लाल किले की प्राचीर से मोदी के कागजी सपने
लाल किले की प्राचीर से मोदी के कागजी सपने
सुनील कुमार
भारत का शासक वर्ग दो महापर्व को बहुत धूम-धाम से मनाता है- स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस। इन्हें आम आदमी क्रमशः 15 अगस्त और 26 जनवरी के नाम से जानता है। इस वर्ष 15 अगस्त को 68वां स्वतंत्रता दिवस मनाया गया, जो अपने पूर्ववर्ती आयोजनों से भिन्न था। नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक के लिए मीडिया ने इस तरह से मार्केंटिंग नहीं की थी। ‘आजाद भारत में जन्म लेने वाले प्रथम प्रधानमंत्री, ‘अपने बल पर बहुमत लाने वाले प्रधानमंत्री, ‘बुलेट प्रुफ शीशे के बिना भाषण देने वाला प्रधानमंत्री, ‘लिखित भाषण नहीं पढ़ेंगे, ‘बारिश होने पर छाते का प्रयोग नहीं करेंगे’ इत्यादि विशेषताओं को प्रमुखता से छाप कर मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक सशक्त प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की। इससे पहले यह काम मीडिया लोकसभा चुनाव के समय बखूबी कर चुका है।
नरेन्द्र मोदी के लाल किले की प्राचीर से दिये गए भाषण में ऐसा कुछ नहीं दिखा, जो उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के भाषण से भिन्न था। वे उन्हीं आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाते हुए दिखे, जिनको प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव व उनके वित्तमंत्री मनमोहन सिंह की जोड़ी ने लागू की थीं। लाल किले की प्राचीर से देशी-विदेशी पूंजीपतियों को बता रहे थे कि आइये, हमारे देश में युवा श्रमिक हैं (35 उम्र से कम 65 प्रतिशत आबादी), जिनके पास कौशल, प्रतिभा और अनुशासन है, उसका इस्तेमाल कीजिये। ‘स्वदेशी’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तिरंगे झंडे के सामने विश्व के पूंजीवादी/साम्राज्यवादी देशों के निवेशकों का खुलेआम आह्वान करते हुए कहा कि हम विश्व को एक अवसर देना चाहते हैं- ‘कम, मेक इन इण्डिया’। उन्होंने अपने इस नारे की व्याख्या करते हुए कहा- ‘आइये, इलेक्ट्रिक से इलेक्ट्रानिक, केमिकल से फार्मास्युटिकल्स, ऑटो से एग्रो इंडस्ट्री, प्लास्टिक से लेकर पेपर और उपग्रह से लेकर पनडुब्बी के विनिर्माण जैसे विविध क्षेत्रों में निवेश के अवसरों का लाभ उठाईये।’
यानी आप यहां आकर निर्माण करो और विश्व के किसी भी कोने में बेचो। पूंजीपतियों/साम्राज्यवादियों (देशी-विदेशी लूटेरों) को लुभाने के लिए मोदी सरकार ने श्रम कानून को उनके हक में संशोधित करने की तैयारी कर ली है। इसी तरह ‘भू अधिग्रहण कानून’ में भी बदलाव की तैयारी चल रही है, ताकि वो किसानों की जमीन को और आसानी से हड़प सकें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे उत्पादन में ‘जीरो डिफेक्ट और ‘जीरो’ इफेक्ट होना चाहिए, ताकि माल वापस नहीं आये और पर्यावरण का नुकसान नहीं हो। प्रधानमंत्री जी, आप सारी दुनिया के लिए माल उत्पादन करेंगे, जिसके लिए कच्चे माल चाहिए। कच्चे माल के लिए आपको व्यापक पैमाने पर खनन करना होगा, तो क्या इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा? पहले से हाशिये पर जीने को विवश जनता का विस्थापन नहीं होगा? आपके पास कोई ऐसी जादू की छड़ी है, जिसको घुमाते ही कच्चा माल आ जाएगा?
आप ने देश सेवा करने के लिये युवाओं को तरीके बताये, जो आप के 15 अगस्त, 2013 को दिये गये कच्छ के भाषण से मेल नहीं खाते। आपने कच्छ में आजादी की दो धाराओं (अहिंसक और सशस्त्र) की बात कही थी। आपने गुजरात की जनता को बताया कि हमें गर्व है कि मैं उस धरती पर खड़ा होकर बोल रहा हूं, जहां से दोनों धाराओं के नेतृत्व निकले हैं। अहिंसक धारा को गांधी और पटेल नेतृत्व दे रहे थे, तो सशस्त्र धारा को गुरू श्याम जी कृष्ण वर्मा, मैडम कामा आदि। आपको पता होगा कि इन्हीं सशस्त्र धारा के समाजवादी विचारधारा से लैस भगत सिंह ने 23 वर्ष की उम्र में शहादत दी और वे युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बने। उनकी आजादी का लक्ष्य था- ‘मानव द्वारा मानव का’ तथा ‘एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के शोषण का खात्मा’।
भारत में 15 अगस्त, 1947 के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि आदमी द्वारा आदमी का शोषण दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। यही कारण है कि भगत सिंह आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। आप ने कच्छ में कहा था कि ‘‘देश आजाद हुआ, लेकिन आजादी के दीवानों के सपने पूरे हुये क्या? क्या अब भी हमें पूरी आजादी मिली है? क्या ये सच्चाई नहीं है कि आज भी हम मानसिक गुलामी के शिकार हैं? हमारी घिसी-पिटी सोच आज भी आगे बढ़ने की ताकत नहीं देती है, आज भी हम पिछले 60 साल से रटी-रटाई बातें सुन-सुन कर थक चुके हैं। क्या इसने देश की प्रगति में रूकावट नहीं डाली है?’’
प्रधानमंत्री बनने के बाद जब आप लाल किला से युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे थे तो आपने कहा कि ‘‘देश सेवा करने के लिए क्या भगत सिंह की तरह फांसी पर लटकना अनिवार्य है? देश सेवा अन्न के भंडार भर कर भी की जा सकती है।” भारत का किसान अन्न पैदा करके भंडारों को भर रहा है, जो सड़ रहा है और भंडारों को भरने वाला किसान भूखे मर रहा है, कर्ज के जाल में फंसकर आत्महत्या कर रहा है। उसकी मेहनत की कीमत वे साहूकार, पूंजीपति हड़प लेते हैं, जिनसे वह कर्ज लेकर खाद, बीज खरीदता है। भगत सिंह यही तो चाहते थे कि एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति का शोषण न करे। वही भगत सिंह आपके लिए आज अप्रासंगिक हो गये हैं।
प्रधानमंत्री जी, आप कहते हैं कि ‘‘कंधे पर बंदूक ले कर धरती को लाल तो कर सकते हो, लेकिन सोचो कंधे पर हल होगा तो हरियाली धरती कितनी प्यारी दिखेगी। कब तक हम इस धरती को लहू लुहान करते रहेंगे।” प्रधानमंत्री जी, मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा की हरियाली को खत्म कर पैरामिलट्री के बल पर छह-छह लेन की सड़कें बनवाई जा रही हैं। जिन इलाकों में स्कूल, अस्पताल व बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, वहां पर छह लेन की सड़क की क्या जरूरत है? पैरामिलट्री, कोबरा, ग्रेहाउंड जैसे सशस्त्र बल उस हरियाली में क्या कर रहे हैं? आप जिन नौजवानों पर धरती को लाल करने का आरोप लगा रहे हैं, अगर वे नहीं होते, तो जो हरियाली अभी दिख रही है, वह भी खत्म हो गई होती। आदिवासी समाज देश के पटल से मिट गया होता।
आप ने एक बात कही, जो मेरे भी दिल को छू गयी। आपने कहा कि ‘जब लड़की घर से बाहर जाती है तो मां-बाप उनसे पूछते हैं, उसी तरह हम लड़कों से क्यों नहीं पूछते। हम लड़कियों पर बंधन डालते हैं, लड़कों पर भी बंधन डालें। यह सही है कि पुरूषों को भी जबाबदेह होना चाहिए। लेकिन जिस संस्कृति को आप दर्शन मानते हैं, उसी संस्कृति ने पुरुष समाज को यह छूट दे रखी है।
आपने मीडिया के गिरते हुए स्तर पर चिंता व्यक्त की कि कोई अफसर समय से आफिस जाता है, तो वह मुख्य समाचार बन जाता है। इसके बावजूद इस देश का प्रधानमंत्री जब अपने को ‘प्रधान सेवक’ कहता है, तो मीडिया के लिए मुख्य समाचार बनता है। वही मीडिया आपको इन ऊंचाईयों पर पहुंचा चुका है।
आप स्वच्छता की बात कर रहे हैं। आपने 2019 में गांधी जी के 150 वीं जयंती तक भारत को स्वच्छ बनाने का सपना देखा है। प्रधानमंत्री जी, स्वच्छता हम सभी को अच्छी लगती है। लेकिन जो फुटपाथ पर सोते हैं, खाते हैं, खेलते हैं, रेलवे के प्लेटफार्मों पर रातें बिताते हैं, उनके लिए आपकी स्वच्छता के कोई मायने हैं? आपने हर स्कूल में लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने की बात कही और उसके लिए आपने कारपोरेट जगत को सामाजिक जिम्मेवारी निभाने के लिए आह्वान किया। आपके कहने के बाद टाटा ने दस हजार स्कूलों में 100 करोड़ रुपये देने का घोषणा कर दी, तो कुछ ने पंजाब और कुछ ने यूपी व बिहार में शौचालय बनाने की बात कही। प्रधानमंत्री जी, जो कारपोरेट घराने ये छोटे-छोटे टुकड़े दे रहे हैं, उसी कारपोरेट जगत को आपने 2013-14 की बजट में 5.32 लाख करोड़ रुपये की टैक्स में छूट दे चुके हैं। अगर कारपोरेट जगत यह टैक्स चुका देता, तो इससे तो भारत के हर गांव में शौचालय और शिक्षालय दोनों बन जाते। कारपोरेट जगत अपने कामगारों को उचित मजदूरी देती, तो वे कामगार अपने घरों में शौचालय बना सकते थे। आप उन डाकुओं (कारपोरेट जगत) को सामाजिक रूप से जिम्मेवार होने का सार्टिफिकेट बांट रहे हैं?
संघीय ढांचे को मजबूत बनाने की बात आप कहते हैं, जबकि आपकी ही पार्टी के कार्यकर्ता आपकी उपस्थिति में मंच से मुख्यमंत्री को नहीं बोलने देते हैं और आप अपनी जिम्मेवारी निभाने में असफल हो जाते हैं। आपकी सरकार ने संसद में किसी भी पार्टी को विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं दिया है। क्या विरोधी आवाजों को दबा कर संघीय ढांचा मजबूत होगा?
देश के राष्ट्रपति ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर साम्प्रदायिकता पर चिंता व्यक्त की, वहीं चिंता आपने भी लाल किले से जाहिर की। आपने कहा कि ‘‘सदियों से हम किसी न किसी कारण साम्प्रदायिक तनाव से गुजर रहे हैं। कभी जातिवाद, तो कभी सम्प्रदायवाद का जहर कब तक चलेगा? बहुत लड़ लिया, बहुत लोगों को मार दिया- कुछ नहीं पाया।’’ यह बात सच में बहुत ही अच्छी है। लेकिन हम आपसे जानना चाहते हैं कि 2002 के गुजरात जनसंहार (जो आपके ही मुख्यमंत्री काल में हुआ था) में क्या हुआ? अगर हम गुजरात को भूल भी जायें, लेकिन अभी हाल में जिस तरह से पश्चिमी यूपी में दंगे हुए, उसे क्या कहा जाये? इन दंगों में अपकी पार्टी के सांसद, विधायक शामिल थे। उनको दंडित करने के बजाय आपकी ही सभा में सम्मानित किया जाता है और अब तो आपकी सरकार इस दंगे के आरोपी विधायक संगीत सोम को जेड श्रेणी की सुरक्षा देने जा रही है। आखिर, आपका लाल किले से प्रवचन किसके लिए है?
आप गरीबी को खत्म करने की बात कहते हैं, यह अच्छी बात है। यही कारण है कि आपके चुनावी एजेंडे में महंगाई एक मुख्य मुद्दा के रूप में था। लेकिन आप ने तो अपने मुख्य मुद्दा पर मुंह खोलना ही जरूरी नहीं समझा। आप अपने वादे, मात्र कुछ माह में भूल गये। यह कैसे मान लिया जाये कि आपका लाल किले के प्राचीर से गरीबी खत्म करने का नारा इन्दिरा गांधी के ‘गरीबी मिटाओ’ के नारे से अलग होगा? आप ‘डिजीटल इण्डिया’ की बात करते हैं और कहते हैं कि इससे हर आदमी को हर प्रकार की जानकारी मिल जायेगी। लेकिन प्रधानमंत्री जी, आप इस सच्चाई से कोसों दूर हैं कि आपके देश में इंटरनेट की पहुंच कुछ प्रतिशत लोगों तक ही सीमित है। ऐसे में वो लोग डिजिटल इण्डिया का लाभ कैसे उठा पायेंगे? क्या इसका प्रयोग आप किसानों की जमीन को हजारों किलोमीटर दूर बैठे पूंजीपतियों को बेचने के लिए भी करेंगे?


