वाशिंगटन मार्च और अपने हक हकूक के बारे में बेखबर भारतीय स्त्री!
वाशिंगटन मार्च और अपने हक हकूक के बारे में बेखबर भारतीय स्त्री!
दुनिया डोनाल्ड ट्रंप के हवाले हो चुकी है। ट्रंप ने वाशिंगटन में आज छह धर्मों के पुरोहितों के सान्निध्य में अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है, जिनमें एक हिंदू पुरोहित भी है। बालीवुड की जुम्मे की रात वाशंगिटन में स्थानांतरित हो चुकी है। राष्ट्रपति बनने के बावजूद उनके नस्ली बयान और तेवर में कोई फर्क नहीं आया है।
वे सिर्फ अमेरिका की सरकार ही नहीं, विश्वव्यवस्था कारपोरेट तरीके से चलाने के लिए आमादा हैं। उनके शपथ ग्रहण के मौके पर अमेरिका में जितने लोग जश्न मना रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा लोग पूरे अमेरिका में उनके खिलाफ विरोध जताते हुए नाट आवर प्रेजींडेंट चीखते हुए इसवक्त सड़कों पर हैं।
शपथ ग्रहण के ठीक एकदिन बाद वाशिंगटन मार्च में करीब दो लाख महिलाएं अमेरिका में नस्ली फासिज्म के राज काज के खिलाफ इंसानियत के हक हकूक की आवाज बुलंद करने जा रही हैं, जिसमें हालीवूड के फिल्मी सितारों के अलावा दुनियाभर से आयी महिला कार्यकर्ता शामिल हो रही हैं। गायिका केटी पेरी, शैर और अभिनेत्री अमेरिका फेरेरा नवनिर्वाचित राष्ट्रपति का विरोध करने के लिए वाशिंगटन में एक महिला मार्च में हिस्सा लेंगी।
वैराइटी की खबर के मुताबिक ओलिविया वाइल्ड, उजो अदुबा, कॉन्सटेंस वू, हैरी नेफ, जूलियन मूर, पेटरीशिया अर्क्वेट, चेलेसी हैंडलर, एमी शूमेर, डेनियल ब्रुक्स, डेबरा मेसिंग, फ्रांसिस मैकडोरमैंड सहित कई अन्य हस्तियां इस मार्च में हिस्सा लेंगी।
भारत में जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाएं नेतृत्व करने लगी हैं। सिर्फ समाज और राजनीति में वे अब भी पितृसत्ता की बंधुआ दासी बनी हुई हैं, इसकी वजह धर्म और धर्म ग्रंथ हैं।
धार्मिक आडंबर के तहत ट्रंप की ताजपोशी को भारत में ग्लोबल हिंदुत्व की जीत के जश्न में मना रहे हैं बजरंगी जिनके नुमाइंदे वाशिंगटन में गा बजा नाच रहे हैं और वह जश्न मीडिया मार्फत घर-घर में बूंद-बूंद कैशलेस डिजिटल विकास की तर्ज पर छन छन कर पहुंच रही है।
अमेरिकी मीडिया ने गुलामी से साफ इंकार किया है लेकिन हमारी मीडिया की महबूबा गुलामी है।
वाशिंगटन में महिला मार्च की तरह भारत में आधी आबादी का जागरण फिलवक्त असंभव है। महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में नेतृत्व देने से इंकार करने वाली पितृसत्ता और सामाजिक स्तर पर मनुस्मृति विधान इसकी इजाजत नहीं देते। आधी आबादी के जागरण के बिना भारत में हालात कतई बदलने वाले नहीं हैं, चाहे राजनीति के चेहरे जितने बदले, वह चेहरा पुरुष का चेहरा है।
दुनिया का सबसे बड़े मर्द के खिलाफ जिसकी छाती ग्लोबल बंदोबस्त के हिसाब से रूस और इजराइल के सात भारत के समर्थन से कई गुणा ज्यादा है तो उनके वैश्विक राजकाज का उन्माद कितना भयानक होने वाला है, स्त्री ने बगावत कर दी है।
दुनिया भर की औरतों को इसका अंदाजा है, वे सक्रिय हैं, लेकिन भारतीय स्त्री बेखबर है।
उत्तराखंड में, मणिपुर में, झारखंड में और आदिवासी भूगोल में सर्वत्र स्त्री का हालात के खिलाफ बदलाव के लिए जो लड़ाकू चेहरा हम हमेशा देखते आये हैं, मनुस्मृति और पितृस्तात के दोहरे शासन में बाकी देश में वह सिरे से अनुपस्थित है। असंगठित क्षेत्र में, खेती बाड़ी में, व्यवसाय में भी और घर के भीतर सबसे ज्यादा मेहनकश स्त्री है, लेकिन उसके हकहकूक से साफ इंकार है और वह हर क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रताड़ित उत्पीड़ित भी है।


