रेयाज मलिक

मंडी, पुंछ

केंद्र सरकार के तीन साल पूरे हो चुके हैं। सरकार द्वारा उनकी उपलब्धियों को बताने के लिए बहुत कुछ है। लेकिन लोकतांत्रिक भारत का ताज कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर का सीमावर्ती जिला पुंछ जो इतिहास के पन्नों में विशेष स्थान रखता है, उसकी स्थिति आज भी ऐसी है जो इन उपलब्धियों पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए काफी है।

आपको बता दें कि पहले यह जिला खुद एक राज्य था, जहां कई वर्षों तक राजाओं और बादशाहों का शासनकाल रहा है। जिला पुंछ के नगरखास में स्थित राजभवन इसकी झलक के लिए काफी है।

पुंछ की तहसील मंडी के ब्लॉक लुरन जिसे कभी "लोहरकोट" नाम से जाना जाता था। लुरन की पंचायत चखड़ी बन दस वार्डों पर आधारित है।

प्राकृतिक सुंदरता का आलम यह है कि इसके चारों ओर के सुंदर जंगल इसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं।

ऊंची बर्फीले चोटियों के दामन में यह बस्ती सदियों से आबाद है।

38 वर्षीय मोहम्मद फारूक और 40 वर्षीय मोहम्मद सख़ी जिनके बदन पर मामूली कीमत के सादे कपड़े और चहरे पर निराशा थी। उनसे बातचीत के दौरान पता चला कि वह इसी गांव के निवासी हैं।

उन्होंने आश्चर्य के साथ- साथ खुशी से कहा कि

"आज तक यहाँ कोई भी हमारी आवाज सुनने नहीं आया था।"

उन्होंने अपनी बस्ती के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया

"यहां सरकार की ओर से दी जाने वाली किसी भी सुविधा या योजना का एक प्रतिशत भी हिस्सा हम तक नहीं पहुंच पाता। सरकारी राशन लेने के लिए लोहीलबीलह जाना पड़ता है जिसके लिए यहां से छह-सात किलोमीटर से भी ज़्यादा का सफर एक ओर से तय करते हैं। पहाड़ी रास्ते के कारण एक दिन की आवश्यकता होती है। रास्ता खतरनाक जंगलों से होकर गुजरता है। कारणवश समूहों में सफर करते है। अकेले सफर करना खतरे से खाली नहीं।"

उन्होंने कहा

"चखड़ी रतन काठाँ, फुंटा गली, बलीदह रोड़ा से अव्वल बन, दोम बन, सोम बन, और नागानाड़ी तक हर एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले तक पहुँचने के लिए घंटों की आवश्यकता होती है"।

अव्वल बन का एक निवासी चखड़ी के फुनटाँ सड़क में यात्रा के दौरान बैठा था। यहाँ की ऊंचाई का हाल यह है कि यहाँ से पूरी तहसील मंडी की सुंदरता को देखा जा सकता है।

उक्त व्यक्ति ने अपनी लड़खड़ाती जुबान में दास्तान बयान की जो अक्सर लोग किस्से-कहानियों में सुनते चले आ रहे हैं।

उसकी बातों से ऐसा महसूस हो रहा था मानो उर्दू भाषा और साहित्य का प्रसिद्ध किस्सा "चहार दरवेश” शुरू कर दिया गया हो। उसने कहा

"आज भी हम लोग प्राचीन समय की तरह चिमनी और दहनी (एक प्रकार की लकड़ी जिसे जलाने पर प्रकाश प्राप्त होता है) का इस्तेमाल करके प्रकाश प्राप्त करते हैं। जिस कारण घरों में ईंट के भट्टे दिखाई देते हैं। यहां न बिजली की व्यवस्था है, न पेयजल, हाल यह है कि हमारे यहां ऐसे कई बुजुर्ग हैं जिन्होंने आज तक बिजली का बल्ब भी नहीं देखा"।

नागा नाड़ी तीन बन का पूरा क्षेत्र चारों ओर से बर्फ से ढकी चोटियों और घने जंगलों से घिरा है, जहां इंसान तो क्या माल-मवेशी का अकेला बाहर निकालना भी मौत को दावत देना है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में कोई भी सरकारी अधिकारी तो दूर की बात है छोटे कर्मचारी भी जाने से कतराते है।

आश्चर्य तो इस बात का है कि आज तक मंडी से लुरन जाते हुए किसी भी राजनीतिक नेता को यह क्षेत्र नज़र नहीं आ रहा है।

पंचायत के नागा नाड़ी अव्वल दोम- सोम बन गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। न सड़क, न बिजली, न स्वास्थ्य, न पंचायत, न माल-मवेशी, न एग्रीकल्चर, न बाढ़ नियंत्रण, न बाल विकास, न शिक्षा और न कोई अन्य विभाग। संक्षेप में कहें तो सरकारी विभागों में से किसी का भी अस्तित्व यहां नहीं है।

स्थानीय निवासी मिस्त्री सख़ी मोहम्मद ने बताया कि

"हमारे गांव की चिंता किसी को नही है, न ही आज तक कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या राजनीतिक नेता आए हैं, न आना पसंद करते हैं। नगरों में बैठकर कागजों पर खानापूर्ति की जाती है। जमीनी स्तर पर हम लोग सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं"।

उन्होंने कहा कि

"लोकतंत्र में किसी गांव को लोकतंत्र के अधिकार से दूर रखना अन्याय है"।

उनका कहना है कि

"सदियों से यहां के लोग गुलामी की जिंदगी गुज़ारने को मजबूर हैं लेकिन सरकार को इसकी परवाह नहीं। इस क्षेत्र को सड़क की सख्त जरूरत है। सड़क न होने के कारण हर साल बीमारों को पहाड़ी के खतरनाक रास्तों से कंधो पर उठाकर ले जाने वाले कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं। घायल अस्पताल तक न पहुंचने की वजह से दम तोड़ देते हैं"।

रेयाज मलिक मंडी, पुंछस्थानीय लोगों ने अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए बताया कि यहां उच्चबन, मध्यम बन, प्रथम बन, नागा नाड़ी के स्कूलों में तैनात कुछ शिक्षक तो आते ही नहीं। जबकि कुछ महीने में, तो कुछ सप्ताह में नजर आते हैं। शिक्षा विभाग को मूर्ख बनाने के लिए उन लोगों ने यहां जमीनें खरीद कर अपनी पुशतैनी और ए एल सी ( एक्चुएल लैंड सर्टिफिकेट) बनाकर नौकरी प्राप्त की हैं और खुद पुंछ शहर में अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा दिलवा रहे हैं। सरकारी खजाने से वेतन प्राप्त करके हमारे बच्चों के जीवन को अंधेरे में डाल रहे हैं। क्योंकि उन्हे डर है कि हमारे बच्चे शिक्षित हो जाएंगें तो उनके बच्चों का भविष्य दांव पर न लग जाए। यही कारण है कि यहां करीब पांच हजार की आबादी में से केवल तीन रहबरे तालिम(शिक्षा मित्र) शिक्षक ही हैं। बाकी किसी भी विभाग में यहाँ कोई कर्मचारी नहीं है।

सार्वजनिक परेशानियों को जानने के बाद सरकारी विभागों और उनके अधिकारियों की राय जानने के लिए जब ब्लॉक विकास अधिकारी से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की गई तो किसी बैठक में व्यस्त होने के कारण उनसे संपर्क नहीं हो सका। लेकिन आंगनबाड़ी अधिकारी (सी डी पी ओ) से उक्त गांव के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब दिया कि

“मुझे इस क्षेत्र में आए हुए केवल एक महीना हुआ है, मेरी कोशिश है कि हम अपनी एक टीम बनाकर क्षेत्र का दौरा करें।हम चरखा के ग्रामीण लेखकों से भी उम्मीद के साथ अनुरोध करते हैं कि आप भी इन क्षेत्रों के कल्याण के लिए हमारा सहयोग करें”।

बिजली विभाग के असिसटेंट एक्जीक्यूटिव इंजीनियर (AEE) ने सफाई देते हुए कहा कि आने वाले दो वर्षों में क्षेत्र के सभी घरों को बिजली दिलाई जाएगी।. अब यह उनका वादा है या राजनीतिक नेताओं की भाषा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन स्थानीय ग्रामीण व सरहदी निवासियों की लोकतांत्रिक सरकार से यही मांग है कि जो अधिकार शहरी बच्चों को दिए जाते हैं कम से कम उसका पचास प्रतिशत हिस्सा तो यहां के गरीब बच्चों को भी शिक्षा के मामले में मिले। शेष बिजली, पानी, स्वास्थ्य, आंगनवाड़ी, रूरल डोलपमनट, हारटिकलचर, कृषि और अन्य सुविधा को जनता तक पहुंचाने के लिए पहली फुरसत में इस क्षेत्र को सड़क के संपर्क मे लाना चाहिए।

(चरखा फीचर्स)