तो क्या फिर मान लिया जाए कि अब मोदी जी और आरएसएस देश में जाति व्यवस्था के उन्मूलन के पक्ष में हो गए हैं

महेंद्र मिश्रा
बीजेपी और संघ बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को हड़पने की फ़िराक में हैं। इस कड़ी में उनकी कोशिश है कि बाबा साहेब को उनके विचारों से काट कर उन्हें महज मूर्तियों और चंद सिक्कों तक सीमित कर दिया जाए। उनके प्रति सत्ता का खास प्रेम इसी तरफ इशारा करता है। संविधान दिवस हो या कि उनका महापरिनिर्वाण दिवस। बाबा साहेब के प्रति सरकार का अतिरिक्त रुझान किसी साजिश की गंध देता है।
आखिर माजरा क्या है? प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बाबा साहेब के सामाजिक न्याय पर बहुत बात हुई। अब वक्त उनके आर्थिक विचारों पर गौर करने का है।
इसके जरिये प्रधानमंत्री जी यह तो नहीं कहना चाहते हैं कि सामाजिक न्याय का लक्ष्य पूरा हो चुका है। यानी अब आरक्षण खत्म कर देना चाहिए। जैसा कि उस पर पुनर्विचार के जरिये संघ चाहता है। और अब बाबा साहेब के आर्थिक मसले पर विचार के बहाने उनके समाजवादी विचारों को भी दरकिनार करने का वक्त आ गया है।
गौरतलब है कि बौद्ध धर्म अंगीकार करते समय बाबा साहेब अपने आखिरी दिनों में समाजवाद के आर्थिक माडल को अपनाने के पक्षधर हो गए थे। अगर कोई डॉ. अंबेडकर को अपनाने की बात करता है तो जाति व्यवस्था पर उसकी सोच प्राथमिक कसौटी होगी। तो क्या फिर मान लिया जाए कि अब मोदी जी और आरएसएस देश में जाति व्यवस्था के उन्मूलन के पक्ष में हो गए हैं। क्योंकि अंडेबकर के विचारों के मकान में प्रवेश का यह मुख्य द्वार है। और इसको तोड़े बगैर उसमें घुसना नामुमकिन है। न सिर्फ आरक्षण बल्कि संविधान दिवस की बहस के मौके पर अंबेडकर के दो कोर विचारों समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की समीक्षा की बात कर बीजेपी ने अपनी मंशा साफ कर दी है। इसे संघ के संविधान समीक्षा की दिशा में पहले कदम के तौर पर देखा जा रहा है। बात यहीं तक सीमित नहीं है।
बाबा साहेब को किस हद तक इस्तेमाल कर लेने की साजिश चल रही है। उसकी एक बानगी कल केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत के बयान में दिखी। उन्होंने कहा कि हालांकि बाबा साहेब ने राम मंदिर के बारे में कुछ नहीं कहा है। लेकिन चूंकि डॉ. अंबेडकर सभी धर्मों का सम्मान करने में विश्वास करते थे। इसलिए उनका भी मानना था कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए। अब इस अपराध सरीखी बयानबाजी के बारे में क्या कहा जाए? अंबेडकर जिस धर्म की अमानवीय जाति-व्यवस्था, उसके कर्मकांड और बेहिसाब उत्पीड़न से परेशान होकर उसे छोड़े। अब वापस खींचकर उनको उसी की सेवा में लगाने की तैयारी चल रही है।
यानी अंबेडकरवाद को सिर के बल खड़ा किया जा रहा है। इस संघी अंडेबकर और असली बाबा साहेब के बीच 180 डिग्री का फासला होगा। इस पूरी प्रक्रिया में अंबेडकर को ही अंबेडकर के खिलाफ खड़ा कर दिया जाएगा। और एक वक्त ऐसा आएगा जब बाबा साहेब अपने संविधान की जगह मनुस्मृति का प्रचार कर रहे होंगे! लेकिन संघ को नहीं पता कि बाबा साहेब को पचा पाना इतना आसान नहीं है। गैरबराबरी पर आधारित ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था का पेट फाड़कर वह बाहर निकल आएंगे।
महेंद्र मिश्रा, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।