26 नवंबर संविधान दिवस पर अपील
हमारी हर भारतीय नारिक से यही बाहैसियत भारतीय नागरिक राष्ट्रप्रेम नामक कोई वस्तु अगर हममें अब भी जिंदा है और अगर हम इस संविधान की रचना में बाबासाहेब की किंचित मात्र भूमिका भी मानते हैं और आजादी के लिए दी गयी शहादतों और लोकतंत्र के हक हकूक की विरासत के बचाव की तनिक गरज अगर हममें हैं, कोलकाता की तरह पुलिस के निषेध के बावजूद राजमार्ग पर भारतीय संविधान दिवस मनाने के लिए जैसे हम तमाम पर्व त्योहार मनाते हैं बिना न्यौता, बिन झंडा, बिना राजनीति , बिना संगठन, बाहैसियत भारतीय नागरिक हमें उसी तरह लोकतंत्र और संविधान का यह महोत्सव मनायें।

भारत का संविधान

संविधान की प्रस्तावना:
" हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
हमें अब अगले बुधवार का बेसब्री से इंतजार है,जो हमारे इस नाचीज जीवन की दिशा दशा तय करने वाला है। 26 नवंबर को संविधान दिवस का आयोजन हमारे लिए प्रतिष्ठा का कोई प्रश्न नही हैं।
हम कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं और वोट बैंक का कोई बीजगणित या रेखागणित या त्रिकोणमिति नहीं साध रहे हैं और न हमारा ऐसा कोई कृत्तित्व व्यक्तित्व है कि किसी कार्यक्रम से उसमें कोी फर्क पड़ने वाला है।
हमारे जो सामाजिक सरोकार हैं और जिन मुद्दों को हम संबोधित करना चाहते हैं। जो हम अलग अलग अस्मिताओं को भारतवर्ष नामक कविगुरु रवींद्रनाथ के शब्दों में महमानव के महामिलन सागर की असंख्य लहरों को जोड़कर मनुष्य, पर्यावरण और प्रकृति के हक हकूक की आवाज बुलंद करना चाहते हैं, उसके प्रति इस देश के तमाम देशभक्त नागरिकों का क्या नजरिया है,उसका हिसाब बनाकर आगे कुछ करने या फिर दूसरे तमाम लोगों की तरह हाथों पर हाथ धरे घर बैठ जाने का फैसला हो जाना है।
13 अप्रैल को देशभर में बाबा साहेब के जन्मदिन पर सरकारी छुट्टी मनाते हुए और फिर छह दिसंबर को बाबासाहेब की पुण्यतिथि पर, साथ ही बाबरी विध्वंस के जरिये बाबासाहेब के आंदोलन को खत्म करने के षड्यंत्र दिन के मौके पर मुंबई के शिवाजी पार्क में जो मेला लाखों लोगो का लगता है चैत्यभूमि पर बाबासाहेब के स्मरण के लिेए, फिर घर गली मोहल्लों दफ्तरों और राजपथ पर जो लोग बाबासाहेब के नाम पर सामाजिक न्याय और समता के नारे लगाते हैं, वे लोग बाबासाहेब के सपनों, उनके आंदोलन, उनकी विचारधारा और उनकी विरासत का कितना सम्मान करते हैं और दरअसल बाबासाहेब से कितना प्यार करते हैं, उससे भी बड़ी बात इस भारत देश, उसके संविधान और उसके लोकतंत्र से उसका कितना गहरा नाता है, इसका जवाब मिल जाना है।
हमने देश भर में तमाम संगठनों और कम से कम पढ़े लिखे लोगों तक संविधान दिवस मनाने के तहत भारतवर्ष को बचाने, उसके संविधान के तहत लोक गणराज्य की हिफाजत करने और उससे भी बड़ी बात बाहैसियत भारतीय नागरिक संवैधानिक प्रावधानों के तहत देश की संप्रभुता,स्वतंत्रता,एकता और अखंडता के अलावा नागरिक और मानवाधिकारों, जीवन आजीविका,जल जंगल जमीन,प्रकृति और पर्यावरण के पक्ष में मानवबंधन बनाने का संदेश भेज दिया है,उसका क्या असर होता है,उसे देखना और समझना है।
प्रख्यात अर्थशास्त्री डा.अशोक मित्र ने कविगुरु रवींद्रनाथ की विख्यात कविता भारत तीर्थ की पंक्तियां उद्धृत करते हुए इस देश की एक मुकम्मल तस्वीर पिछले दिनों पेश की है अपने बांग्ला में लिखे आलेख में। जिसके मुताबिक भारत देश में दरअसल आदिवासियों के अलावा कोई मूलनिवासी हैं ही नहीं।
बाकी लोग कभी न कभी कहीं न कहीं से आकर इस देस में बसे हैं और इस महामानव सागर के मिलन तीर्थ में एक शरीर में आत्मसात हो गये हैं और इसी से यह भारत वर्ष, भारतदेश बना है, जहां न कोई घुसपैठिया है और न बहिरागत।
उन्होंने भारत विभाजन के शिकार लोगों की समस्याओं का खुलासा करते हुए बताया कि वे भी भारतवंशी हैं और इस देश पर उनका भी समान अधिकार है।
भारतीय नागरिक का मतलब है अस्मिता और पहचान से बहुत ऊपर भारतराष्ट्र की अंतरात्मा में सबके साथ विविध संस्कृतियों, विविध धर्मों, विविध नस्लों और जाति व्यवस्था के हजारों विभाजन के बावजूद एकात्म हो जाना है।
भारतीय संविधान के निर्माताओं ने इसी संवेदना के साथ संप्रभु, स्वतंत्र, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के गठन के अंगीकार के साथ भारतीय संविधान के तहत भारतीय लोक गणराज्य की स्थापना की थी, जो पहाड़ों, नदियों, समुंदरों, मरुस्थल, रण को अपने में समेटने वाले भूगोल का नाम यकीनन नहीं है, वह भारतीयता की मूलभूत भावना है जो सारी अस्मिताओं, पहचान और राजनीति से ऊपर है।
जिसमें हर नागरिक के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प है।
इसी समानता, समाजवाद, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और भ्रातृत्व का नाम भारतवर्ष है। न कि यह जनसंहारी धर्मांध खंड खंड अस्मिता सर्वस्व भूगोल का नाम है यह भारत वर्ष।
भारतीय संविधान और भारत राष्ट्र के मूलाधार और लोकगणराज्य भारत की हत्या का महोत्सव है कारपोरेट मुक्तबाजार जो संविधान के मूल तत्वों के विरुद्ध है।
बाहैसियत भारतीय नागरिक राष्ट्रप्रेम नामक कोई वस्तु अगर हममें अब भी जिंदा है और अगर हम इस संविधान की रचना में बाबासाहेब की किंचित मात्र भूमिका भी मानते हैं और आजादी के लिए दी गयी शहादतों और लोकतंत्र के हक हकूक की विरासत के बचाव की तनिक गरज अगर हममें हैं, कोलकाता की तरह पुलिस के निषेध के बावजूद राजमार्ग पर भारतीय संविधान दिवस मनाने के लिए जैसे हम तमाम पर्व त्योहार मनाते हैं बिना न्यौता, बिन झंडा, बिना राजनीति , बिना संगठन, बाहैसियत भारतीय नागरिक हमें उसी तरह लोकतंत्र और संविधान का यह महोत्सव मनायें, अपील हमारी हर भारतीय नारिक से यही है।
यह अग्निपरीक्षा दरअसल हमारी नहीं है, भारतीय लोकगणराज्य, लोकतंत्र, मनुष्यता और सभ्यता की है और इसके पास फेल होने पर हमारा सब कुछ दांव पर लग गया है।
"भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार, निदेशक सिद्धांत और मौलिक कर्तव्य" यहाँ देखें

o- पलाश विश्वास
पलाश विश्वास । लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना। पलाश जी हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।