सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में हुई धाँधली को ‘लोकतंत्र की हत्या’ बताया था। लेकिन अब तक न तो हत्या की सुपारी लेने वाले अनिल मसीह पर कोई कार्रवाई हुई और ना ही हत्या की साज़िश रचने वाले सरगनाओं तक क़ानून के लम्बे हाथ पहुँच सके। नतीज़तन, लोकतंत्र की हत्या के नये-नये चेहरे सामने आते ही जा रहे हैं। पहले मध्य प्रदेश में खुजराहो सीट पर विपक्ष की चुनौती पर पानी फेरा गया और फिर इससे भी आगे बढ़कर गुजरात की सूरत सीट पर बीजेपी उम्मीदवार को ‘निर्विरोध निर्वाचित’ घोषित कर दिया गया। अरूणाचल विधानसभा की 60 में से 10 सीटों पर तो बीजेपी के उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध चुने जा चुके हैं।

मौजूदा चुनावी मौसम में नफ़रती बयानों के रूप में लोकतंत्र की हत्या का जाना-पहचाना चेहरा फिर से ख़ूब उत्पाद मचा रहा है। इस पर नकेल कसने का ज़िम्मेदारी निभाने में चुनाव आयोग बिल्कुल निकम्मा और बेईमान साबित हो रहा है। यही हाल राज्यों के पुलिस-प्रशासन और गोदी मीडिया का भी है। सभी संस्थाएँ ख़ामोशी से संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वालों की करतूतें देख रही हैं। विपक्ष की बातों को कहीं पहुँचने ही नहीं दिया जा रहा। न्यायपालिका भी स्वतः संज्ञान लेने से परहेज़ कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट का सख़्त आदेश भी बेअसर

महज साल भर पहले 28 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस के. एम. जोसेफ़ और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना की खंडपीठ ने दिल्ली और हरिद्वार में दिये गये नफ़रती भाषणों के सिलसिले में कहा था कि देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बनाये रखने लिए नफ़रती बयान यानी hate-speech के मामले में पुलिस को किसी FIR का इन्तज़ार किये बग़ैर स्वतः संज्ञान से यानी suo moto कार्रवाई करनी चाहिए। खंडपीठ ने सभी पुलिस प्रमुख को निर्देश दिया कि वो अपने मातहत सभी अफ़सरों को सूचित करें कि नफ़रती बयानों के मामलों में फ़ौरन क़ानूनी कार्रवाई सुनिश्चित हो क्योंकि इसमें हुई कोताही को अदालत की अवमानना समझा जाएगा।

इसी फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि नफ़रती बयान के मामले में भारतीय न्याय संहिता के चार प्रावधानों के अनुसार त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए। ये प्रावधान हैं – धारा 153A (धर्म के नाम पर विभिन्न समूहों को दुश्मनी के लिए उकसावा), धारा 153B (राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करना), धारा 505 (सार्वजनिक रूप से शरारत करना) और धारा 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण हरक़त करना)।

ख़ामोश तमाशबीन बना सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के ऐसे स्पष्ट आदेश के बावजूद नफ़रती भाषण बेरोकटोक जारी हैं। आये दिन सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हो रही है और वो ख़ामोशी से तमाशबीन बना हुआ है। चुनावी माहौल में तो कोई रोज़ ऐसा नहीं बीत रहा जब नफ़रती बयान सुर्खियाँ ना बटोर रहे हों। चुनाव आयोग भी गोदी मीडिया की तरह बिक चुका है। इसे तो संविधान से ज़्यादा मोदी जी की नाराज़गी की चिन्ता खाये जा रही है। लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट में तैनात मौजूदा 33 जजों में से कोई नहीं जानता कि चंडीगढ़ की तरह सूरत और अरूणाचल प्रदेश में बीजेपी ने चुनाव का अपहरण कर लिया है।

उल्टी हवा को देख विपक्ष का सफ़ाया

सूरत में बीजेपी के उम्मीदवार को निर्विरोध जिताने के लिए काँग्रेस और बीएसपी समेत सभी आठ उम्मीदवारों का नामांकन की ख़त्म करवा लिया गया। पूरा घटनाक्रम इतना नाटकीय रहा कि मानो किसी ने बीजेपी के सभी विरोधियों की कनपटी पर पिस्तौल तान रखी हो कि चुनाव से हट जाओ, नहीं तो दुनिया से ही हटा दिये जाओगे। ज़िला कलेक्टर डॉ सौरभ पारधी ने भी ‘ऊपर के इशारे पर गोली चला’ दी। सारे क़ायदे-क़ानून गये भाड़ में। जब चुनाव आयोग में ही हिम्मत नहीं रही कि वो चूँ तक भी कर सके तो बेचारे कलेक्टर की तो औक़ात ही क्या है!

जानकार बता रहे हैं कि दशकों से बीजेपी का मज़बूत गढ़ रहे सूरत में अबकी बार उल्टी हवा बह रही थी। बीजेपी के ख़िलाफ़ जो भी लड़ता, वही जीत जाता। इसीलिए मोदी-शाह ने तय किया कि सूरत में किसी की क़ीमत पर चुनाव ही नहीं होना चाहिए। लिहाज़ा, विरोध की सभी आवाज़ों को कुचल दिया गया और आनन-फ़ानन में 18वीं लोकसभा के लिए पहला सांसद चुन लिया गया। चुनाव आयोग की बेईमानी तो जगज़ाहिर है, लेकिन न जाने क्यों सुप्रीम कोर्ट ने अब तक इसका स्वतः संज्ञान नहीं लिया। क्या सुप्रीम कोर्ट को लोकतंत्र की हत्या दिख नहीं रही या फिर वो भी सत्ता से डरा हुआ है? गुजरात में बीजेपी बिन्दास है। वहाँ मोदी-शाह का मंसूबा सभी 26 सीटें हथियाने का जो है।

बेईमान चुनाव आयोग ने फेरी नज़र

खजुराहो के मौजूदा सांसद विष्णु दत्त शर्मा, मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष हैं। 2019 में क़रीब 5 लाख वोट से जीते शर्मा को भनक लगी कि विपक्ष की ज़ोरदार चुनौती मिली तो आबकी बार बाज़ी लड़खड़ा भी सकती है। आनन-फ़ानन में पन्ना के ज़िला कलेक्टर सुरेश कुमार ने इंडिया गठबन्धन की साझा और समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन ऐसे तकनीकी आधार पर रद्द कर दिया जिसका समय रहते समाधान सम्भव था। बेईमान चुनाव आयोग ने पूरे घटनाक्रम से नज़रें फेर लीं। अरूणाचल में बीजेपी का ऐसा ख़ौफ़ रहा कि 10 सीटों पर उसके ख़िलाफ़ एक अदद उम्मीदवार भी नहीं मिला। क्या चुनाव आयोग इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव मानकर ख़ुश तथा सन्तुष्ट होगा? क्या सुप्रीम कोर्ट को इसमें 75 वर्षीय लोकतंत्र की हत्या नहीं दिख रही?

चुनाव बग़ैर लोकतंत्र कहाँ?

सुप्रीम कोर्ट को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों में नफ़रती बयान का नहीं दिखना और स्वतः संज्ञान लेकर उनके या नौकरशाही के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए आगे नहीं आने की प्रवत्ति बेहद चिन्ताजनक है। डर लग रहा है कि क्या उसकी आँखों के सामने ही लोकतंत्र और संविधान की हत्या के बाद अन्त्येष्टि भी हो जाएगी? सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर स्वागत योग्य फ़ैसला दिया ज़रूर लेकिन वो अधूरा ही बना हुआ है। राजनीतिक दलों को हुई असंवैधानिक कमाई उनके पास ही रहने दी गयी। अगर क़ानून असंवैधानिक था तो उसकी कमाई अपराधिक क्यों नहीं थी? दुनिया के इस सबसे बड़े घोटाले की जाँच को लेकर चुनाव आयोग के अलावा सुप्रीम कोर्ट में भी कोई सुगबुगाहट नहीं हुई। उल्टा प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री कह चुकी है कि असंवैधानिक ठहराया गयी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना शानदार थी। इसीलिए इसे पुनर्जीवित किया जाएगा।

बेलगाम हैं बीजेपी शासित राज्य

सबसे ख़तरनाक तथ्य है कि बीजेपी शासित राज्यों में ही मुसलमानों के लिए 75 फ़ीसदी नफ़रती बयान दिये जाते हैं। नफ़रती भाषणों पर नज़र रखने वाले वाशिंगटन स्थित ‘इंडिया हेट लैब’ नामक ग़ैर-सरकारी संस्था ने बताया कि 2023 में उसने मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फ़ैलाने वाली 668 घटनाएँ रिकॉर्ड कीं। पहली छमाही में 255 तो दूसरी छमाही में 413 प्रसंग। ज़ाहिर है, चुनाव के नज़दीक आते ही नफ़रती बयानों में 62 प्रतिशत का ज़बरदस्त उछाल आया।

क्या उपरोक्त प्रसंग बता नहीं रहे कि ‘मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी’ में स्वतंत्र चुनाव का अपहरण हो चुका है? साफ़ है कि भारतवासी यदि अब भी नहीं जागे तो 4 जून 2024 को मरनासन्न लोकतंत्र और संविधान की अन्त्येष्टि तय है। युवा गाँठ बाँध लें कि उन्हें लोकतंत्र की बहाली के लिए फासीवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ एक और जंग-ए-आज़ादी झेलनी पड़ेगी। इसमें चीन के तियनमन चौक जैसी बर्बरता के अलावा रूस और उत्तर कोरिया जैसा दमन निश्चित है। भारत अब पाकिस्तान, म्यांमार, इरान और अफ़ग़ानिस्तान जैसा देश बनने की दहलीज पर है। 75 साल में हमने जो भी कच्ची-पक्की तरक्की की, वो अब उल्टी दिशा में घूमने वाली है। भारत फिर से टूटने की दिशा में बढ़ने वाला है।

मुकेश कुमार सिंह

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं। टीवी चैनलों में संपादक रहे हैं)

Supreme Court is silently watching the murder of democracy