तो यह अशफ़ाक़ उल्लाह,वीर अब्दुल हमीद व कलाम के वंशजों को मताधिकार से वंचित करेंगे?
तनवीर जाफ़री

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उसके सहयोगी राजनैतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी के नेता प्राय: यह कहते दिखाई देते हैं कि उनका संगठन ही वास्तविक धर्मनिरपेक्ष संगठन है जबकि स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले संगठन अथवा राजनैतिक दल धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करते हैं तथा धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यकों को विशेषकर भारत में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों का तुष्टिकरण करने में लगे रहते हैं। संघ परिवार व भाजपा के लोग प्राय: अपनी प्रशासनिक व राजनैतिक योग्यता का प्रमाण देते हुये अक्सर यह कहते भी सुनाई देते हैं कि कांग्रेस तथा दूसरे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों के शासन में सांप्रदायिक दंगे अधिक होते हैं जबकि इन के शासन वाले राज्यों में दंगे या तो बिल्कुल नहीं होते अथवा बहुत कम होते हैं। देश के इतिहास में अब तक हुये सबसे बड़े राज्य प्रयोजित गुजरात 2002 के दंगों को यह शक्तियाँ सांप्रदायिक दंगे नहीं बल्कि गोधरा साबरमती ट्रेन हादसे के परिणामस्वरूप हिंदू समुदाय की भडक़ी हिंसा अर्थात् क्रिया की प्रतिक्रिया का नाम देते हैं।

पंरतु यह संगठन जहाँ सांप्रदायिक दंगों के लिये सत्तासीन कांग्रेस व दूसरे धर्म निरपेक्ष दलों को ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिश करते हैं वहीं यह शक्तियाँ इस बात को छुपाती भी हैं कि सांप्रदायिक दंगों में जो लोग नामज़द किये जाते हैं अथवा गिरफ्तार कर जेल भेजे जाते हैं वे लोग आख़िर किस पार्टी, किस विचारधारा अथवा किस संगठन से जुड़े होते हैं। देश के इतिहास में पहली बार गुजरात की भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार की मंत्री माया कोडनानी तथा संघ परिवार के और कई नेता दंगों के मुख्य आरोपी के रूप में सज़ायाफ्ता होकर जेल की सलाखों के पीछे अपने दिन गुज़ार रहे हैं। और भी कई दंगाईयों, जोकि इसी कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी विचारधारा के पोषक हैं, को भी 2002 दंगों के आरोप में सज़ा सुनाई जा चुकी है तथा कई आरोपी ऐसे दूसरे मुकद्दमों का सामना भी कर रहे हैं। और तो और राज्य के मुखिया नरेंद्र मोदी को भी गुजरात दंगों के लिये जितना जि़म्मेदार ठहराया गया उतना देश के किसी नेता अथवा किसी राज्य के किसी अन्य मुख्यमंत्री पर दंगों का आरोप कभी नहीं लगाया गया। परंतु दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि नरेंद्र मोदी व उनके सहयोगी उन पर लगने वाले आरोपों को भी सकारात्मक नज़रिए से देख रहे हैं। उन्हें इन सब के बीच राष्ट्रीय स्तर पर सांप्रदायिक आधार पर मंथन किये जाने की आस है। वे इसी आड़ में हिंदू मतों को राष्ट्रीय स्तर पर संगठित करने तथा अल्पसंख्यकों खासकर भारतीय मुसलमानों को दरकिनार करने की बड़ी योजना पर काम कर रहे हैं। और इसी सिलसिले में पिछले कुछ समय से इनके कई नेता यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि भारतीय मुसलमानों से उनका मताधिकार छीन लिया जाना चाहिए। उन्हें राजनैतिक रूप से पंगु व असहाय बना दिया जाना चाहिए। और अपनी इस योजना को अमल में लाने के लिये यह शक्तियाँ तरह-तरह के निम्नस्तरीय व ओछे हथकंडे अपनाने से बाज़ नहीं आ रही हैं।

विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रवीण तोगड़िया जिन्हें 2002 में यह कहते सुना जा रहा था कि भारतवर्ष मात्र दो वर्षों में हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। वही अब यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि यदि मैं देश का प्रधानमंत्री बना तो मुसलमानों से उनके मतदान करने के अधिकारों को छीन लूंगा। यही तोगडिय़ा अपने भाषण में बड़ी शान के साथ आसाम,उड़ीसा तथा गुजरात व भागलपुर जैसे सांप्रदायिक दंगों में हिंसा में शामिल सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा किये गए $खूनी तांडव का श्रेय अपने ऊपर लेते रहते हैं। इसी प्रकार आदित्यनाथ योगी जोकि भारतीय जनता पार्टी के गोरखपुर के सांसद भी हैं वे भी भारतीय संविधान में दिए गए अल्पसंख्यकों के अधिकारों के विरुद्ध प्राय:बोलते, सांप्रदायिकतापूर्ण भाषण देते तथा मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध आम लोगों को भडक़ाते दिखाई देते हैं। परंतु भाजपा ऐसे लोगों का समर्थन लेने के बाद भी स्वयं को वास्तविक धर्मनिरपेक्ष पार्टी बताने से नहीं चूकती। सुब्रमण्यम स्वामी जैसे मुस्लिम विरोधी नेता को भाजपा में शामिल कर पार्टी ने इस बात की एक बार फिर पुष्टिकर दी है कि पार्टी अल्पसंख्यकों के विषय में क्या सोच रखती है तथा प्रखर अल्पसंख्यक विरोधियों को अथवा $फायर ब्रांड राजनीतिज्ञों को किस प्रकार से विशेष महत्व देती है। $गौरतलब है कि सुब्रमण्यम स्वामी को भाजपा में उनके द्वारा जारी उस वक्तव्य के कुछ ही समय बाद शामिल किया गया है जिसमें कि उन्होंने भारतीय मुसलमानों को प्राप्त मताधिकार को समाप्त किये जाने की बात कही थी। कितना अ$फसोसनाक है कि जिस सुब्रमण्यम स्वामी को उनके राष्ट्रविरोधी बयानों के लिये हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से निलंबित किया जाता हो उसी को यह दल अपनी पार्टी में सम्मानपूर्वक जगह देता है और इस के बावजूद वास्तविक धर्मनिरपेक्ष होने की बात भी करता है।

बहरहाल, भारतीय मुसलमान न तो बीते दिनों में संघ अथवा भाजपा के रहम-ओ-करम से भारत में रहते थे न ही आज उन्हें इनके रहम-ओ-करम की ज़रूरत है। यह देश जिसे आज़ादी दिलाने के लिये अशफ़ाक़ उल्ला खां जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के लहू से सींचा गया है, स्वतंत्रता के पश्चात् भी वीर अब्दुल हमीद जैसे राष्ट्रभक्त सैनिकों ने इसकी एकता व अखंडता के लिये अपने प्राणों की आहूति दी है। और आज भी यह देश रक्षा एवं विज्ञान के क्षेत्र में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिकों का कृतज्ञ है।

सांप्रदायिकतावादियों को भारतीय मुसलमानों को मताधिकार से वंचित किये जाने की बातें करने से पहले इस देश के लिये इन जैसे तमाम राष्ट्रभक्त परिवारों के विषय में सोचना चाहिए तथा उनकी राष्ट्रभक्ति की तुलना अपने ज़हरीले व नापाक सांप्रदायिकतापूर्ण इरादों व मनसूबों से ज़रूर करनी चाहिए। केवल भारतवर्ष ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया इस सच्चाई से भलीभांति वाकि़फ है कि दुनिया में आदर व सम्मान की दृष्टि से देखे जाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रूप में भारत में हुई पहली राजनैतिक हत्या में कौन सी विचारधारा शामिल थी? स्वतंत्र भारत में हुई इस पहली आतंकवादी घटना को किस ने और क्यों कर अंजाम दिया था? पूरे देश को पता है कि भारत में कहीं भी किसी भी पार्टी के शासन वाले राज्यों में होने वाले सांप्रदायिक दंगों में अधिकांशतः दंगाई किस विचारधारा के होते हैं? दूसरे राजनैतिक संगठनों पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाने वाले यह लोग स्वयं किस प्रकार हिंदू वोट बैंक की राजनीति करने में हर समय व्यस्त रहते हैं?

निकट भविष्य में देश एक बार फिर आम लोकसभा चुनावों का सामना करने जा रहा है। यह फ़िरक़ापरस्त ताकतें तरह-तरह की भडक़ाऊ व गुमराह करने वाली बातें कर राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू व मुस्लिम समुदायों के मध्य नफरत फैलाने का प्रयास कर रही हैं। और इसी सिलसिले की एक प्रमुख कड़ी के रूप में पिछले कुछ दिनों से यह नया शगू$फा इनके द्वारा छोड़ा जाने लगा है जिसमें कि इनके नेताओं द्वारा भारतीय मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने तथा उन्हें उनके मताधिकार से वंचित करने की बात की जाने लगी है। जिस विचारधारा व संगठन से जुड़े लेाग समझौता ट्रेन ब्लास्ट, मालेगांव की आतंकवादी घटनाओं तथा मक्का मस्जिद जैसी आतंकी गतिविधियों में शामिल हों उस विचारधारा के लोग किसी भी आतंकवादी घटना में मुस्लिम समुदाय के लोगों के शामिल होने पर उन घटनाओं को इस्लामी आतंकवाद का नाम देते हैं। परन्तु जब आतंकी घटनाओं में इनके संगठनों से जुड़े लोगों के शामिल होने पर उसे भगवा आतंकवाद का नाम दिया जाता है तो यह ताकतें बड़ी बुद्धिमानी व चतुराई के साथ भगवा शब्द को हिंदू अस्मिता के साथ जोड़कर इसे हिंदू धर्म को बदनाम किये जाने की साजि़श बताकर हिंदू धर्म के लोगों की हमदर्दी हासिल करने की कोशिश करती हैं।

हक़ीक़त तो यह है कि जिस प्रकार मुस्लिम समुदाय में सक्रिय तमाम कट्टरपंथी फ़िरक़ापरस्त व सांप्रदायिकतावादी शक्तियाँ अपने गुमराह करने वाले बयानों व गतिविधियों से मुस्लिम युवकों को आतंकवाद की ओर आकर्षित इस्लाम धर्म को बदनाम करने का काम कर रही हैं उसी प्रकार यह भगवा शक्तियाँ भी अपने नापाक इरादों के कारण हिंदू धर्म जैसे उदारवादी धर्म को बदनाम करने में लगी हैं। देश में जहाँ कहीं भी सांप्रदायिक हिंसा होती है उनमें अधिकांशत: इन्हीं सांप्रदायिक शक्तियों की भूमिका अहम होती है। आज़ादी से लेकर अब तक लाखों लोग इस प्रकार की सांप्रदायिक हिंसा के शिकार भी हो चुके हैं। परन्तु इन सबके बावजूद आज तक इन फ़िरक़ापरस्त ताकतों को देश ने कभी भी अपने सिर- आँखों पर नहीं बिठाया। और एकबार फिर इन्हीं के द्वारा अशफाक उल्ला, वीर अब्दुल हमीद तथा भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम के वंशजों को व उनके समुदाय के लोगों को मताधिकार से वंचित किये जाने जैसी संविधान विरोधी बात की जा रही है। परन्तु पूरे विश्वास के साथ यह कहा जा सकता है कि इनके यह नापाक इरादे न कभी पहले पूरे हुये हैं और न ही भविष्य में पूरे होने वाले हैं।