सांप्रदायिक विभाजनकारी पुनर्वास नीति को
नहीं बर्दाश्त करेगा अवाम- रिहाई मंच
पांच-पांच लाख रुपए की सौदेबाजी कर पीड़ितों को
अपने घर-गाँव से बेदखल कर रही है अखिलेश सरकार- रिहाई मंच
लखनऊ 11 नवंबर 2013। पिछले दो महीने से अधिक समय से मुजफ्फरनगर, शामली व आस-पास के जिलों में सांप्रदायिक हिंसा की वजह से लाखों की संख्या में मुस्लिम परिवार के लोग विस्थापित होकर राहत कैंपों में रहने को मजबूर हैं। प्रदेश सरकार पिछले दो महीने में सांप्रदायिक हिंसा के जिम्मेवारों के खिलाफ जहाँ कार्यवाई करने में असफल रही है, तो वहीं पीड़ितों को मुआवजा, पुनर्वास जैसे मूलभूत सवालों को हल करने में नाकाम साबित हुयी हैं। प्रदेश सरकार की नीतियाँ साफ कर रही हैं कि वह पीड़ितों को इंसाफ से वंचित रखना चाहती है। रिहाई मंच ने कहा कि अखिलेश सरकार के श्रम मंत्री शाहिद मंजूर ने मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों पुनर्वास के सवाल पर गैर जिम्मेदाराना बयान देकर जले पर नमक छिड़कते हुये सपा का नमक अदा करते हुये कहा कि हलफनामा इस बात के लिये प्रदेश सरकार ले रही है कि मुआवजा पाने वाला असली है या नकली। इससे यह बात साफ हो जाती है कि अखिलेश सरकार के इशारे पर मुस्लिम मंत्री मुआवजे के सवाल पर गंदा सियासी खेल-खेल रहे हैं। इसका खामियाजा शाहिद मंजूर समेत सपा के मुस्लिम विधायकों और मंत्रियों को आगामी लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ेगा। मंच ने कहा कि मलियाना से लेकर हाशिमपुरा तक दंगों के सवाल पर बने आयोगों की रपटों पर मुलायम सिंह राजनीतिक पैतरेबाजी और षडयंत्र करते रहे हैं। वैसी ही कोशिशें मुजफ्फरनगर दंगे पर बने सहाय आयोग पर ही शुरु हो गयी है। दंगा पीड़ितों के जिन्दगी और इंसाफ से जुड़े सहाय आायोग के कार्यकाल को बार-बार बढ़ाना यह साफ करता है कि अखिलेश की नियत दंगा पीड़ितों के इंसाफ पर साफ नहीं है। मंच ने कहा कि सहाय आयोग का हश्र मलियाना, हाशिमपुरा जैसा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। क्योंकि इसके पहले भी निमेष कमीशन की रपट पर सरकार की राजनीतिक पैतरेबाजी को ध्वस्त करते हुये रिहाई मंच ने विधानसभा के सामने अवाम की जनांदोलन के ताकत के बल पर 121 दिनों तक सड़क पर संघर्ष किया था और सरकार को मजबूर करने का काम किया था।

मंच ने प्रमुख रूप से कहा है कि -

1- प्रदेश सरकार द्वारा जिस तरीके से सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों को 5-5 लाख रुपया पुनर्वास के लिये देने की घोषणा करते हुये अपना गाँव छोड़ने के लिये कहा गया यह, पूरी नीति पीड़ितों को समाज से जेहनी और सामाजिक रुप से विभाजित करने की है। इसके तहत 90 करोड़ रुपए की राशि जनपद मुजफ्फरनगर के ग्राम कुटबा, कुटबी, फुगाना, काकड़ा, मोहम्मदपुर रायंसिंह और मुडभर के दंगा पीड़ितों को व जनपद शामली के ग्राम लाख, बहावड़ी और लिसाड़ के पीड़ितों को दिया जाना था। सरकार द्वारा इस तथ्य की अनदेखी की गयी कि दंगे के कारण 162 गाँव से विस्थापन हुआ, जबकि यह योजना केवल 9 गांवों के पीड़ितों के लिये बनी। इस तरह 153 गांवों के पीड़ितों के साथ सरकार ने विभेद करके पीड़ितों का अनऔचित्य पूर्ण वर्गीकरण कर दिया। ग्राम लिसाड़ में 112 व्यक्तियों के मकानों के जलने का सर्वे जिला अधिकारियों ने किया। किसी एक पीड़ित के भवन का मूल्य अधिकारियों द्वारा यदि 10 लाख रुपया आंका गया है तो उसे केवल पांच लाख रुपया पुनर्वास के नाम पर देकर शपथ पत्र दस्तखत करने के लिये मजबूर करना राज्य सरकार का मनमानापन और पीड़ित के साथ दोबारा सांप्रदायिक हिंसा करने जैसा है। जिसमें राज्य सरकार यह शर्त लगाकर कि वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दोबारा गाँव नहीं लौटेगा और न ही अपनी चल व अचल संपत्ति के नुकसान का मुआवजा लेने के लिये कोई दावा प्रस्तुत करेगा। यह शर्तें पीड़ितों के मूल अधिकार पर राज्य सरकार द्वारा किया गया कुठाराघात है। इसमें यह उल्लेख किया जाना महत्वपूर्ण है कि उक्त 112 मकान जलने वाले व्यक्तियों की सूची में बहुत लोग ऐसे भी हैं जिनके नाम ग्राम लिसाड़ के उन 291 व्यक्तियों की सूची में शामिल नहीं किए गये हैं, जिन्हें 5-5 लाख रुपए देने की घोषणा की गयी है। इंसाफ के लिये लखनऊ आए अताउल्ला पुत्र सुबराती जिनमें से एक हैं। ऐसे अनेक मामले हैं। मोहम्मदपुर राय सिंह निवासी नूर हसन का नाम केवल इस आधार पर लिस्ट में शामिल नहीं किया गया क्यों कि उसका एक मकान कांधला जिला शामली में भी है, जिसमें उसका सबसे छोटा पुत्र रहता है और कांधला में ही पढ़ता। जबकि नूर हसन का पूरा परिवार मोहम्मदपुर रायसिंह में ही निवास करता था, क्या यह औचित्यपूर्ण है कि यदि किसी पीड़ित की सम्पत्ती किसी दूसरे शहर में हो तो उसे इस आधार पर दंगा पीड़ित नहीं माना जायेगा और वह क्या मुआवजा पाने का पात्र नहीं होगा?

2- विधायक संगीत सोम पर से एनएसए का हटाया जाना और इस मामले में सही तथ्यों का राज्य सरकार द्वारा एडवाइजरी बोर्ड के सामने न रखना- दिनांक 29 अगस्त 2013 को शिवम नामक व्यक्ति के फेस बुक एकाउंट पर ‘देखो भाई कवाल में क्या हो गया’ शीर्षक से एक फिल्म लोड की गयी जिसमें दो युवकों की लाश को दिखाया गया है, इन दोनों लाशों को कवाल के सचिन व गौरव की लाशें बताया गया। भाजपा विधायक संगीत सोम ने इसे सबसे पहले शेयर किया और उसके बाद 229 व्यक्तियों ने भी इसे शेयर किया। इस फिल्म को मोबाइल फोनों, सीडी, डीवीडी जैसे माध्यमों से भी वितरित किया गया जिससे जनपद बागपत मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, सहारनपुर और बिजनौर में भी हिंदू युवकों में सांप्रदायिक भावना भड़की और उनके द्वारा हिंसा की वारदातें की जाने लगीं। संगीत सोम ने 31 अगस्त को नंगला मंदौड़ की पंचायत में भड़काऊ भाषण दिया इस संबन्ध में थाना सिकैड़ा में मुकदमा अपराध संख्या 173 सन 2013 मुकदमा दर्ज हुआ। संगीत सोम ने 7 सिंतबर 2013 को पुनः नंगला मंदौड़ की पंचायत में भाषण दिया। उक्त फिल्म और भड़काऊ भाषण से पहले ही हिंदू जनमानस सांप्रदायिक हो चुका था, जो 7 सितंबर 2013 की सुबह से ही लाख से अधिक की तादाद में घातक हथियारों के साथ नंगला मंदौड़ की पंचायत में पहुंचा और रास्ते में इन लोगों ने आते समय कई हिंसक वारदातें की जिसमें कई घायल हुये जिनमें अफसाना और अंसार नामक ड्राइवर की मृत्यु हो गयी। अफसाना पर घातक हमला सुबह 10 बजे थाना शाहपुर क्षेत्र में हुआ, और लगभग 1 बजे दोपहर में नंगला मंदौड़ के महापंचायत के पास ही अंसार की हत्या हुयी। पुलिस द्वारा भड़काऊ भाषड़ देने के मामले में मुकदमा अपराध संख्या 178 सन 2013 दर्ज कराया। पुलिस की छानबीन में उक्त फिल्म अफगानिस्तान में बनाई गयी पाया गया। पुलिस द्वारा यह घोषणा की गयी की इस फिल्म में लाशों को सचिन और गौरव की बताया गया और इस दुष्प्रचार को देखकर जनभावनाएं भड़की लिहाजा पुलिस द्वारा थाना कोतवाली नगर मुजफ्फर नगर में मुकदमा अपराध संख्या 1118 सन 2013 दर्ज कराया जिसमें शिवम और संगीत सोम को मुख्य अभियुक्त बनाया गया।

राज्य सरकार ने भड़काऊ भाषण के मामले में सुरेश राणा विधायक भाजपा व संगीत सिंह सोम विधायक भाजपा के विरुद्ध रासुका के तहत कार्यवाई की। यह कार्यवाई उक्त मुकदमा अपराध संख्या 173 सन 2013 और मुकदमा अपराध संख्या 178 सन 2013 अन्तर्गत थाना सिकैड़ा के आधार की गयी जो कि गवाही के एतबार से न्यायालय में आरोप साबित होने पर ही अभियुक्त सजा के पात्र होते हैं। परन्तु इस मामले में पुलिस के समक्ष एलआईयू और पुलिस कर्मियों ने अपने बयान विवेचक को सही दर्ज नहीं कराए और मुकर गये। जबकि मुकदमा अपराध संख्या 1118 सन 2013 के तहत रासुका की कार्यवाई ही नहीं गयी जो कि एक बड़ा साइबर क्राइम था। जिसमें अभियोजन पक्ष अहम सबूतों के आधार पर अभियुक्तों को सजा दिलाने में सफल हो जाता। संगीत सोम के इस अपराध को विस्तार से एडवाइजरी बोर्ड के सम्मुख राज्य सरकार ने प्रस्तुत नहीं किया बल्कि तथ्यों को छुपाया।

फेस बुक कम्पनी संयुक्त राज्य अमेरिका की कंपनी है जो कि इस मामले में अहम गवाह है। इसलिये विवेचक के आग्रह पर माननीय सीजीएम मुजफ्फरनगर द्वारा एक पत्र संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग को लिखा गया कि वह भारतीय अधिकारियों को फेस बुक कंपनी से साक्ष्य एकत्र करने में मदद करें। यह पत्र राज्य सरकार उत्तर प्रदेश की जानकारी में लाकर, गृह मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा न्याय विभाग अमेरीका सरकार को भेजा गया परन्तु इन तथ्यों को न तो एडवाइजरी बोर्ड के सामने रखा गया और न ही संगीत सोम की जमानत प्रार्थना पत्र पर विचार करने वाले सेशन जज मुजफ्फरनगर के सम्मुख प्रस्तुत किया गया। फलतः सेशन जज द्वारा यह लिखते हुये जमानत दे गयी कि अभियोजन साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल है और एडवाजरी बोर्ड द्वारा भी एनएसए में निरुद्ध का कोई पर्याप्त आधार नहीं पाया। जबकि इन दोनों फोरम पर राज्य सरकार यह कह सकती थी कि विवेचना चल रही है और साक्ष्य संकलन हेतु आग्रह पत्र संयुक्त राज्य अमेरिका की एजेंसी को भेजा गया है।

3- पिछले दो माह के दौरान मुजफ्फरनगर व समीपवर्ती जनपदों के अनेक मामले ऐसे हैं जिनमें सांप्रदायिक हिंसा में मुसलमानों की हत्याएं हुयी हैं, परन्तु पुलिस अधिकारियों द्वारा उन्हें जानबूझकर हत्या का मामला नहीं माना गया। जिनकी सूची संलग्न है। जाट चौधरियों और महिलाओं द्वारा अनेक ग्रामों में प्रदर्शन हथियारों के साथ किए गये और पुलिस को धमकी दी गयी की वह जाट लोगों को गिरफ्तार करने के लिये गावों में घुसने की हिम्मत न करे अनेक मुस्लिम पीड़ितों को दबाव में लेकर अभियुक्तगण अपने पक्ष में शपक्ष पत्र बनावा रहे हैं। अनेक प्रभावशाली अभियुक्त ऐसे हैं जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया है और उनके विरुद्ध विवेचना भी धीमी गति से चल रही है। ऐसे हालत में पीड़ित लोग स्वतंत्र रूप से गवाही देने की स्थिति में नही हैं। अतः आवश्यक है कि सभी मामलों की विवेचना सीबीआई से करायी जाय और मुकदमों का परीक्षण राज्य से बाहर दिल्ली राज्य में कराया जाय।

सांप्रदायिक हिंसा के दौरान ऐसी कई घटनाएं सामने आईं जिनमें जाट समुदाय से आने वाले अभियुक्तों को बचाने के लिये सरकार के मंत्री और विधायकों की भूमिका सामने आई। उदाहरण के लिये एक प्रकरण जिला बागपत के काठा गाँव का हैं जहाँ चांद नाम के एक व्यक्ति की हत्या में शामिल जाट अभियुक्तों को बचाने के लिये सरकार के मंत्री वीरेन्द्र सिंह ने विवेचक को फोन किया। विवेचना कर रहे पुलिस अधिकारी ने धमकी भरे इस फोन की पूरी डिटेल नंबर सहित जीडी में दर्ज कर दी। इससे समझा जा सकता है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान की गयी हत्याओं को दबाने के किस तरह से विधायक व मंत्री तक संलिप्त हैं। इसी तरह बलात्कार की घटनाओं को भी बड़े स्तर पर दबाने का प्रयास किया गया। पचास से अधिक मृतक और लापता लोगों के मामलों को सांप्रदायिक हिंसा का मामला न मानना भी दर्शाता है कि सरकार पीड़ितों को इंसाफ देने से पीछे हट रही है।

सांप्रदायिक हिंसा के साजिशकर्ता हुकुम सिंह, भाजपा विधायक संगीत सोम एवं राकेश टिकैत, नरेश टिकैत, बाबा हरिकिशन जैसे लोगों के खिलाफ सुबूत होने के बावजूद कार्यवाई न करना साफ करता है कि सरकार पीड़ितों को इंसाफ से वंचित कर रही है। जिस तरह पिछले दिनों जाट महापंचायत की वीडियो दिखाए जाने के सवाल पर सरकार ने रिहाई मंच द्वारा आयोजित जनसुनवाई को रोकने का प्रयास किया उसने साफ कर दिया कि सरकार दंगाईयों के चेहरे सामने नहीं लाने देना चाहती है। गौरतलब बात यह है कि सांप्रदायिकता फैलाने वाली जाट महापंचायतों में सपा के नेता भी शामिल थे।

पिछले दिनों रिहाई मंच द्वारा जारी कुटबा-कुटबी गाँव के दंगाइयों की बात-चीत के मोबाइल रिकार्ड इस बात को साफ कर रहे है कि किस तरह दंगाइयों ने ठंडे दिमाग से मुस्लिम समुदाय के लोगों की हत्या, बलात्कार, घरों में आगलगी की और सरकार की मशीनरी उसमें संलिप्त थी। मोबाइल बात-चीत के रिकार्ड में एक महिला कह रही है कि उसने अंकल से बात करके 10 मिनट पीएसी को रोकवा दिया है। इतनी बड़ी साजिश पर रिहाई मंच ने यह आशंका जाहिर की थी कि इसी गाँव के रहने वाले मुंबई एटीएस प्रमुख केपी रघुवंशी भी हैं, जिनके घर के दो लोग भी मुस्लिम समुदाय पर हमला करने के मामले में नामजद अभियुक्त हैं पर यूपी सरकार ने इतने गंभीर सवाल को अनदेखा कर दिया।

4- कवाल प्रकरण- दिनांक 27 अगस्त 2013 को कवाल में मोटर साइकिल टकराने की घटना को लेकर शहनवाज का सचिन व गौरव के साथ विवाद हो गया था, जिससे भड़क कर सचिन व गौरव ने अपने आपराधिक पृष्ठभूमि के परिजनों को लेकर शहनवाज को उसके घर में से खींचकर उसकी हत्या कर दी और जब इन लोगों को ऐसा करते देखा तो क्षेत्र के लोगों ने शाहनवाज की चीख-पुकार पर उसे बचाने का प्रयत्न किया परन्तु सचिन, गौरव व उनके साथी हत्या करके भागने का प्रयास करने लगे जिस पर आक्रोशित भीड़ ने सचिन गौरव व उसके साथियों को भागने से रोका, इसी बीच सचिन व गौरव भीड़ के आक्रोश का शिकार हो गये और उनकी मृत्यु हो गयी। यह एक ऐसी घटना थी जो सांप्रदायिक राजनीति करने वाले भाजपाइयों और किसान राजनीति में सत्ता न पा सकने वाले टिकैत बंधुओं को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए वोट हासिल करने की और उन्हें सत्ता तक पहुंचने की कुंजी महसूस हुयी। सांप्रदायिक हिन्दुत्वादी व भाजपाइयों ने जाटों को भड़काने के लिये कहा कि बहू-बेटी सुरक्षित नहीं हैं और शहनवाज द्वारा हिन्दुओं की बहू-बेटियों के साथ छेड़-छाड़ की गयी हैं जो हिन्दुओं के सम्मान पर ठेस है। इसलिये सभी हिन्दुओं को एकजुट होकर न्याय हासिल करना चाहिए। प्रश्न यह है कि क्या न्याय हासिल करने के लिये न्यायपालिका में पीड़ित को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके मुकदमा लड़ना होता है? इस प्रकार साइकिल टकराने की घटना के स्थान पर महिला से छेड़-छाड़ की अफवाह फैलाई गयी और इसी के आधार पर सचिन व गौरव के क्रिया करम करके लौट रही भीड़़ को भड़काया गया जिससे कवाल में लूट-पाट व आगजनी की घटनाएं हुयी।

5- राहत कैंपों में लागातार सदमे और बीमारियों से मौतों को सिलसिला जारी है। अब तक 20 से अधिक मौतें हो चुकी हैं, जिसमें ज्यादातर सदमे के कारण। पिछले दिनों कांधला राहत कैंप में सूप की एक महिला की मौत इस वजह से हो गयी की सही वक्त पर सरकारी एम्बूलेंस नहीं आई और महिला की मौत हो गयी। ऐसी ढेरों कहानियाँ हैं। बार-बार फोन करने के बाद भी एम्बूलेस वाले ने बहाने बाजी की। जबकि प्रदेश सरकार कहती है कि वह आधे घंटे में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध करायेगी।

इस अवसर पर रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब, सामाजिक न्याय मंच के अध्यक्ष राघवेन्द्र प्रताप सिंह, एडवोकेट असद हयात, लक्ष्मण प्रसाद,हरे राम मिश्रा तथा दंगा पीड़ित शिविरों से आये मुफ्ती असलम, मौलाना कौसर, अब्दुल कयूम, सैयद मजहरुल हुदा, सलीम आदि मौजूद थे।