हमारे लिए शीतल साठे जैसे लोग ही राष्ट्र हैं
लोकतंत्र में लोक को शीतल साठे लोग ही बचाएँगे और वे यह काम आपके समर्थन के बिना नहीं कर सकते।
सुयश सुप्रभ
शीतल साठे कल प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में दोपहर तीन बजे से लेकर शाम पाँच बजे तक हमें प्रतिरोध के गाने सुनाएँगी। जब मैंने पहली बार उनका नाम सुना तो यह जानकर आश्चर्य हुआ था कि सरकार ने एक ऐसी गर्भवती महिला को जेल में क्यों डाल दिया है जो अपने गीतों के माध्यम से ग़रीबों और शोषितों के अधिकारों की माँग करती है। बाद में यह पता चला कि सरकार ने इतने सारे अपराध कर डाले हैं कि उसे इन अपराधों का ज़िक्र करने वाला भी नक्सलवादी लगने लगा है।
शीतल को मैंने जेएनयू में भी सुना है और उनके हर शब्द में वह आक्रोश महसूस किया है, जो हमारा साझा भाव है लेकिन जिसे हम ठीक से व्यक्त नहीं कर पाते हैं। आप उनके बारे में और जानकारी पाने के लिए Anand Patwardhan की डॉक्यूमेंट्री जय भीम कॉमरेड देख सकते हैं।
आज जब सरकार असहमति को अपराध बनाने का षड्यंत्र रच रही है तब शीतल साठे जैसे कलाकर्मियों का महत्व और ज़्यादा बढ़ जाता है। सरकार की नीतियों की आलोचना करने पर कभी संदीप पांडेय जैसे गाँधीवादी प्रोफ़ेसर को नक्सली घोषित कर दिया जाता है तो कभी Himanshu Kumar जैसे गाँधीवादी कार्यकर्ता को हर तरीके से परेशान किया जाता है। यह असहिष्णुता नहीं तो और क्या है?
अगर समय मिले तो कल शीतल साठे के गीत सुनने ज़रूर आइए। लोकतंत्र में लोक को ये लोग ही बचाएँगे और वे यह काम आपके समर्थन के बिना नहीं कर सकते। आपका आना इसलिए भी ज़रूरी है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिन लोगों ने शीतल साठे को राष्ट्रद्रोही कहकर उनके कार्यक्रम को रोकने की कोशिश की थी उन्हें भी यह पता चलना चाहिए कि हमारे लिए शीतल साठे जैसे लोग ही राष्ट्र हैं।