Sharia courts not acceptable, be it Hindu or Muslim, everyone has to learn how to live in a new democratic India.

मधुवन दत्त चतुर्वेदी

दारुलकजा !

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा शरिया अदालतें खोले जाने के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

हिंदुस्तानी कानून ने पर्सनल लॉ को कतिपय मामलों में मान्यता दे रखी है और अदालतें उससे संबंधित विवादों को उसी की रोशनी में तय करती हैं। किसी भी तरह की समानान्तर न्याय व्यवस्था स्वीकार नहीं की जानी चाहिए।

और भी पर्सनल लॉ हैं, जैसे हिन्दू लॉ, अदालतें उनके विवाद भी तय करती हैं। यदि इसी तरह की शुरुआत हर तरफ से हुई तो देश का ढांचा बिखर जाएगा।

हिन्दू हो या मुसलमान, सबको नए लोकतांत्रिक भारत में जीने का तरीका सीखना होगा, लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यवस्थाओं का आदर करना होगा।

इस तरह के फैसले सिवाय साम्प्रदायिक वैमनस्य को हवा देने वालों की मदद के कुछ नहीं हैं।