फ़ासिज़्म के खतरे के खिलाफ जुटे सामाजिक कार्यकर्ता
फासीवादी ताकतें, एनजीओ और व्यक्ति को भी निशाना बना रही हैं-शबनम
नई दिल्ली। फ़ासिज़्म से देश का न सिर्फ ताना बना टूटता है बल्कि लोकतन्त्र की विरासत भी चकनाचूर हो सकती है। आगामी लोकसभा चुनाव में इसी खतरे को भाँपते हुये, आगे की संघर्ष की रणनीति बनाने के लिए दिल्ली के एसपीडब्ल्यूडी कान्फ्रेंस हॉल में भारत के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता जुटे। इस बैठक में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश,राजस्थान आदि कई प्रान्तों के लोगों ने शिरकत कर गहन विचार विमर्श किया तथा इन ताकतों को रोकने के लिए रणनीति भी तैयार की।

बैठक में अपनी बात रखते हुये इंसाफ के अनिल चौधरी ने चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि सांप्रदायिकता की जड़ें काफी गहराई में पहुँच चुकी हैं और ऐसा कर पाना सिर्फ आरएसएस के बूते की बात नहीं है। जाट जातियाँ हमेशा से धर्म निरपेक्षता की पैरोकारी करती आ रही थीं। जब यह जाति भी फ़ासिज़्म की हमराह हो गयी तो हमें यह मानना पड़ेगा कि पानी गर्दन से ऊपर होता जा रहा है।

किरण ने कहा कि लोकतन्त्र और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर हमें एक जुट होकर अलायंस बनाकर संघर्ष करना होगा। इसके साथ ही मुसलमानो के रोज़ी रोटी और शिक्षा के मुद्दे को मजबूती से उठाना होगा।

अनहद की शबनम हाशमी ने अरविंद केजरीवाल ओर नरेंद्र मोदी दोनों को ही कॉरपोरेट का खिलौना कहा। उन्होंने कहा कि इनसे भी सावधानी की जरूरत है। उनका कहना था कि कुमार विश्वास पूरी तरह सांप्रदायिक है। फासीवादी ताकतें, एनजीओ और व्यक्ति को भी निशाना बना रही हैं।

संतोष का कहना था कि हमे सिर्फ तानाशाही को रोकना ही नही लोकतन्त्र को भी बचानाहै। जाकिया ने कहा कि हमें आत्म निरीक्षण करना होगा की हम धर्मनिरपेक्षता को मुख्यधारा में क्यों नही ला पाये।

योगेश का आरोप था अरविंद केजरीवाल को धर्मनिरपेक्षता पर बात करते नहीं देखा। दीपक का कहना था कि हमें अल्प समय में ही उपरोक्त विषय पर कार्य करना पड़ेगा।

कार्यक्रम के आयोजक राम पुनियानी के प्रस्ताव पर फरवरी मे राष्ट्रीय सम्मेलन करने का निर्णय लिया।

अयोध्या के युगल किशोर शरण शास्त्री ने कहा कि हम यात्राओं के माध्यम से सांप्रदायिकता को चुनौती दे सकते हैं। उन्होंने लोगो को जानकारी भी दी कि 5 मार्च से बिहार सद्भावना यात्रा निकली जा रही है जिसका 13 मार्च को पटना मे समापन किया जायेगा। बैठक में देश भर के चार दर्जन से अधिक सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।