नीरज सिंह
आप लोगों को एक कहानी सुनाने जा रहा हूँ। यह कहानी आपको कई प्रचलित लोककथाओं के संकलनों में मिल सकती है। यह कहानी सत्य को उघाड़ने के लिए, यथार्थ को मेघाच्छादित करने के लिए अथवा यथार्थ पर से कुहासा हटाने के लिए ताकि सच्चाई अपनी पूरी सुंदरता अथवा यथार्थ कुरूपता में दिखाई पड़ सके।
इस कहानी को आप जिस रूप में समझना चाहे समझ सकते हैं, आपकी स्वतंत्रता पर इसे छोड़ देते हैं।
यह कहानी काफी मशहूर है (इसका पुनर्कथन 19वीं सदी के डैनिश लेखक हांस क्रिश्चियन एंडर्सन ने नावऔपनिवेशिक सन्दर्भ में किया है।) यह कहानी एक ऐसे सम्राट के बारे में है, जो अपने लिए एक बहुत ख़ास किस्म की पोशाक तैयार कराना चाहता था- ऐसी पोशाक जो उस देश में और अगर संभव हो तो सारी दुनिया में अपने ढंग की हो। यह सोचकर उसने अनेक देशों से दर्जी बुलवाये। विदेशी दर्जियों ने सम्राट की चापलूसी करते हुए और उसके अहं को तुष्ट करने के ख्याल से कहा कि वे ऐसी पोशाक बनाएंगे, जिसे केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही देख सकते हैं।
काफी दिनों तक काम करने के बाद दर्जियों ने खबर दी कि अब वह पोशाक तैयार हो गयी है। सम्राट के जन्म दिवस समारोह पर इस पोशाक का उद्घाटन किया जाना था। उस दिन सम्राट ने अपने सारे कपड़े उतारे और दर्जियों ने सम्राट के शरीर पर वह पोशाक डाल दी, जिसके बारे में कहा गया था कि केवल बुद्धिमान लोग ही उसे देख सकते हैं।
सम्राट घोड़े पर सवार हुआ और अपने स्वागत में खड़ी भीड़ के बीच से नई पोशाक पहनकर वह बड़ी शान के साथ आगे बढ़ा। सम्राट के दरबारियों ने पोशाक की प्रशंसा में जमीन-आसमान एक कर दिया और हर कोई पोशाक के बारे में नई-नई बातें बताने लगा। दरबारियों में से सब एक-दूसरे को इस बात के लिए बधाई दे रहे थे कि आखिर उन्होंने ही यह सलाह दी थी कि विदेश से दर्ज़ी बुलवाए जाएँ।
दरबारी कवियों ने उस पोशाक की खूबसूरती का बयान करते हुए कई गीत लिख दिए। दरबारी इतिहासकार बड़े-बड़े शोध ग्रन्थ लिखने में व्यस्त हो गए, जिनमें पोशाक के ऐतिहासिक महत्व का बखान था। दरबार के कानूनवेताओं ने सम्पति के अधिकार से सम्बंधित दस्तावेज तैयार किए, क्योंकि यह मामला सम्राट से सम्बद्ध था। अर्थशास्त्रियों ने विदेशी दर्जी उद्योग और स्थानीय बिचौलियों के बीच हुए अद्भुत समझौते के फलस्वरूप तैयार इस बेजोड़ उत्पादन की आर्थिक उपयोगिता के बारे में काफी कुछ लिखा और बताया कि विदेशी तकनीकी ज्ञान स्थानीय प्रतिभा के लिए कितना जरूरी है।
दरबारी अखबारों ने पोशाक की प्रशंसा में शानदार सुर्खियां दीं। संपादकों ने जोरदार संपादकीय लिखे और बताया कि सम्राट ने विदेशी दर्जीगिरि को बढ़ावा देकर जो अंतर्राष्ट्रीय मानदंड स्थापित किया है, उसका सबको अनुकरण करना चाहिए। दरबारी धर्माचार्यों ने ईश्वर से प्रार्थना की कि दिशा में और प्रयास जारी रहें। राजनीतिज्ञों ने सम्राट की पोशाक के राजनीतिक महत्व का वर्णन किया और देश की अनोखी शासन व्यवस्था को इतनी शानदार पोशाक के लिए जिम्मेदार ठहराया।
जाहिर है कि दर्शकों के अंदर भी इस पोशाक की गुणवत्ता को लेकर चर्चा का बाजार काफी गर्म हो गया।
लेकिन इस तमाम शोर-गुल के बीच अचानक एक बच्चे की आवाज आई,
"मम्मी, मम्मी! यह देखो, राजा एकदम नंगा है।"

माँ ने बच्चे को चुप कराना चाहा और चुप न होने पर उसे पीट भी दिया। लेकिन बच्चा रोते-रोते चीखता जा रहा था,
"लेकिन राजा तो नंगा है, एकदम नंगा है।"
ऐसा लगा कि सभी देखने वालों की आँख पर धुंध की जो पर्त चढ़ी थी, उत्तर गई और सबको वही दिखाई देने लगा जो सच था।
दूसरी तरफ दरबारियों ने तीनों विदेशी दर्जियों के साथ लंबा विचार-विमर्श किया और ऐलान किया कि हर उस बच्चे और बड़े को अपनी आँख का ऑपरेशन कराना पड़ेगा- और वह भी अपने खर्चे पर- जो राजा की पोशाक को नहीं देख पा रहा है।