शेखर गुप्ता भ्रष्ट पत्रकारों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ माने जायेंगे, अगर शेखर गुप्ता अब भी उन पत्रकारों का नाम घोषित नहीं करते, जो उनके साथ इस घटना के गवाह थे...
राम बहादुर राय ने भी शेखर गुप्ता को दी गवाह का नाम बताए जाने की चुनौती
शेखर गुप्ता ने प्रभाष जोशी को कलंकित किया - संतोष भारतीय
नई दिल्ली। इंडिया टुडे के पूर्व रिपोर्टर और इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक शेखर गुप्ता कालजयी पत्रकार बनने की ख्वाहिश में बुरे फंस गए हैं। हिंदी पत्रकारिता जगत के बड़े नामों में रहे प्रभाष जोशी को चौधरी देवी लाल का पैसे बांटने वाला दलाल ठहराना उनके लिए बवाल-ए-जान बन गया है। वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री राम बहादुर राय ने यथावत पत्रिका में अपने स्तंभ में शेखर गुप्ता को चुनौती दी है कि वे बताएं वह गवाह कौन है, जबकि चौथी दुनिया के संपादक व पूर्व सांसद वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने इसे भ्रष्ट पत्रकारिता की चरम सीमा ठहराते हुए साफ कहा है कि अगर शेखर गुप्ता इंडिया टुडे में ही लिखकर सात दिनों के भीतर नाम नहीं खोलते तो माना जाएगा कि शेखर गुप्ता न केवल भ्रष्ट पत्रकार हैं, बल्कि षड़यंत्रकारी पत्रकार भी हैं, जो कुछ लोगों के लिए ओछी पत्रकारिता करते हैं। शेखर गुप्ता को अगर इंडिया टुडे अब भी अपने यहां लिखने देता है तो मानना चाहिए कि इंडिया टुडे की पत्रकारिता भी इस देश में भ्रम फैलाने वाली, झूठ फैलाने वाली पत्रकारिता है।
संतोष भारतीय ने लिखा है- “उन पत्रकारों के नाम इंडिया टुडे के उसी कॉलम में खोलें, जिसमें उन्होंने ये मिथ्या भाषण किया है। अगर वो नाम खोलते हैं और एक गवाह उनके समर्थन में गवाही देने खड़ा होता है, क्योंकि पद्म पुरस्कार पाये इन तीनों पत्रकारों ने तो साफ मना कर दिया, तो मैं सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को तैयार हूं, लेकिन मुझे मालूम है कि मैं कितनी भी आशा करूं, शेखर गुप्ता का झूठ, झूठ रहेगा और नए पत्रकारों को, जो शेखर गुप्ता में कहीं एक बड़े पत्रकार की छवि देखते हैं, गुमराह करने में शेखर गुप्ता का व्यक्तित्व बड़ा काम करेगा, शायद मेरी क्षमा मांगने की इच्छा पूरी न हो पाए।”
भारतीय लिखते हैं- “शेखर गुप्ता अपनी चालाकी में, अपने झूठ में, अपनी ही रिपोर्ट का असत्य वर्णन कर गए कि प्रभाष जोशी ने पत्रकारों की उपस्थिति में विश्‍वनाथ प्रताप सिंह को साढ़े सात लाख रुपये दिए और विश्‍वनाथ प्रताप सिंह ने भी पत्रकारों की उपस्थिति में वो पैसे रख लिए। उनमें से कोई माई का लाल पत्रकार ऐसा नहीं था, जिसके अगुआ शेखर गुप्ता माने जा सकते हैं, जिसने इसको रिपोर्ट किया हो और ये वो दौर था, जब राजीव गांधी, विश्‍वनाथ प्रताप सिंह के खिलाफ हल्का सा धब्बा तलाश रहे थे। ये सारे पत्रकार विश्‍वनाथ प्रताप सिंह के वेतनभोगी नहीं थे। उन दिनों शेखर गुप्ता इंडिया टुडे के रिपोर्टर थे।”
संतोष भारतीय लिखते हैं- शेखर गुप्ता ये कह रहे हैं कि पत्रकारों की उपस्थिति में, जिसमें वो स्वयं थे वहां पर, विश्‍वनाथ प्रताप सिंह ने यह पैसा लिया। उन्होंने अपने गवाही के तौर पर लिखा कि वहां पर इस साल पद्म पुरस्कार पाये हुए एक पत्रकार भी उपस्थित थे। इस साल तीन पत्रकारों को पद्मपुरस्कार मिला है, जिनमें श्री रजत शर्मा, श्री राम बहादुर राय और स्वपन दास गुप्ता शामिल हैं। मैंने सबसे पहले रजत शर्मा जी से फोन पर पूछा कि क्या आप 1988 में इलाहाबाद में थे और क्या आपके सामने विश्‍वनाथ प्रताप सिंह को साढ़े सात लाख रुपये या आठ लाख रुपये दिए गए थे और क्या प्रभाष जोशी ने ये रुपये दिए थे? रजत शर्मा ने साफ कहा कि मैं उस समय तक वीपी सिंह से मिला ही नहीं था। मैंने स्वपनदास गुप्ता से पूछा, उन्होंने कहा रबिश, ये रिपोर्ट बकवास है। मैं इलाहाबाद चुनावों में गया ही नहीं था। तीसरे सज्जन हिंदी पत्रकारिता का बड़ा नाम, तत्कालीन नवभारत टाइम्स के विशेष संवाददाता राम बहादुर राय ने कहा कि पारिवारिक परिस्थितियों के कारण और अपने संस्थान के रमेश चंद्रा द्वारा संपादक राजेंद्र माथुर को दिए गए आदेश के अनुसार इलाहाबाद नहीं गया। मेरा जाना वहां प्रतिबंधित कर दिया गया, क्योंकि उन दिनों राजीव गांधी बनाम विश्‍वनाथ प्रताप सिंह चल रहा था और मुझे माना जाता था कि मैं सही रिपोर्ट करता हूं तो मैं कहीं वी पी सिंह के पक्ष में रिपोर्ट न कर दूं, इसलिए मुझे इलाहाबाद जाने से रोक दिया गया।
श्री भारतीय सवाल करते हैं, तब कौन पद्म पुरस्कार वाला व्यक्ति वहां उपस्थित था, जब वीपी सिंह को पैसे दिए गए और पैसे प्रभाष जोशी ने दिए। उन्होंने लिखा है- शेखर गुप्ता भ्रष्ट पत्रकारों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ माने जायेंगे, अगर शेखर गुप्ता अब भी उन पत्रकारों का नाम घोषित नहीं करते, जो उनके साथ इस घटना के गवाह थे।