श्वेत वर्चस्व तोड़ने का दम इन्हीं अश्वेत हिरणियों में
श्वेत वर्चस्व तोड़ने का दम इन्हीं अश्वेत हिरणियों में
अश्वेत महिलाओं में आजादी का जुनून
सबिता बिश्वास
सानिया मिर्जा या दीपा कर्मकार को देख लीजिये। जीतने की उनकी जिद दुनियाभर में अश्वेत महिलाओं की आजादी का चेहरा है।
सानिया रोहन बोपन्ना के साथ ओलंपिक पदक से एक कदम दूर सेमीफाइनल में है तो त्रिपुरा की दीपा कर्मकार फाइनल में पहुंचकर पदक जीतने की जिद में हर तरह की तैयारी कर रही हैं, पदक जीतें या न जीते, उनकी यह जिद स्त्री अस्मिता है, स्त्री स्वतंत्रता है।
इस जिद को हम सेरेना और वीनस बहनों के करिश्मा में देखने को अभ्यस्त हैं।
यह जिद क्वालिफिकेशन राउंड से बाहर हो जाने वाली अफगानिस्तान, कतर, सउदी अरब, बांग्लादेश की लड़कियों ने हिजाब और बगैर हिजाब के साथ आजाद ख्वाबों का बुंद परचम लहराकर दुनिया को जतला दिया है।
100, 200 मीटर के फर्राटे पर अश्वेत दखल का इतिहास देखें।
फ्लो जो और जैकी जयनार कर्सी को याद करें या अपनी पीटी उषा को, या इथोपिया की 10 किमी दौड़ में स्वर्ण और कांस्यपदक जीतने वाली लड़कियों को देख लें या तैराकी में स्वर्ण पदक जीतने वाली अश्वेत लड़की सिमोन का चेहरा देख लें।
चूंकि आदिवासी और निग्रो महिलाएं दलित, शूद्र या दासी होती नहीं है तो जीतने की जिद उनकी भयंकर है।
श्वेत वर्चस्व का दम इन्हीं काली हिरणियों में हैं।
श्वेत बिरादरी में पितृसत्ता का अटूट तंत्र उत्तर आधुनिक तकनीक सर्वस्व मुक्तबाजार में स्त्री अस्मिता पर अब भी भारी है।
इसके बजायदुनियाभर का अश्वेत भूगोल देख लें, जहां ये काली हिरणियां पितृसत्ता के मुकाबले में डटी हुई हैं।
भारत के आदिवासी भूगोल की लाखों औरतों को देख लें।
उनकी कथा व्यथा उनकी आजादी के लिए कोई पाबंदी नहीं है और रोज मर-मर कर लड़ रही हैं आजादी के लिए जैसे रंगभेद के खिलाफ, सैन्यतंत्र के खिलाफ आजादी की लड़ाइयों में हमने बार-बार देखा है।
भारत की आजादी की लड़ाई में भी पलासी के युद्ध के तुरंत बाद किसानों और आदिवासियों के अविराम अक्लांत स्वतंत्रता संग्राम में ये काली औरतें खूब लड़ी औरतें हैं, मर्दानी हम कहें तो उनका अपमान है।
अकेले बंगाल के जंगल महल में हजारों औरतों ने कुर्बानियां दी हैं।
मेदिनीपुर जिले में मातंगिनी हाजरा और सैकड़ों दूसरी महिलाएं गांधी मार्ग पर आजादी की लड़ाई लड़ती रही हैं। इतिहास में उनका नाम दर्ज नहीं है।
सशस्त्र क्रांतिकारियों के संग्राम में भी वे लड़ती रही हैं, दो चार को छोड़कर हमने उन्हें पहचाना तक नहीं है।
मणिपुर की इरोम शर्मिला भी अश्वेत बिरादरी की हैं तो मणिपुर की तमाम लड़ाकू महिलाएं भी इसी बिरादरी की हैं।
हिमालय के चप्पे चप्पे में उनका चेहरा ओलंपिक स्वर्ण पदक की तरह, आग्नेयगिरि की आग की तरह दहकता है जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़ीशा, बंगाल, आंध्र, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, समूचे पूर्वोत्तर और दूसरे राज्यों की आदिवासी महिलाओं का रोजमर्रे का गोरापन के सौंदर्य से बेपरवाह मेहनतकश चेहरा है। जैसे हर मेहनतकश औरत का रोजनामचा है।
ताजा उदाहरण सोनी सोरी का है जो आजादी का जश्न मनाते हुए तिरंगा यात्रा पर हैं और उनका खुलेआम ऐलान हैः
चाहे तो मुझे माओवादी बताकर गोली मार दें पुलिस... तिरंगा तो अब लहराकर रहेगा।
माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा से ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ तिरंगा यात्रा पर निकली आदिवासी नेत्री सोनी सोरी का कहना है कि चाहे तो पुलिस उन्हें माओवादी बताकर गोली मार सकती है, मगर उस गोमपाड़ इलाके में तिरंगा लहराने से नहीं रोक सकती जहां आजादी के बाद से आज तक सरकार के नुमाइंदो ने दस्तक देने की जरूरत नहीं समझीं।


