लोकतांत्रिक और प्रगतिशील बिहार वामपंथ ही दे सकता है
लोकतांत्रिक और प्रगतिशील बिहार वामपंथ ही दे सकता है
मानव सभ्यता के उस पड़ाव का इंतज़ार उन सभी को बेसब्री से रहेगा और खासकर औरत जाति को, जहाँ एक युवा लड़की एक लड़के से अपने समाज में कहे कि आई लव यू ( I LOVE you ) और उस समाज को ख़ुशी हो और दोनों की धूमधाम से शादी हो जाए।
वर्तमान सामंती - पूंजीवादी समाज में मर्द, औरत के लिए जो राय बनाता है, उस राय के साथ औरत जीवन भर यात्रा करती रहती है। व्यभिचार का आरोप मर्द लगाता है और खाप अपनी खूनी फैसले के साथ हुक्के के इर्द-गिर्द बैठ जाता है और धुओं के छल्ले की तरह औरत का भाग्य भी गोल-गोल बन जाता है।
औरत को धर्म एक भोग्य की तरह पुरुष-सामाज में पेश करता है। धर्म अपनी मूल प्रकृति में औरत-विरोधी होता है। धर्म की मानसिक दासता से औरत जिस दिन मुक्ति पा लेगी, उस दिन मानव-सभ्यता के बगीचे में खूबसूरत फूल खिल उठेंगे। ये तभी संभव है जब औरत की पहचान को पुरुष भी इंसान के रूप में देखना शुरू कर दे।
मानव-सभ्यता का ये नैसर्गिक दिन तभी आएगा, जब जाति और धर्म का असर समाज पर न हो या इन दोनों का क्षय हो जाए, जब बर्बर खाप की जगह एक खूबसूरत सामाजिक इकाई बने। संभव तो है, लेकिन सामंती-पूंजीवादी राजनीति इस अस्मिता की विभाजक रेखा को हमेशा ज़िंदा रखना चाहेगी, क्योंकि सत्ता उसे चाहिए।
इस देश में आज़ादी के बाद से यही हो रहा है। बिहार विधानसभा के चुनाव में भी ऐसा ही हो रहा है, लेकिन गणतंत्र की स्थापना सबसे पहले बिहार में हुयी थी। मतलब, बिहार में जाति और धर्म की जगह मनुष्यों का शासन था। क्या बिहार में अब ये संभव नहीं ?
बिहार चुनाव में यदि जाति और धर्म का ही बोलबाला रहा तो न हम उस लिच्छिवियों के समय का बिहारी गणतंत्र ला सकते हैं बल्कि बाहुबलियों का शासन होगा जो भाजपा-शासित या रजद शासित सरकार को चलाता रहेगा।
जाति-धर्म-कट्टरता से मुक्त बिहार के लिए वामपंथी दलों की तरफ मतदाताओं को मुड़ना चाहिए। मतदाता की प्रगतिशीलता इसी में है और तभी बिहार प्रगतिशील बन पायेगा।
सत्य प्रकाश गुप्ता


