संगीत की स्वर लहरियों को चुप करने की राजनीति
संगीत की स्वर लहरियों को चुप करने की राजनीति

संगीत की स्वर लहरियों को चुप करने की राजनीति
Music and Politics of silencing
किताबों पर प्रतिबंध की मांग और पाकिस्तानी क्रिकेट टीम (Demand for ban on books
And Pakistani cricket team)और वहां के गायकों का विरोध भारत में आम हैं. सैटेनिक वर्सेज को प्रतिबंधित किया गया, मुंबई में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच न होने देने के लिए वानखेड़े स्टेडियम की पिच खोद दी गई और मुंबई में गुलाम अली के ग़ज़ल गायन कार्यक्रम को बाधित किया गया. हाल में, इस तरह की असहिष्णुता में तेजी से वृद्धि हुई है. और अब तो हमारे देश के कलाकारों का भी विरोध होने लगा है.
कर्नाटक संगीत Karnataka Music के जाने-माने पुरोधा टीएम कृष्णाTM Krishna का एक कार्यक्रम दिल्ली में एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (Airports Authority of India) और स्पिक मैके Speak McKay द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था. आयोजकों को धमकाया गया. उनसे पूछा गया कि वे एक भारत-विरोधी व्यक्ति, जो कि शहरी नक्सल है और ईसा मसीह और अल्लाह के बारे में गाने गाता है, का कार्यक्रम वे कैसे आयोजित कर सकते हैं.
एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया इन धमकियों से डर गई और उसने कार्यक्रम रद्द कर दिया. इसके बाद, दिल्ली के शासक दल आप ने कृष्णा का कार्यक्रम आयोजित करने के घोषणा की. इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रोता आये. इनमें संगीत प्रेमी तो थे ही, वे लोग भी थे जो देश के उदारवादी प्रजातान्त्रिक स्वरुप को नष्ट करने पर अमादा राजनीति के खिलाफ हैं.
Opposition to Krishna's program: Another example of increasing intolerance in the country
कृष्णा के कार्यक्रम का विरोध, देश में बढ़ती असहिष्णुता का एक और उदहारण है. इसी असहिष्णुता ने डॉ दाभोलकर, कामरेड गोविन्द पंसारे, एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश की जान ली और इसी के विरोध में देश की कई जानी-मानी हस्तियों ने उन्हें दिए गए पुरस्कार लौटा दिए. उत्तरप्रदेश में घर में गौमांस रखने के झूठे आरोप में मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या के बाद उदय प्रकाश और उनके बाद नयनतारा सहगल ने अपने पुरस्कार लौटा दिए. तत्पश्चात, करीब 50 अन्य साहित्यकारों, फिल्मी हस्तियों और वैज्ञानिकों ने भी उन्हें दिए गए सरकारी पुरस्कारों को लौटा दिया.
इसी अवधि में हमने दलितों की महत्वाकांक्षाओं को कुचलने का प्रयास देखा. रोहित वेम्युला की संस्थागत हत्या हुई. जेएनयू में कन्हैया कुमार और उनके साथियों को झूठे आरोप में गिरफ्तार किया गया. उन्हें देशद्रोही करार दिया गया. आज तक पुलिस उन दो नकाबपोशों को नहीं पकड़ सकी है जिन्होंने विश्वविद्यालय में कश्मीर की आजादी के संबंध में नारे लगाए थे.
इन सभी कार्यवाहियों का एक ही लक्ष्य है. सरकार की नीतियों से असहमत लोगों को देश का दुश्मन सिद्ध करना. भाजपा की ट्रोल आर्मी हर उस व्यक्ति को देशद्रोही बताती है, जो सरकार से किसी भी तरह से असहमत होता है.
Who is TM Krishna
कृष्णा एक असाधारण गायक हैं, जिन्होंने कर्नाटक संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. वे बांटने वाले राष्ट्रवाद और बढ़ती असहिष्णुता के विरूद्ध भी आवाज उठाते रहे हैं. वे गांधीजी का प्रिय भजन Favorite bhajan of Gandhiji ‘वैष्णव जन..‘ गाते हैं तो अल्लाह और ईसा मसीह के बारे में भी गीत प्रस्तुत करते हैं.
संगीत किसी भी देश की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और उसे संकीर्ण खांचों में नहीं बांटा जा सकता. पिछले कुछ दशकों से कलाकारों पर हमलों की घटनाएं बढ़ रही हैं. भारतीय संस्कृति, विभिन्न धर्मों की परंपराओं का मिश्रण है. मध्यकाल में हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों ने इसे समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह मिश्रण, भक्ति और सूफी परंपराओं में झलकता है तो हमारे खानपान में भी. साहित्य, कला और वास्तुकला सभी पर हिन्दू और मुस्लिम धार्मिक परंपराओं का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है.
जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक Book of Jawaharlal Nehru ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया‘ हमारी संस्कृति के इस पक्ष को रेखांकित करती है.
वे लिखते हैं कि भारत में कई संस्कृतियो का मिलन हुआ और उन्होंने एक दूसरे को प्रभावित किया. जब संस्कृतियां मिलती हैं तब एक नई संस्कृति जन्म लेती है. संस्कृतियों के मिलन के प्रभाव के बारे में दो अलग-अलग तरह के सिद्धांत प्रचलित हैं. एक सिद्धांत कहता है कि अनेक संस्कृतियों के आपस में मिलने के बाद भी उनके अपने विशिष्ट तत्व चिन्हित किए जा सकते हैं. दूसरा सिद्धांत यह है कि अलग-अलग संस्कृतियां मिलकर एक नई एकसार संस्कृति का निर्माण करती हैं. भारत पर इनमें से पहला सिद्धांत लागू होता है. भक्ति संतों का प्रभाव सभी धर्मों के लोगों पर पड़ा और सूफी संतों की दरगाहों पर जाने वाले केवल मुसलमान नहीं होते. रहीम और रसखान ने भगवान श्रीकृष्ण के बारे में अद्भुत भजन लिखे हैं. हिन्दी फिल्म उद्योग इस सांझा संस्कृति का अनुपम उदाहरण है.
क्या कोई भूल सकता है कि मोहम्मद रफी ने ‘मन तड़पत हरि दर्शन को आज’ (बैजू बावरा) से लेकर ‘इंसाफ का मंदिर है’ (अमर) तक दिल को छू लेने वाले भजन गाए हैं. क्या उस्ताद बिस्मिलाह खान और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान के भारतीय संगीत में योगदान को पंडित रविशंकर और पंडित शिवकुमार शर्मा के योगदान से कम बताया जा सकता है? हाल के वर्षों में जहां एआर रहमान ‘पिया हाजी अली’ का संगीत देते हैं तो वे ‘शांताकारम् भुजगशयनम्’ को भी मधुर धुन से संवारते हैं.
Anyone who opposes Krishna is not less than the Taliban and Christian fanatics
अगर कृष्णा, ईसा मसीह और अल्लाह के बारे में गाते हैं तो इससे बेहतर और प्रेरणास्पद क्या हो सकता है? यही तो रचनात्मक कलाकारों की मूल आत्मा है. वे तंगदिल नहीं होते. कृष्णा का विरोध करने वाले किसी भी तरह से तालिबानियों और ईसाई कट्टरपंथियों से कम नहीं हैं.
एएआइ-स्मिकमैके संगीत संध्या को रद्द करवाने में मिली सफलता के बाद ट्रोल और सक्रिय हो गए हैं. कृष्णा के मैसूरू में होने वाले एक कार्यक्रम के आयोजकों ने भी अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं. उन्हें कहा गया कि कृष्णा को आमंत्रित करना हिन्दू धर्म का अपमान होगा.
कृष्णा की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है. उन पर हो रहे तीखे हमलों के बावजूद वे अविचलित हैं. उनका मानना है कि संगीत देश, राज्य, धर्म या भाषा की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता. वे कहते हैं ‘ट्रोल आर्मी को सत्ताधारियों का परोक्ष समर्थन प्राप्त है. सामाजिक मुद्दों और राजनीति पर मेरे विचारों और भाजपा सरकार से मेरी असहमति के लिए मुझे लंबे समय से ट्रोल किया जाता रहा है. मेरे लिए अल्लाह, ईसा मसीह और राम में कोई फर्क नहीं है. हमारा देश एक बहुधर्मी और बहुभाषी देश है और इसे ऐसा ही बना रहना चाहिए. इस बहादुर भारतीय को हमारा सलाम.
(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं.)
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