिर निर्माण के हिंदुत्व एजेंडे के तहत भारत में देहात और जनपदों का सफाया है और सत्ता वर्ग की तकनीक समृद्ध क्रयक्षमता के मुकाबले बहुसंख्य जनता जीजीजीजीजी क्रांति के तहत मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट से जुड़ने के बावजूद तकनीक के तमाम जोखिम से निबटने में अक्षम और अदक्ष हैं और नकदी पर अभूतपूर्व नियंत्रण की वजह से क्रय क्षमता से वंचित होने के साथ साथ अब रोजगार और आजीविका से भी वंचित है।

देश में 15 अगस्त 1947 को मौजूदा सत्ता वर्ग को सत्ता हस्तातंरण के बाद विकास का सोवियत माडल 1991 के सुधारों के ईश्वर डा. मनमोहन सिंह के आविर्भाव से पहले तक जारी रहा है, जिसे इंदिरा गांधी समाजवादी व्यवस्था बताती रहीं।

गौरतलब है कि सोवियत माडल में सार्वजनिक उपक्रमों के साथ-साथ संसाधनों के राष्ट्रीयकरण पर जोर था।

1991 से अमेरिकी माडल पहले खाड़ी युद्ध के तुरंत बाद सोवियत संघ के विघटन के बाद से हमारे यहां विकास का माडल है और हमारी अर्थव्यवस्था और देश दोनों मुक्तबाजार है। सार्वजनिक तमाम उपक्रमों, सेवाओं, राष्ट्रीय संसाधनों, बुनियादी जरुररतों और समूची उत्पादन प्रणाली देशी विदेशी एकाधिकार पूंजी के हवाले है और इस एकाधिकार वर्चस्व के लिए देश अब नोटबंदी जुबांबंदी के साथ डिजिटल कैसलैस है।

उत्पादन के बदले सेवाओं के बाजार बन जाने से हम और हमारे बच्चे अब पूरी तरह आउट सोर्सिंग पर निर्भर है और चूंकि हमारी अर्थ व्यवस्था डालर वर्चस्व के उपनिवेश में तब्दील है और भारत अमेरिकी परमाणु संधि से लेकर आतंकवाद के खिलाफ युद्ध तक हम लगातार अमेरिकी हितों से नत्थी हो रहे हैं, हमने अपने बच्चों को 1991 से अमेरिका के प्रजाजन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

डिजिटल कैसलैस जुबांबंद इंडिया में किसानों, मेहनतकशों, खेती और कारोबार के नस्ली सफाये के कारपोरेट बजरंगी अभियान में ज्ञान, शोध, उच्चशिक्षा और विश्वविद्यालयों के सफाये के साथ साथ आुटसोर्सिंग की जो नालेज इकोनामी बन गयी है, उसके बाद अब आईआईटी और आईआईएम में लाखों खर्च करने के बाद वहां से निकले बच्चों के लिए देश में रोजगार आउटसोर्सिंग के अलाव कुछ और कास नहीं है।

बड़ी पगार पर इनमें से जो एक दो फीसद लोग विदेश जाते हैं, अमेरिकी आप्रवास विरोधी नीति निर्धारण और अश्वेतों के खिलाफ अमेरिकी विश्वयुद्ध में बिनालड़े ही उन्हें जिंदा धफनाने की तैयारी है।

नई उत्पादन प्रणाली, जहां श्रम या उच्चशिक्षा, शोध या ज्ञान के लिए कोई जगह नहीं है, वहां आउटसोर्सिंग के बिना हमारे तकनीक विजार्ड बच्चों के लिए कोई जगह नहीं है।

स्त्री चेतना और स्त्री शिक्षा में तेज प्रसार के बावजूद देश में स्त्री के लिए सुरक्षित रोजगार और आजीविका उनकी शिक्षा के अनुपात में एक पीसद भी नहीं है। वे भी ज्यादातर तकनीक निर्भर रोजगार से जुतने को मजबूर है।

फिर इस प्रणाली के लिए अमेरिकी संस्कृति के मुताबिक मुक्तबाजार के वारिशान बनाने की अंधी दौड़ में शिक्षा का जो बाजारीकरण हुआ है, वहां शिक्षा न सिर्फ तकनीक है बल्कि उसके लिए असीम क्रयक्षमता जरुरी है।

मसलन बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हेस्थ बिजनेस की निरंकुश जनविरोधी अराजकता और शोषण पर लगाम के लिए कल विधानसभा में नया कानून बनाने के लिए बिल पेश करने के बाद अपने भाषण में नालेज इकोनामी पर भी लगाम लगाने का इरादा जताया है। इस पर यह तथ्य सामने आया है कि बंगाल में स्कूल में दाखिला के लिए भी एक एक करोड़ का डोनेशन देना पड़ता है।

अति धनाढ्य तबके की बात छोड़ भी दें तो लाखों का डोनेशन आम है। जाहिर है कि बहुसंख्य आम जनता के बच्चों के लिए सिर्फ मेधा के दम पर इस नालेज इकोनामी के जरिये अति धनाढ्य और नव धनाढ्य सत्ता वर्ग के बच्चों के मुकाबले रोजगार और आजीविका के बाजार में टिकना मश्किल है।

ऐसे गरीब साधनहीन बच्चे मामूली अंग्रेजी स्कूलों में हजारों लाखों की फीस और चंदा देकर जो तकनीकी शिक्षा अर्जित करते हैं या जो सरकारी स्कूलों से निकलकर आते हैं, उनके लिए लाखों करोड़ की पगार नहीं होती।

सरकारी नौकरियां खत्म हैं तो निजी और असंगठित क्षेत्र में बिना काम के घंटे बिना श्रम कानून वे बंधुआ मजदूर बनने को मजबूर है। उनकी दो हजार से लेकर तीस हजार तक की पगार की नौकरियां अब खतरे में हैं।

गौरतलब है कि बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) एक प्रकार की आउटसोर्सिंग (Outsourcing) प्रकिया है जिसमेंं कि एक तीसरे पक्ष सेवा प्रदाता को संचालन और एक विशिष्ट व्यवसाय प्रक्रिया (या कार्य) की ज़िम्मेदारियों का करार दिया जाता है |

मीडिया के मुताबिक अब हालात ऐसे हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वीजा नीतियों से देश के बीपीओ सेक्टर पर बुरा असर पड़ सकता है। जिसको देखते हुए भारतीय कंपनियों ने यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में बाजार की तलाश शुरू कर दी है।

दरअसल दुनिया का करीब 56 फीसदी बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग का कारोबार भारतीय बीपीओ के हाथों में है।

देश के आठ शहरों के अलावा अमेरिका और ब्रिटेन में बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग का कारोबार करनेवाली साईफ्यूचर के सीईओ अनुज बैराठी पिछले कुछ दिनों से परेशान हैं। करीब 1500 हाईली स्किल्ड कर्मचारियों को रोजगार देने वाली साईफ्यूचर कंपनी का 72 फीसदी कारोबार अमेरिका से आता है।

डोनल्ड ट्रंप की नई एच1बी वीजा नीति लागू हो गई तो साईफ्यूचर के कारोबार को 50 फीसदी तक नुकसान हो सकता है।

ट्रंप वीजा कानून में जिस बदलाव की बात कर रहे हैं उसके चलते करीब 110 बिलियन डॉलर की इंडियन आउटसॉर्सिंग इंडस्ट्री पर खतरो के बादल मंडरा रहे हैं। प्रस्तावित वीजा नीति से अमेरिका में कंपनियों को अमेरिका में अपने कर्मचारियों की सेलेरी में 60-70 फीसदी बढ़ानी होगी। इससे कंपनियों की ऑपरेश्नल कॉस्ट बढ़ जाएगी और मार्जिन 10 फीसदी तक गिर जाएंगे।

इंडियन सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री बॉडी नैस्कॉम ने ब्रेक्सिट और यूएस इलेक्शन के नतीजों के बाद पहले से ही आईटी इंडस्ट्री का ग्रोथ 2 से 3 फीसदी कम रहने का अनुमान दिया है। ऐसे में सरकार भी अब ट्रंप नीति लागू होने से पहले ही इससे निबटने के तरीकों पर सोच विचार कर रही है।