लोकतंत्र का हत्यारा बना चुनाव आयोग
नरेन्द्र मोदी ने अपने निख़ालिस झूठ के ज़रिये पूर्व प्रधानमंत्री का न सिर्फ़ चरित्र हनन किया बल्कि साम्प्रदायिक उन्माद भी फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मोदी जी और बीजेपी के लिए ये कोई नयी बात नहीं। लेकिन बेईमान चुनाव आयोग तो हाथ पर हाथ धरे बैठा है।

लोकसभा चुनाव- 2024 का मखौल ख़ुद चुनाव आयोग उड़ा रहा है। चुनाव आयोग समेत सभी लोकतंत्रिक संस्थाओं के समग्र पतन से साफ़ दिख रहा है कि ये आख़िरी चुनाव है। पथभ्रष्ट और पतित चुनाव आयोग ही हमारे लोकतंत्र और संविधान का सबसे बड़ा हत्यारा है। हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 324 ने चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए सर्वशक्तिमान बनाया है। इसी संवैधानिक प्रावधान के तहत जन प्रतिनिधित्व क़ानून बना।
जन प्रतिनिधित्व क़ानून के भाग-8 का नाम है ‘भ्रष्ट आचरण और चुनावी अपराध’। इसकी धारा 123(3) में साफ़ लिखा है कि ‘चुनाव को प्रभावित करने के लिए धार्मिक या राष्ट्रीय प्रतीकों, जैसे राष्ट्रीय ध्वज या प्रतीक का उपयोग करके अपील करना’ वर्जित है। यही नहीं, इसकी धारा 125 कहती है, “कोई भी व्यक्ति जो इस अधिनियम के तहत चुनाव के सम्बन्ध में भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर शत्रुता या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देता है या बढ़ावा देने की कोशिश करता है, उसे तीन साल तक जेल की सज़ा या ज़ुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।”
क्यों बनी आदर्श आचार संहिता?
जन प्रतिनिधित्व क़ानून का उद्देश्य सभी उम्मीदवारों और पार्टियों को ‘समान अवसर’ या ‘लेवल प्लेइंग फ़ील्ड’ सुलभ करवाना है। इसे ही सुनिश्चित करना है कि चुनाव की आड़ में समाज में हिंसा और उन्माद का माहौल नहीं बने। क़ानूनी प्रक्रिया की वजह से जन प्रतिनिधित्व क़ानून के तहत त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करना आसान नहीं था। इसीलिए पूर्व चुनाव आयुक्त तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन (1990-1996) ने सभी राजनीतिक दलों की सहमति से आदर्श चुनाव संहिता तैयार की और इसे लागू किया।
अनुच्छेद 324 के अनुसार, चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है कि वो सभी पार्टियों और उम्मीदवारों को ‘समान अवसर’ मुहैया करवाने के लिए कोई भी क़दम उठा सकता है। यहाँ तक कि ज़बरन जेल में ठूँसे गये नेताओं को रिहा करवा सकता है और ज़बरन सीज़ किये गये बैंक खाते को मुक़्त करवा सकता है। ईडी, सीबीआई, आईटी जैसी सरकार की कठपुतली एजेंसियों को भी आदेश दे सकता है कि वो चुनाव के सम्पन्न होने तक किसी भी राजनेताओं पर उसकी अनुमति के बग़ैर कोई छापेमारी वग़ैरह की कार्रवाई नहीं कर सकती क्योंकि ये ‘समान अवसर’ के सिद्धान्त के ख़िलाफ़ है।
भ्रष्ट आचरण का सबसे चर्चित प्रसंग
भ्रष्ट आचरण का सबसे चर्चित मामला 1971 का है। तब लोकसभा की कुल 518 सीटों में से प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने 352 सीटें जीती थीं। लेकिन रायबरेली सीट पर जब राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राज नारायण चुनाव हार गये उन्होंने विजयी उम्मीदवार इन्दिरा गाँधी के ख़िलाफ़ जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 123(7) के तहत सरकारी साधनों के दुरुपयोग का आरोप लगाया। अदालती प्रक्रिया के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इन्दिरा को दोषी बताया। उनका निर्वाचन रद्द हो गया। उन्हें 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ने की सज़ा मिली। सुप्रीम कोर्ट ने इन्दिरा को बेक़सूर ठहराया। इससे पहले इन्दिरा के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़े की माँग को लेकर विपक्ष ने देश में ऐसा कोहराम मचाया कि इससे निपटने के लिए आपातकाल लागू हो गया।
राज नारायण का आरोप था कि सरकारी अधिकारी यशपाल कपूर, इन्दिरा गाँधी का चुनाव प्रचार कर रहे थे। हाईकोर्ट ने इसे सही माना। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला लिखा कि यशपाल कपूर ने 13 जनवरी 1971 को सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा दिया। ये 14 जनवरी 1971 से प्रभावी हुआ। इसकी पावती उन्हें 25 जनवरी 1971 को मिली और 1 फरवरी 1971 को इन्दिरा गाँधी ने उन्हें अपना चुनाव एजेंट बनाया। इसमें कोई भ्रष्ट आचरण नहीं हुआ। उधर, सुप्रीम कोर्ट में राज नारायण साबित नहीं कर सके कि यशपाल कपूर ने 7 जनवरी से 25 जनवरी 1971 के दौरान इन्दिरा गाँधी के समर्थन में भाषण दिया था।
भ्रष्ट आचरण के अन्य प्रसंग
जन प्रतिनिधित्व क़ानून के तहत ही 1995 में चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के वोट देने का अधिकार ख़त्म कर दिया और 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। वजह थी कि ठाकरे ने हिन्दुओं से हिन्दुओं को वोट देने की अपील की थी। इसी तरह, 2018 में केरल हाईकोर्ट ने IUML के मुसलिम विधायक के. एम. साजी के चुनाव को इसलिए रद्द कर दिया था कि उन्होंने मुसलमानों से एम. वी. निकेश कुमार को इसलिए वोट नहीं देने को कहा वो मुसलमान नहीं हैं।
मोदी का सबसे विवादित झूठ
एक ओर उपरोक्त मिसालें हैं तो दूसरी ओर बीजेपी और ख़ासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भ्रष्ट आचरण हैं। मौजूदा चुनाव में ही बीजेपी और मोदी ने दर्ज़नों बार राम मन्दिर, सनातन और मुसलमानों को लेकर घनघोर आपत्तिजनक बयान दिये हैं। बीजेपी उम्मीदवार भगवान राम की तस्वीर लेकर चुनाव प्रचार करते देखे गये। लेकिन चुनाव आयोग के कान पर जूँ नहीं रेंग रही।
21 अप्रैल 2024 को राजस्थान के बाँसवाड़ा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सारी मर्यादाओं को ध्वस्त कर दिया। उनके शब्द हैं, “पहले जब उनकी सरकार थी तब मनमोहन सिंह ने था कि देश की सम्पत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब ये सम्पत्ति इकट्ठा करके किसको बाँटेंगे? जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बाँटेंगे, घुसपैठियों को बाँटेंगे। क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? आपको मंज़ूर है ये? काँग्रेस का मेनिफेस्टो कह रहा है कि वो माँ-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे, उसकी जानकारी लेंगे और फिर उसे बाँट देंगे। और उनको बाँटेंगे जिनको मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि सम्पत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। भाइयों-बहनों ये अर्बन नक्सल की सोच। मेरी माँ-बहनों, ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे। ये यहाँ तक जाएँगे।”
2006 से ही बीजेपी झूठ फैला रही है कि डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक़ है। जबकि उन्होंने कभी ऐसा कहा ही नहीं। आप ख़ुद देखिए।
| मनमोहन सिंह के असली शब्द | मनमोहन सिंह के बयान का अनुवाद |
| I believe our collective priorities are clear: agriculture, irrigation and water resources, health, education, critical investment in rural infrastructure, and the essential public investment needs of general infrastructure, along with programmes for the upliftment of SC/STs, other backward classes, minorities and women and children. The component plans for Scheduled Castes and Scheduled Tribes will need to be revitalized. We will have to devise innovative plans to ensure that minorities, particularly the Muslim minority, are empowered to share equitably in the fruits of development. They must have the first claim on resources. The Centre has a myriad other responsibilities whose demands will have to be fitted within the over-all resource availability. | मेरा मानना है कि हमारी सामूहिक प्राथमिकताएँ स्पष्ट हैं: कृषि, सिंचाई और जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में महत्वपूर्ण निवेश और सामान्य बुनियादी ढाँचागत क्षेत्र में आवश्यक सार्वजनिक निवेश के साथ-साथ एससी/एसटी, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, महिलाओं और बच्चों के उत्थान के लिए कार्यक्रम। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़ी योजनाओं में नया उत्साह भरना होगा। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए नवीन योजनाएँ बनानी होंगी कि अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यकों को विकास के लाभ को समान रूप से साझा करने का अधिकार मिले। इन सभी तबकों का पहला दावा संसाधनों पर होना चाहिए। केन्द्र सरकार के पास अनगिनत अन्य ज़िम्मेदारियाँ हैं। हमें देश के समग्र संसाधन को सभी तबकों की माँग के अनुरूप समायोजित करना होगा। |
साफ़ है कि नरेन्द्र मोदी ने अपने निख़ालिस झूठ के ज़रिये पूर्व प्रधानमंत्री का न सिर्फ़ चरित्र हनन किया बल्कि साम्प्रदायिक उन्माद भी फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मोदी जी और बीजेपी के लिए ये कोई नयी बात नहीं। लेकिन बेईमान चुनाव आयोग तो हाथ पर हाथ धरे बैठा है। इसीलिए अबकी बार भारत के 90 करोड़ मतदाताओं को न सिर्फ़ मोदी सरकार की किस्मत का फ़ैसला करना है, बल्कि चुनाव आयोग को भी सबक सिखाना होगा। इसकी मिलीभगत से ही बड़ी संख्या में मुसलमानों ने नाम वोटर्स लिस्ट ग़ायब हो रहे हैं। ज़िन्दा लोगों को मृत बताकर उनका मताधिकार छीना जा रहा है। ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग पर लगे सवालिया निशानों की बातें तो अपनी जगह पर हैं ही।
मिट्टी में मिली चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा
मोदी सरकार ने दो चुनाव आयुक्तों, अशोक लवासा और अरूण गोयल के ऐसे कान ऐंठे कि दोनों ही इस्तीफ़ा देकर चलते बने। अशोक लवासा तो मुख्य चुनाव आयुक्त बनने ही वाले थे। इनका सबसे बड़ा कसूर ये था कि इन्होंने साफ़ बोल दिया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 के लोक सभा चुनाव के दौरान कई बार आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया। ये रहस्य ही है कि मोदी के चहेते रहे अरूण गोयल, क्यों रातों-रात इस्तीफ़ा देने को मज़बूर हुए? इनके चक्कर में ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया को सुधारने का आदेश दिया। लेकिन मोदी सरकार ने क़ानून बनाकर आदेश पलट दिया तो चुनाव से ऐन पहले दो और बेईमानों को चुनाव आयुक्त बना दिया जो मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की तरह ‘मालिक’ के सामने सिर्फ़ दुम हिला रहे हैं।
ज़ाहिर है, अबकी बार जनता को ही लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए मतदान करना है। उसे ही तय करना है कि जीत उसकी होगी या संविधान और लोकतंत्र के हत्यारों की? जनता को देखना होगा कि क्या चुनाव आयोग ‘मोदी का परिवार’ बनकर विपक्ष के प्रति हो रही ज़्यादतियों को न सिर्फ़ जारी रखेगा बल्कि बढ़ावा भी देगा? ऐसे भ्रष्ट चुनाव से तो अच्छा होता कि गुजरात में सूरत सीट की तरह चुनाव आयोग समूचे ‘मोदी परिवार’ को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दे। ‘असंवैधानिकता’ का अब देश में मोल ही क्या रह गया है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं, टीवी चैनलों में संपादक रहे हैं।)
Election Commission became the killer of democracy


