'ललितगेट’ भुलाने को 'भकुए' को डिजिटल ज्ञान का भौकाल!
'ललितगेट’ भुलाने को 'भकुए' को डिजिटल ज्ञान का भौकाल!
शनिवार को हिंदी दैनिक देशबंधु में वरिष्ठ पत्रकार पुष्परंजन का एक विचारोत्तेजक आलेख प्रकाशित हुआ है। हस्तक्षेप के पाठकों के लिए देशबंधु से साभार
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि एक परियोजना की शुरुआत के लिए पूरे हफ्ते शोर बरपा हो। 'डिजिटल इंडिया वीक’ में पूरे हफ्ते लोगों को बोल-बोल कर इतना पका दीजिए कि वे भूल जाएं कि 'ललितगेट’ का हो क्या रहा है। युवाओं को बस इतना याद रहे कि देश के बारह उद्योगपति 18 लाख नौकरियां देंगे, और कम्प्यूटर के कारोबार में साढ़े चार लाख करोड़ निवेश करेंगे। इन उद्योगपतियों की हैसियत साढ़े पच्चीस लाख करोड़ की है। 13 अरब डॉलर का भारतीय मोबाइल फोन मार्केट इन बारह उद्योगपतियों की राह देख रहा है। देश की सवा अरब जनता को इन बारह उद्योगपतियों का कृतज्ञ होना चाहिए कि सरकार रोजगार नहीं दे पा रही है, पर ये 18 लाख नौकरियों का सृजन कर रहे हैं। एक बार फिर साबित हो रहा है कि सरकार, कार्पोरेट के सहारे चल रही है।
'डिजिटल इंडिया वीक’ की शुरुआत करते हुए सपनों के सौदागर मोदीजी ने कहा, 'वक्त बदल रहा है। पहले बच्चा आपका पेन खींचता था। चश्मा खींचता था। अब मोबाइल छीनता है!’
यहां तक तो गनीमत है। हमारे नेता जोश में यह भी जुमला बोल सकते थे- 'वक्त बदल चुका है, बच्चे अब मोबाइल हाथ में लिए पैदा हो रहे हैं!’
टीवी पर बुधवार शाम को भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......
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हर सवाल पर एक ही जुगाली कर रहे थे, आप लोग नकारात्मकता वाली बातें क्यों करते हैं?
मतलब, यदि सरकार से शंका समाधान चाहें, तो या तो आप विपक्ष की ओर से बोल रहे हैं, या फिर आपकी सोच नकारात्मक है। सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ताओं का यही ढब है। आपको बेढब लगे, तो मोबाइल हाथ में लीजिए, और मूकदर्शक हो जाइए।
यों मोबाइल फोन के कई फायदे हैं। आपको बोलने से अधिक, सुनने में व्यस्त रखता है। गेम्स खेलते हुए डेढ़-दो घंटे के मेट्रो सफर का पता भी नहीं चलता। तमाम एप्स खुल गये हैं, उसमें उलझे रहिए। चैट, ट्विटर, लिंक्ड-इन, व्हाट्स अप आपको बेरोजगारी और महंगाई की याद तक नहीं दिलाता। सरकार जब गांव की गली से लेकर दिल्ली तक फाइवर ऑप्टिक की सुविधा मुहैया करा देगी, तो आपका 'कंपुटरवा’ चीन-जापान का कान काटेगा। बैंक बिना कागज के हो जाएंगे। गांव-गांव में कॉल सेंटर खुल जाएंगे। साढ़े छह लाख गांवों के, ढाई लाख पंचायत इंटरनेट से जुड़ जाएंगे। गांव के चौपाल से तेल अबीब में बैठे इजराइली कृषि विशेषज्ञ से कान्फ्रेंसिंग कीजिए। खेत जोतते हुए खाद के बारे में जानकारी लीजिए।
जिन भकुओं को कम्प्यूटर, या स्मार्ट फोन चलाने की जानकारी नहीं है, ऐसों को सरकार 'डिजिटल लिटरेसी’ से साक्षर करेगी। लेकिन सरकार को पक्का पता नहीं है कि अपने देश में स्मार्ट फोन नहीं चला सकने, या कम्प्यूटर नहीं खोल पाने वाले 'पढ़े-लिखे गंवार’ (डिजिटल इलिटरेट) कितने हैं। इस देश में अस्सी प्रतिशत डिजिटल निरक्षर हैं, या उससे कम? इसकी पुष्टि सरकार को करनी है। इसका खुलासा 'डिजिटल इंडिया वीक’ में भी नहीं किया गया। विश्व में औसत साक्षरता दर 84 प्रतिशत है। भारत में साक्षरता का औसत 74 प्रतिशत बताया गया है। सारे जहां से ..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......
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'अच्छा हिन्दुस्तां हमारा’, एशिया में चीन, श्रीलंका और म्यांमार से कम पढ़ा-लिखा है। इस सच से बेखबर श्रीमान प्रधान सेवकजी ने बुधवार को ललकारा, 'दुनिया के सामने साइबर अटैक का खतरा मंडरा रहा है। भारतीय युवा तैयार रहें। हमारे नेतृत्व में ही दुनिया ये युद्ध जीतेगी।’
ठीक एक साल पहले यह खबर दुनिया के समक्ष उछली थी कि भाजपा की जासूसी अमेरिकी खुफिया एनएसए (नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी) ने कराई थी। 2010 में अमेरिका की 'फॉरेन इंटेलीजेंस सर्विलांस कोर्ट’ ने दुनिया की 193 सरकारों, और भाजपा जैसी कुछ पार्टियों की खुफियागिरी करने की अनुमति 'एनएसए’ को दी थी। इससे पहले जर्मनी, फ्रांस जैसे तथाकथित 'मित्र देशों’ के शासन प्रमुखों और वहां की पार्टियों की जासूसी अमेरिका ने कराई थी, जिसे लेकर यूरोप में तूफान मचा हुआ था। उस समय नेताओं ने अमेरिका के प्रभारी राजदूत को बुलाकर विरोध दर्ज करा दिया था। 2014 में अमेरिकी गृहमंत्री, विदेश मंत्री का नई दिल्ली आना हुआ, लेकिन न तो उनसे पुरजोर तरीके से पूछा गया, न ही उन्होंने जवाब देना जरूरी समझा।
हमारी खुफिया संस्थाओं को पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी की आवाज के जरिये उनकी बातचीत को 'ट्रैक’ करने की तकनीक अमेरिका के पास कब से है। 'प्रिज़्म’, 'टैम्पोरा’, 'मस्कुलर’ 'एक्स कीस्कोर’ जैसी हाईटेक तकनीक अमेरिका ने हासिल कर रखा है।
अमेरिकी खुफिया की परत-दर-परत खोलने वाले एडवार्ड स्नोडेन के दावे पर भरोसा करें, तो 'एक्स कीस्कोर’ उपकरण नई दिल्ली के अमेरिकी दूतावास में लगा है, जिससे पूरे हिमालय क्षेत्र में मोबाइल से लेकर ई-मेल संदेशों को जाना जा सकता है।
स्नोडेन ने यह भी दावा किया था कि ..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......
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नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में तैनात सीआईए और एनएसए के 'स्पेशल कलेक्शन सर्विस ऑपरेशंस सेंटर’ के अधिकारी 'एक्स कीस्कोर’ द्वारा संदेशों की मानिटरिंग करते हैं। इजराइल द्वारा ईज़ाद किया गया 'एक्स कीस्कोर’ दिल्ली के अमेरिकी दूतावास में लगा है, यह बात पिछली सरकारें भी दबे मुंह स्वीकार करती रही हैं। कूटनीतिक चैनल के माध्यम से जुलाई 2013, नवंबर 2013, और जुलाई 2014 में साइबर जासूसी का जवाब मांगा गया, लेकिन अमेरिका ने किसी तरह का स्पष्टीकरण नहीं दिया है। यह अमेरिकी दबंगई का नमूना है।
इस सूरतेहाल में प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह से 'साइबर युद्ध’ से मुकाबले के वास्ते दुनिया का नेतृत्व करने का ऐलान कर रहे हैं; डर है कि यह प्रहसन का विषय न बन जाए।
1976 में नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर (निक) की स्थापना की गई थी। यह वह दौर था, जब देश में आपातकाल लागू था। क्या श्रीमती गांधी पूरे तंत्र पर अपनी दृष्टि गाड़े रखने के लिए 'निक’ का इस्तेमाल करना चाहती थीं?
यह नज़ीर है कि दुनिया के तमाम तानाशाह अपने शासनतंत्र पर नज़र रखने के लिए अपने दौर की उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करते रहे हैं।
'निक’ की स्थापना का उद्देश्य केंद्र सरकार के पास 50 लाख कर्मचारियों, 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 625 जिला प्रशासन को 'ई-गवर्नेस’ से जोडऩा और उन पर नज़र रखना था। क्या मोदीजी तकनीक का इस्तेमाल उसी उद्देश्य से कर रहे हैं, जैसा इंदिराजी ने किया था?
आपातकाल के बाद यह दूसरा अवसर है, जब देश के नेता 'डिजिटल इंडिया’ में तरक्की का मार्ग तलाश रहे हैं। 'न खायेंगे, न खाने देंगे’ और कोयला नीलामी में पारदर्शिता का ..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......
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खम ठोकने वाली सरकार के पास जवाब नहीं है कि रेलवे रिजर्वेशन में भ्रष्टाचार को कब और कैसे ठीक करेगी।
देश को याद करना चाहिए कि राजीव गांधी ई-गवर्नेस को जब आगे बढ़ाने लगे, तब अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी 'कम्प्यूटर ब्वाय’ कहके उनकी खिल्ली उड़ाते थे। भारतीय जनसंघ के दोनों दिग्गज नेता उन दिनों अक्सर अपने वक्तव्यों में कहते थे, 'कम्प्यूटर इस देश को बर्बाद कर देगा। लोगों के रोजगार खा जाएगा।’
अब वही मोदीजी का कम्प्यूटर इस देश के रिटेल व्यापारियों के रोजगार खा रहा है, और मार्गदर्शक मंडल मौन है।
फ्लिपकार्ट, अमेजन, स्नैपडील जैसे डिजिटल रिटेल व्यापार करने वाली कंपनियां हर साल हजारों करोड़ रुपये के घाटे का रोदन करती हैं। फ्लिपकार्ट ने 2013-14 में 400 करोड़, अमेजन ने इसी अवधि में 321.3 करोड़, और स्नैपडील ने 154.11 करोड़ का घाटा दिखाया है। सवाल यह है कि घाटे वाली इन कंपनियों का धंधा क्यों, और कैसे चल रहा है? ऐसा तो नहीं कि हमारे देश के हजारों करोड़ टैक्स मारने के वास्ते ये विदेशी कंपनियां आंकड़ों में हेराफेरी कर रही हैं? क्या सरकार ने खुदरा व्यापार करने के लिए इन विदेशी कंपनियों को पिछले दरवाजे से रास्ता दे दिया है? यदि नहीं, तो इनके लिए नियम-कानून संसद में क्यों नहीं बनाये जाते? अक्टूबर 2014 के दूसरे-तीसरे हफ्ते में फ्लिपकार्ट द्वारा 'बिग बिलियन डे’ के नाम पर गड़बड़ी का मामला अब न तो केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारामन को याद है, न ही देश के आम नागरिक को।
केंद्र सरकार के इलेक्ट्रोनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीईआईटीवाई) ने फरवरी 2015 से आदेश दे रखा है कि सभी सरकारी कर्मी ई-मेल संदेश व डाटा के लिए सिर्फ 'निक’ का इस्तेमाल करें। हमें शक है कि इस पर सौ फीसदी अमल हो रहा है। सरकार के मंत्री से लेकर अधिकारी तक गूगल, याहू, हॉटमेल पर ई-मेल संदेश भेजते हैं, इनके सर्वर अमेरिका में हैं, व सर्विस प्रोवाइडर वहीं बैठे हुए हैं। कुछ अफसरान सरकारी डाटा अपने 'पर्सनल मेल में सेव’ करते रहे हैं। इस कारण, सरकार और इस देश के करोड़ों लोगों..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......
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का व्यक्तिगत 'डाटा’ अमेरिका के डिजिटल बैंकों में है, जिसे गलत हाथों में जाने का डर हमेशा बना रहता है।
अभी हाल में नेहरूजी के पूर्वजों को मुसलमान बताने का खेल वीकिपीडिया की साइट पर हुआ। सरकार इसका पता करने में गंभीरता नहीं दिखा रही है कि 'निक’ के ई-गर्वनेंस के होते हुए निगरानी में चूक कैसे हुई। पंडित दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ ऐसा हुआ होता, तो बवाल मच जाता।
'डिजिटल इंडिया वीक’ में संकल्प किया गया है कि सरकार हर व्यक्ति की डिजिटल आईडी बनाएगी। इसके लिए मोबाइल नंबर, बैंक अकांउट नंबर और आधार नंबर को जोड़ा जाएगा। 12 मार्च 2014 को भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी ने बंगलुरू में बयान दिया था-'आधार कार्ड बहुत बड़ा फ्रॉड है। सत्ता में आये, तो इसकी जांच करेंगे।’ उससे पहले 22 अक्टूबर 2013 को स्मृति ईरानी ने आधार कार्ड के बारे में कहा था, 'यह प्रायवेसी का हनन करता है।’
अब यही आधार कार्ड न तो फ्रॉड है, न ही निजता के अधिकार का हनन करता है। कमाल है! यों, इस देश में पचास प्रतिशत लोगों के पास आधार कार्ड है ही नहीं। पन्द्रह से बीस प्रतिशत आधार कार्ड में नाम, पता और उम्र तक गलत हैं। देश में लगभग 28 करोड़ लोग झुग्गियों और मलिन बस्तियों में रहते हैं। सड़कों के किनारे, नालों, खंडहरों, वीरान पार्कों में वक्त के मारे कितने करोड़ लोग रहते हैं, उसका आंकड़ा लंबी-लंबी छोडऩे वाली सरकार के पास नहीं है। क्योंकि, न तो उनका आधार कार्ड बनना है, न ही वोटर कार्ड, और न ही बैंक अकाउंट! ऐसे दरिद्रों के लिए देश के बारह उद्योगपति फिक्र क्यों करें?
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