वन-श्रमजीवी समुदायों की ओर से ज़ारी पुरी घोषणा पत्र
वन-श्रमजीवी समुदायों की ओर से ज़ारी पुरी घोषणा पत्र
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के पुरी-उड़ीसा में दिनाँक 3-5 जून 2013 को आयोजित स्थापना सम्मेलन में देश के 20 राज्यों के वन-श्रमजीवी समुदायों की ओर से ज़ारी किया गया पुरी घोषणा पत्र
दिनाँक 3 से 5 जून 2013 को पुरी-उड़ीसा में आयोजित अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के स्थापना सम्मेलन में भारत देश के 20 राज्यों के वनाश्रित समुदायों की ओर से उनका प्रतिनिधित्व कर रहे हम सामुदायिक प्रतिनिधिगण यह घोषणा करते हैं किः-
उड़ीसा में हम यह स्थापना सम्मेलन इसलिये कर रहे हैं कि यहाँ राज्य के जनविरोधी रवैये और बाज़ारवादी दमन के खिलाफ जनजातियों व अन्य वनाश्रित एवम् प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित समुदायों के बहुत सारे जन-संघर्ष चल रहे हैं। दूसरी ओर बड़ी-बड़ी कम्पनियों और सरकार के गठजोड़ ने इन आन्दोलनों का दमन करके लगातार कुचलने की प्रक्रिया को भी तेज़ कर दिया है और इन पर कातिलाना हमलों की बौछार की जा रही है। लेकिन इसके बावजू़द हमारे साथी अपनी जान की परवाह ना करते हुये अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिये सतत् रूप से संघर्षरत हैं। हम यहाँ पुरी में अपने यूनियन के इस स्थापना सम्मेलन में यहाँ के साथी संगठनों के संघर्षों का समर्थन करते हैं और बड़ी कम्पनियों और सरकार के गठजोड़ द्वारा अंजाम दी जा रही इन जनविरोधी कार्रवाईयों की भरपूर निन्दा और भर्त्सना करते हैं।
हम लाल, नीले व हरे रंग को प्रतीक मानते हुये दुनिया भर में चल रहे है संघर्षो के रंगों को एकजुट करते हुये इनमें शामिल करते हैं।
हम बिरसा मुंडा, कार्ल मार्क्स, अयन काली, भगत सिंह, सावित्री बाई फुले और बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जैसे सभी क्रान्तिकारियों, विचारकों को अपना आदर्श मानते हैं।
असंगठित क्षेत्र के वनाश्रित समुदायों के किसी मंच का यूनियन में तब्दील होना वनाधिकार आन्दोलनों के इतिहास में एक ऐतिहासिक पहल है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित आदिवासी दलित महिला वन-श्रमजीवियों की अगुआई में रखा गया एक महत्वपूर्ण कदम है। यह महत्वपूर्ण कदम भारत के 15 करोड़ से अधिक वनों पर निर्भरशील वन-श्रमजीवी समुदायों के लोग जिन्होंने परम्परागत तरीके से अपने प्राकृतिक संसाधनों की अब तक सुरक्षा की है, उनकी अगुआई में उनके इन तमाम प्राकृतिक संसाधनों पर वनाधिकार कानून-2006 के तहत मान्यता दिये गये मालिकाना हक़ को सुनिश्चित करने में कारगार साबित होगा।
हम प्राकृतिक संसाधनों के निजिकरण के खि़लाफ़, वन-श्रमजीवी समुदायों के अधिकार एवम् न्याय के लिये एशिया एवम् दुनिया के पैमाने पर संघर्षरत संगठनों-जनसंगठनों के साथ समन्वय स्थापित करके अपने संघर्ष को बड़े पैमाने पर लेकर जायेंगे और दुनिया के मज़दूर एक हैं की परम्परा को मज़बूत करते हुये संघर्ष करेंगे।
वन-श्रमजीवी समुदायों के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकारों को लेकर चल रहे आन्दोलनों के साथ समन्वय स्थापित करने की पहल करते हुये शासक वर्ग की जनविरोधी नीतियों और उनके द्वारा किये जा रहे दमन के खिलाफ़ अपने संघर्षों को मज़बूत करेंगे।
हम अपने यूनियन के तहत महिला साथियों की अगुआई में संसाधनों पर मालिकाना हक़ में महिलाओं की पूर्ण भागीदारी के मसलों को लेकर भी संघर्ष करेंगे।
हमारा यूनियन सदैव अहिंसक रास्तों पर चलकर संवैधानिक मूल्यों को मानते हुये अपने संघर्षों को आगे लेकर जायेगा।
हमारा यूनियन वन-श्रमजीवी समुदायों के आजीविका, सामाजिक एवम् आर्थिक सुरक्षा के अधिकारों को भी सुनिश्चित करने के लिये सतत् संघर्ष करेगा।
हमारा यूनियन देश भर में चल रहे भू-अधिग्रहण, महिला-आदिवासी-दलित उत्पीड़न, विस्थापन के खिलाफ एवम् भूमि-सुधार और सामाजिक सुरक्षा के सवाल को लेकर चल रहे सभी आन्दोलनों का समर्थन करता है।
हमारा यनियन वनाश्रित समुदायों के वन आधारित आजीविका, वनभूमि पर समूहिक हक़ एवम् सामुदायिक वन स्वशासन के सवाल प्रमुखता से उठा कर संघर्ष करेगा।
हम यह मानते हैं कि धरती माँ जिसका तात्पर्य ज़मीन, जंगल, पानी, पहाड़ और उस पर रहने वाले तमाम प्राणियों के सम्मिलित रूप को लेकर है, उसे सुरक्षित रखना ज़रूरी है, इसलिये हम उसके साथ मुनाफाखोर कम्पनियों और सरकारों द्वारा की जाने वाली किसी भी तरह की छेड़खानी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
हम यह मानते हैं कि हमारा संघर्ष सिर्फ अपने लिये ही नहीं है, बल्कि हमारा संघर्ष पूरी पृथ्वी एवम् दुनिया को बचाने व पर्यावरणीय न्याय के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर सामूहिक अधिकार और इन पर स्वशासन स्थापित करने का संघर्ष है, जिसे हम अपने यूनियन के तहत निरन्तर आगे लेकर जायेंगे।
हम पूँजीवाद, सामन्तवाद, ब्राह्मणवाद एवम् पितृसत्तावाद का विरोध करते हुये अधिकार, समानता एवम् न्याय आधारित समाज की स्थापना के लिये संघर्षरत रहेंगे।
आज देश में सभी जगहों पर सरकार जनान्दोलनों एवम् जनवादी संघर्षों को माओवाद व नक्सलवाद का नाम देकर कुचलने का प्रयास कर रही है, जिसकी हम कड़ी निन्दा करते हैं और इसके खिलाफ़ संवैधानिक मूल्यों के आधार पर अपने यूनियन के संघर्ष को जनवादी संघर्षों की परम्परा के तहत आगे लेकर जायेंगे।
वनों में पेड़ हम लगाते हैं और इनका लाभ कार्बन क्रेडिट और जाईका जैसी विदेशी योजनाओं के तहत कोई और ले जाता है, हम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे इस राजनीतिक खेल का कड़ा विरोध करते हैं और इस खेल के खिलाफ भी संघर्ष करेंगे।
हम पुरज़ोर माँग करते हैं कि उड़ीसा जैसे देश के कई राज्यों में जो भी देशी-विदेशी कम्पनियां जो कि आदिवासी क्षेत्रों में वहाँ के जल-जंगल-ज़मीन पर कब्जा जमाने की होड़ में लगी हुयी हैं, उन्हें तुरन्त वहाँ से हटाया जाये और प्राकृतिक संसाधनों को ग्रामसभाओं के सुपुर्द किया जाये।


