शमशाद इलाही शम्स

आपको याद नहीं होगा, 14 फरवरी 2003 को सयुंक्त राष्ट्र संघ में उसकी परमाणु एजेन्सी के एक नौकर-मुखिया मुहम्मद अल बरदई ने विश्व समूह को इराक के बारे में अपनी जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें बताया गया था कि इराक ने नाइजर से यूरेनियम खरीदा है।

इस आदमी की टीम ने वर्षों इराक में जाँच की। 125 स्थानों पर 177 जाँच करने के बाद यह रिपोर्ट गढ़ी गयी थी। फिर क्या हुआ एक के बाद एक कई प्रस्ताव पारित हुये और अमेरिका जबरन इराक के कथित परमाणु शस्त्रों के निशस्त्रीकरण के अन्तर्राष्ट्रीय अभियान का मुखिया बना और 20 मार्च 2003 को अमेरिका ने इराक पर हमला कर दिया।

उसके बाद क्या हुआ यह आप सभी जानते हैं।

अभी बीती चार जून 2013 को फ्रांस के विदेश मन्त्री ने सीरिया के गृह युद्ध में सरकार द्वारा विरोधियो पर निषिद्ध गैस का प्रयोग करने के प्रमाण देते हुये कहा, कि चार बार सीरिया ने और एक बार विद्रोहियों ने निषिद्ध गैस का प्रयोग किया है। इराक के मामले में उपरोक्त रिपोर्ट बाद में अविश्वसनीय पायी गयी थी। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री अमेरिका के राष्ट्रपति बुश के मित्र टोनी ब्लेयर पहले ही मान चुके हैं कि इराक के बारे में उनकी इन्टेलिजेन्स रिपोर्ट निराधार निकली।

नीतियाँ पुरानी हैं चेहरे बदल गये हैं। फिर वही झूठ की सान पर कानून का शिकंजा चढ़ा कर अब कथित समाजवादी फ़्रांस को ढाल बना कर साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा एक के बाद एक तीसरी दुनिया के उन देशों को शिकार बनाया जा रहा है जहाँ थोड़े बहुत प्राकृतिक संसाधन बचे पड़े हैं। हाल की घटनाओं में ईरान, क़तर और सऊदी अरब का खेल बहुत लोग चुपचाप देख रहे हैं।

सीरिया के बाशर असद हों या सद्दाम हुसैन या कर्नल गद्दाफी इनकी मूढ़ताओ ने भी अपने-अपने देशों को महा कब्रिस्तान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी...