संघी आतंकवाद- सवाल एनआईए के रवैये पर भी हैं
संघी आतंकवाद- सवाल एनआईए के रवैये पर भी हैं
जाहिद खान
देश में साल 2006 से 2008 के बीच हुए प्रमुख बम विस्फोटों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ था, यह बात एक बार फिर सामने निकलकर आई है। अंग्रेजी मासिक पत्रिका कारवां में प्रकाशित एक साक्षात्कार में समझौता विस्फोट मामले के मुख्य आरोपी स्वामी असीमानंद ने यह बात खुद स्वीकारी है कि आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व ने ही समझौता एक्सप्रेस व दूसरे बम विस्फोटों को मंजूरी प्रदान की थी। इस मामले में असीमानंद ने संघ के मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार का भी नाम लिया है। मैगजीन कारवां ने दो साल के दौरान असीमानंद से चार बार बातचीत की। इस बातचीत में असीमानंद ने मैगजीन को बतलाया कि जुलाई 2005 में वे और संघ के एक और सक्रिय कार्यकर्ता सुनील जोशी गुजरात के आदिवासी इलाके डांग स्थित वनवासी कल्याण आश्रम में संघ नेता मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार से मिले थे। असीमानंद उस वक्त संघ से जुड़े वनवासी कल्याण आश्रम के बड़े पदाधिकारी थे। यह बात भी जान लेना लाजिमी होगी कि संघ, असीमानंद के काम से काफी प्रभावित था और उसने उनकी ‘सेवाओं’ के लिए उन्हेें दो बार गुरू गोलवलकर के नाम से स्थापित पुरस्कार से भी नवाजा था।
हालांकि जिस समय की यह बात है, उस वक्त मोहन भागवत संघ प्रमुख नहीं थे। असीमानंद के मुताबिक सुनील जोशी ने भागवत को देश भर में मुस्लिमों को निशाना बनाकर विस्फोट करने की योजना बताई थी। जिसे दोनों ही संघ नेताओं ने सहमति प्रदान की। बहरहाल इसके बाद क्या हुआ, यह कहानी अब सबको मालूम है। दक्षिणपंथी हिंदूवादी कार्यकर्ता स्वामी असीमानंद साल 2006 से 2008 के बीच समझौता एक्सप्रेस धमाका, हैदराबाद मक्का मस्जिद धमाका, अजमेर शरीफ दरगाह, मोडासा और मालेगांव में हुए धमाकों का मुख्य आरोपी है। इन धमाकों में उस वक्त कुल 119 लोग मारे गए थे। पिछले दिनों ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए की विशेष अदालत ने समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में असीमानंद और उनके अन्य तीन साथियों कमल चंद चैहान, राजिंदर चौधरी और लोकेश शर्मा के खिलाफ हत्या, राजद्रोह और अन्य आरोपों के लिए अभियोग तय किए हैं।
यह कोई पहली बार नहीं है, जब देश में अलग-अलग हुए बम विस्फोटों में संघ परिवार और उससे जुड़े लोगों के नाम सामने आए हैं। पहले महाराष्ट्र एटीएस की जांच और बाद में असीमानंद के न्यायाधीश के सामने कलमबंद इकबालिया बयान से यह बात पूरे देश में आईने की तरह साफ हो चुकी है कि मालेगांव, मक्का मस्जिद, मोडासा, अजमेर दरगाह शरीफ और समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट के असल कसूरवार संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। महाराष्ट्र एटीएस के अलावा राजस्थान एटीएस ने भी इन मामलों में अपनी जांच मुकम्मल करने के बाद, इस बात को माना था कि बीते एक दशक में देश के अंदर जो बड़े बम विस्फोट हुए, उसमें एक ही समूह के अलग-अलग मॉड्यूल का हाथ था। इस समूह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सक्रिय सदस्य बड़े पैमाने पर शामिल थे।
अदालत में पेश अपनी चार्जशीट में राजस्थान एटीएस ने खुलासा किया था कि सारे देश को बम विस्फोटों से दहलाने की खौफनाक साजिश 31 अक्टूबर 2005 को जयपुर के सी-स्कीम स्थित गुजराती समाज के गेस्ट हाऊस में रची गई। गेस्ट हाऊस में अभिनव भारत संगठन के स्वामी असीमानंद, जय वंदे मातरम् संगठन की मुखिया साध्वी प्रज्ञा सिंह, संघ प्रचारक सुनील जोशी, देवेन्द्र गुप्ता और संघ के दीगर सक्रिय कार्यकर्ता संदीप डांगे, रामचंद कलसांगरा उर्फ रामजी, शिवम धाकड़, लोकेश शर्मा, समंदर कमल चौहान आदि शामिल हुए। एटीएस ने जो सबसे सनसनीखेज खुलासा किया, वो यह था कि इस बैठक को संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने भी संबोधित किया। इंद्रेश कुमार ने अपने संबोधन में इन लोगों को सलाह दी कि वह अपना काम धार्मिक संगठनों से मिलकर करें, जिससे उन पर किसी भी तरह का शक न जाए।
साल 2006 में 11 से 13 फरवरी के दरम्यान गुजरात के डांग इलाके में एक बार फिर संघ परिवार से जुड़े इन कट्टर हिंदूवादी संगठनों के प्रमुखों की बैठक हुई। इस बैठक में उन्होंने पहले, धमाकों के लिए मुख्तलिफ जगहों को चिन्हित किया। यह तयशुदा जगह थीं अजमेर दरगाह शरीफ, दिल्ली जामा मस्जिद, हैदराबाद की मक्का मस्जिद, मालेगांव के मुस्लिम इलाके और हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस। आगे चलकर इस आतंकी समूह ने अपनी साजिश को अमलीजामा पहनाते हुए साल 2007 से लेकर 2008 तक महज दो साल के छोटे से अरसे में हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह शरीफ, मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस और दीगर कई जगहों पर बम विस्फोट किए। बहरहाल समझौता एक्सप्रेस मामले में एनआईए अभी तलक नाबा कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, राजिंदर चौधरी और कमल चौहान की गिरफ्तारी कर चुका है। चैहान, समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट कांड में अहम साजिशकर्ता सुनील जोशी, संदीप डांगे और रामचंद्र कलसांगरा के साथ था। मालूम हो कि इन बम विस्फोटों के बाद सुनीज जोशी की देवास में हत्या हो चुकी है और संदीप डांगे व रामचंद्र कलसांगरा फरार हैं।
असीमानंद का यह साक्षात्कार जब से मीडिया में आया है, पूरे संघ परिवार में खलबली मची हुई है। संघ और बीजेपी के प्रवक्ता एक सुर में असीमानंद के इस इल्जाम को बेबुनियाद बतला रहे हैं। पत्रिका की वेबसाइट पर असीमानंद से बातचीत के टेप्स जारी होने के बाद भी इस साक्षात्कार को झूठा बतलाया जा रहा है। जबकि ये न कोई स्टिंग ऑपरेशन है और न ही जालसाजी। असीमानंद ने जो साक्षात्कारकर्ता को बतलाया, वही पत्रिका ने अपने यहां प्रकाशित किया। पत्रिका को मालूूम था कि इस साक्षात्कार के आने के बाद संघ परिवार हंगामा खड़ा करेगा। यही वजह है कि पत्रिका ने इस बात के सबूत में अपनी वेबसाइट पर असीमानंद से बातचीत के टेप्स भी साथ में जारी किए। बम विस्फोटों में आरएसएस नेतृत्व की भूमिका एक गंभीर मामला है और केंद्र सरकार को इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। बम विस्फोट मामलों में गिरफ्तार हिंदुत्ववादी दहशतगर्दों ने देश को अस्थिर करने की साजिश में बार-बार संघ और उसके एक अहम ओहदेदार का नाम लिया है।
एक अंग्रेजी अखबार के स्टिंग ऑपरेशन में भी यह बात सामने निकलकर आई थी कि आरएसएस सुप्रीमो मोहन भागवत और उनके नजदीकी सहयोगी इंदे्रश कुमार को पहले से ही इन सभी बम विस्फोटों की जानकारी थी। यही नहीं, इन बम विस्फोटों को अंजाम तक पहुंचाने वाले समूह में इंद्रेश कुमार का खास शार्गिद सुनील जोशी भी शामिल था। राजस्थान एटीएस के हाथ लगी सुनील जोशी की दो डायरियों में पहले पन्ने पर उसके नाम के ठीक नीचे इमरजेंसी फोन शीर्षक से इंद्रेश कुमार का नाम, जयपुर का पता और उनके तीन मोबाईल नंबर लिखे हुए थे। स्टिंग ऑपरेशन के अलावा इसी तरह की मिलती-जुलती जानकारियां सीबीआई की जांच से संबंधित दस्तावेजों में भी निकली थीं। इन साफ-साफ खुलासों के बाद भी एनआईए इंद्रेश कुमार के खिलाफ कोई कार्यवाही करना तो दूर, उससे पूछताछ की हिम्मत भी नहीं जुटा पाई है।
इन बम विस्फोट मामलों में एनआईए की अभी तलक की जो कार्यप्रणाली रही है, उस पर कई सवाल खड़े होते हैं। जब मुख्य आरोपी ने सभी बम विस्फोट मामलों में साजिशकर्ता के तौर पर इंद्रेश कुमार का नाम लिया था, तो एनआईए ने उससे पूछताछ क्यों नहीं की ? एनआईए सब कुछ जानते-बूझते कहीं किसी को बचाने की कोशिश तो नहीं कर रही ? दीगर आतंकी समूहों पर सख्त दिखने वाली एनआईए, संघ परिवार के प्रति क्यों हमेशा नरम रहती है ? जाहिर है कि यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब ढ़ूढ़े जाना बेहद जरूरी हैं। असीमानंद ने पत्रिका से साक्षात्कार में जो कहा है, उसमें कहीं न कहीं कुछ सच्चाई जरूर है, जिसे एनआईए जानबूझकर नजरअंदाज करती रही है। मामले की यदि निष्पक्ष ढंग से जांच होती, तो आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई तथाकथित राष्ट्रवादी नेता जेल की सलाखों के पीछे होते।


