तेलंगाना तो बन गया, विदर्भ कब बनेगा ?
मनोहर गौर
अब जबकि तेलंगाना राज्य का गठन लगभग तय हो गया है, विदर्भ में भी पिछले कुछ माह से अलग राज्य की माँग को लेकर जारी आन्दोलन जोर पकड़ने लगा है। बुधवार को शहर में रास्ता रोको आन्दोलन किया गया, गिरफ्तारी दी गई। आने वाले रविवार को एक बैठक कर आगे की रूपरेखा बनाने की घोषणा भी की गई है। उधर, रिपब्लिकन पार्टी (आरपीआई) नेता और राज्यसभा सांसद रामदास आठवले ने भी अलग से विदर्भ राज्य के लिए आन्दोलन चलाने की घोषणा की है।

तेलंगाना से पुरानी माँग
याद रहे, विदर्भ राज्य की माँग तेलंगाना से भी पुरानी है, लगभग सौ साल से अधिक पुरानी। 1956 में बने राज्य पुनर्गठन आयोग ने भी विदर्भ को अलग राज्य बनाने की सिफारिश की थी, मगर पश्चिम महाराष्ट्र के दबाव और विदर्भ के ही कुछ नेताओं की गद्दारी के कारण यह सिफारिश कभी साकार नहीं हो पाई। अभी कुछ साल पहले योजना आयोग ने भी विदर्भ को लेकर एक अध्ययन करवाया था, जिसमें विदर्भ को अलग राज्य बनाने की सिफारिश की गई। 1971 में ‘विदर्भवीर’ जांबुवंतराव धोटे के हिंसक आन्दोलन और उनके कांग्रेस से समझौता कर सांसद बनने के बाद से नेताओं पर विदर्भ की जनता ने विश्वास खो दिया है। यही कारण है कि उसके बाद बरसाती मेढक की तरह नेता लगभग हर साल महाराष्ट्र विधानमंडल के नागपुर में होने वाले शीतकालीन सत्र के दौरान विदर्भ की माँग को लेकर खड़े होते रहे, आवाज उठाते रहे, मगर कभी भी उन्हें भारी जनसमर्थन नहीं मिल पाया।

नए लोग जुड़े
पिछले साल से इस आन्दोलन से कुछ नए लोग जुड़े हैं। युवा नेता जुड़े हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार जुड़े हैं। कई संगठन बने हैं, जो अपने-अपने तरीके से लगातार विदर्भ राज्य की माँग को जिंदा रखे हुए हैं। दर्जन भर से अधिक संगठनों की एक विदर्भ जॉइंट एक्शन कमेटी भी बनी है। पिछले साल अक्तूबर से इस वर्ष 15 फरवरी तक विदर्भ के 11 में से चार बड़े शहरों में कराए गए जनमत सर्वेक्षणों में औसतन 95 फीसदी जनता से विदर्भ राज्य की माँग का समर्थन किया है। अमरावती, नागपुर, चंद्रपुर और यवतमाल जिलों में कराए गए जनमत संग्रहों में से केवल अमरावती को छोड़ सभी जिलों में 95 फीसदी से अधिक लोगों ने पृथक विदर्भ राज्य के पक्ष में वोट दिया है। ये जनमत संग्रह उन नेताओं के मुंह पर करारा तमाचा है जो यह कहते रहे हैं कि विदर्भ राज्य की माँग को जनता का समर्थन प्राप्त नहीं है। इसमें क्या शरद पवार और क्या पृथ्वीराज चव्हाण, सब शामिल हैं और सब यही राग अलापते रहे हैं। इस जनमत संग्रह को विदर्भ जॉइंट एक्शन कमेटी, विदर्भ माझा, यूथ फॉर विदर्भ स्टेट, जनमंच, सीनियर सिटीजन फोरम जैसे संगठनों ने अंजाम दिया। सर्वाधिक 97 फीसदी वोट चंद्रपुर जिले में विदर्भ के पक्ष में पड़े।
धरना, अनशन
पिछले साल 5 अगस्त को इसी माँग को लेकर विदर्भवादियों ने दिल्ली में धरना दिया था। भाजपा के स्थानीय नेताओं ने दिल्ली जाकर राष्ट्रीय नेताओं से मुलाकात की थी और तेलंगाना के साथ ही विदर्भ राज्य के गठन की माँग को पुरजोर तरीके से उठाने का आग्रह किया था। दिसंबर में ही यूथ फॉर विदर्भ स्टेट के नेता डॉ. आशीष देशमुख ने विदर्भ की माँग को लेकर 8 दिन तक अनशन किया था। रेलें रोकी गर्इं। चंद्रपुर में एक दिन सांकेतिक रूप से कोयला की आपूर्ति भी रोकी गई। यही नहीं आन्दोलन के एक हिस्से के रूप में विदर्भ की सीमाओं पर विदर्भ राज्य के फलक भी लगाए गए। कांग्रेस के अनेक स्थानीय नेता विदर्भ के समर्थन में तो हैं, मगर कुछेक को छोड़ कभी खुलकर सामने नहीं आते। नागपुर के कांग्रेस सांसद विलास मुत्तेमवार, वर्धा के दत्ता मेघे और राज्यसभा सांसद विजय दर्डा विभिन्न मौकों पर संसद में इस माँग को उठाते रहे हैं। भाजपा वैसे भी छोटे राज्यों की समर्थक है, मगर उसकी सहयोगी शिवसेना विदर्भ राज्य की घोर विरोधी है। वह संयुक्त महाराष्ट्र की समर्थक है और लगातार विदर्भ की माँग का विरोध करती रही है। महायुती में शामिल भाजपा, शिवसेना, रिपा (आठवले) और स्वाभिमानी पार्टी में से दो विदर्भ राज्य की समर्थक हैं और दो इसकी विरोधी। राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना भी महाराष्ट्र के बंटवारे के पक्ष में नहीं है।
अब तक चार जनमत संग्रह
सबसे पहला जनमत संग्रह अक्तूबर 2013 में अमरावती में हुआ था और 72,538 मतदाताओं में से 85 फीसदी ने विदर्भ राज्य के पक्ष में वोट डाला था। उसके बाद 16 दिसंबर को नागपुर में हुए जनमत संग्रह में 6 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। इसमें से 96।64 प्रतिशत नागरिकों ने विदर्भ राज्य के गठन का समर्थन किया। विदर्भ राज्य के खिलाफ में केवल 1।50 फीसदी नागरिकों ने ही वोट डाला। 23 जनवरी 2014 को तीसरा जनमत संग्रह चंद्रपुर में हुआ, जहां 97 फीसदी जनता विदर्भ राज्य के पक्ष में खड़ी रही। चंद्रपुर में केवल 1।37 फीसदी लोग ही विदर्भ राज्य के विरोध में खड़े नजर आए। अभी 15 फरवरी 2014 को यवतमाल में हुए चौथे जनमत संग्रह में 96 फीसदी नागरिकों ने विदर्भ राज्य के गठन का समर्थन किया। कुल 73,570 वोटरों में से माँग के विरोध में खड़े होने वालों की संख्या केवल 1648 रही। इसके बाद विदर्भ के बाकी बड़े शहरों में भी जनमत संग्रह कराया जाना है। जनमत संग्रह पूरा होने के बाद इसकी एक रिपोर्ट बनाई जाएगी, जो देश के सभी राजनीतिक दलों को सौंपी जाएगी। इससे उन नेताओं का मुंह बंद हो जाएगा जो यह कहते हुए इस माँग से पल्ला झाड़ लेते हैं कि विदर्भ की जनता का विदर्भ को समर्थन नहीं है और यह माँग केवल नेताओं की ही है।

कुषोपण और किसान आत्महत्या
आज विदर्भ के विकास का हाल यह है कि महाराष्ट्र में सर्वाधिक खनिज, वन, पानी और बिजली विदर्भ में होने के बावजूद सिंचाई की कोई कारगर सुविधा यहां नहीं है और पिछले 10 सालों में विदर्भ क्षेत्र में 32,000 से अधिक किसान कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या कर चुके हैं। मेलघाट में बसे सैकड़ों आदिवासी गांवों के लाखों बच्चे पिछले बीस सालों में असमय ही मौत का ग्रास बन चुके हैं। विश्व के मानचित्र पर पहली बार मेलघाट और चिखलदरा हिल स्टेशन का नाम आया भी तो कुपोषण से बच्चों की मौत को लेकर। सरकार ने कई योजनाएं चलाई। उसका कुछ असर तो जरूर पड़ा, मगर बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया। किसान आत्महत्या को लेकर भी सरकार केवल भारी-भरकम पैकेज की घोषणा करने के अलावा और कुछ नहीं करती। ये पैकेज भी बमुश्किल ही जरूरतमंद किसानों तक पहुंच पाते हैं।

हिंसक आन्दोलन
आज हालत यह है कि देश और राज्य की सरकारें तभी जागती हैं जब तक हिंसक आन्दोलन न हो। विदर्भ में इसकी भी तैयारी हो रही है। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रणजीत देशमुख के सुपुत्र डॉ. आशीष देशमुख ने युवाओं का संगठन खड़ा कर युवाओं को इस आन्दोलन से जोड़ने की कोशिश की है। नए सिरे से शुरू हुए इस आन्दोलन से जुड़े नेता अगर आगे बहकते नहीं है तो आन्दोलन को किसी मुकाम तक पहुंचाया जा सकता है। वैसे, विदर्भ राज्य के आन्दोलन को अभी भी किसी चंद्रशेखर राव जैसे समर्पित नेता की तलाश जरूर है।
मनोहर गौर, लेखक नागपुर (महाराष्ट्र) स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।