संघ परिवार के लिए, बाकी देश को समग्र गाजा पट्टी बनाने का सबसे बड़ा उपक्रम है
संघ परिवार के लिए, बाकी देश को समग्र गाजा पट्टी बनाने का सबसे बड़ा उपक्रम है
कृपया राजनीतिक समीकऱण के खेल से परे इस पोंजी कारपोरेट अर्थव्यवस्था की कयामत को समझें।
पलाश विश्वास
जैसा कि हम लिखते रहे हैं। शारदा फर्जीवाड़ा टिप आफ दि आइसबर्ग है।
कालाधन का ग्लेशियर पिघलेगा, तो केदार जलसुनामी और मौजूदा कश्मीर विपर्यय सीमा आरपार की तरह राजनीति सिरे से गैरप्रासंगिक हो जायेगी, बाकी जो बचेगा, उससे शर्मिंदा होगा नरक का मिथक और हिटलरी गैसचैंबर भी।
हम लिख रहे थे कि असली मुद्दा वित्तीय प्रबंधन का है, वित्तीय घाटा का नहीं है। वित्तीय घाटा या भुगतान संतुलन संकट परिणाम हैं, कारक नहीं।
सीबीआई जांच करें रिजर्व बैंक ईडी और सेबी की जो वित्तीय प्रबंधन संभाले तो सरकारी राजकाज चलें अदालती आदेशों से, इस गोरखधंधे में सत्य, असत्य अर्धसत्य गड़बड़झाला है और दसों दिशाओं में घोटाला ही घोटाला है क्योंकि सुरसामुखी मंहगाई नहीं, अब मुकमल अर्थव्यवस्था है, आम जनता जिसका निवाला है।
इसे समझने के लिए महाबलि अमेरिका की मूषक दशा पर गौर करें जो मध्यपूर्व में तेल की आग से झुलसकर तबाही के कगार पर है और डालर टूटने लगा है, ऐसे परिवेश में आतंक के विरुद्ध युद्ध के अपने ही जाल में ऐसे उलझ गया है कि जो बराक ओबामा मध्यपूर्व से अमेरिका को निकालने के वायदे के साथ दो दो बार अश्वेत राष्ट्रपति बने अमेरिका के, वे ही अब मजबूर हैं फिर एक दफा अमेरिका को, अमेरिकी सेनाओं को और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को तेल के कुंओं में झोंकने के लिए।
धर्मोन्माद दरअसल युद्धोन्माद है।
धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की फसल जैसे तालिबान है वैसे ही ओसामा बिन लादेन है। इससे पृथक कोई छवि नहीं हो सकती है। धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रवाद फिर वही हिटलर है या जर्मनी है।
मरती हुई अमेरिकी अर्थव्यवस्था से नत्थी होकर उत्पादन प्रणाली को ध्वस्त कjके उत्पादक समूहों के नस्ली कत्लेआम के जरिये जो पोंजी ट्रिकलिंग अर्थव्यवस्था में मिलियेनर बिलियेनर मालामाल लाटरी और न्यूनतम सरकार के कारपोरेट कालाधन कारोबार में तब्दील है भारतीय वित्तीय प्रबंधन, देसी विदेशी कारपोरेट कंपनियां बेलगाम जो मुनाफावसूली कर रही हैं, उस आइसबर्ग का टीप है शारदा फर्जीवाड़ा का भंडाफोड़।
इसमें भी मजा यह कि केसरिया राजकाज का जो पद्म प्रलय है, सीबीआई जांच से उसी निमित्त शारदा फर्जीवाड़ा का कुल परिणाम इस्लाम विरोधी हिंदुत्व का जिहाद लव जिहाद है।
आर्थिक घोटाला अब राष्ट्रद्रोही मुसलमानों की आतंकवादी गतिविधियों पर केंद्रित हो गयी है। शारदा का आतंकवादियों से गठजोड़ का रसायन तैयार है जो बंगाल दखल के लिए जितना अनिवार्य है संघ परिवार के लिए, बाकी देश को समग्र गाजा पट्टी बनाने का उससे बड़ा उपक्रम है।
शारदा फर्जीवाड़ा मामला पोंजी अर्थव्यवस्था का मामला जितना है, राजनीति के नख शिख सौंदर्य का विवरण भी उतना ही है और उससे भी ज्यादा यह धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का मामला तेजी से बनता जा रहा है।
अब इसी परिप्रेक्ष्य में भारत की केंद्रीय जांच एजंसियां ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश सरकार भी जमायते इस्लामी और आतंकी संगठनों में शारदा निवेश की जांच करवा रही है।
इस पर भारत में आर्थिक फर्जीवाड़े के मुकाबले जो उत्तेजना और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण समीकरण का बनना बिगड़ना है, उस परिप्रेक्ष्य में जमायते इस्लामी और हिफाजत और रजाकर के खिलाफ लगातार मुक्ति युद्ध समय से युद्धरत धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों की प्रतिक्रिया किंतु भारत से भिन्न है।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक उत्पीड़ने के तमाम मामलों का एनसाइक्लोपीडिया बनाने वाले मूर्धन्य साहित्यकार शहरियार कबीर जमायत शारदा योगोयोग के बहाने भारतीय उपमहाद्वीप में धर्मयुद्ध के बनते हुए माहौल से चिंतित हैं।
सीमा के इस पार लेकिन धर्मनिरपेक्ष ताकतें शातिराना धार्मिक अस्मिता आधारित ध्रुवीकरण की केसरिया रणनीति से लगता है यथेष्ट सतर्क है ही नहीं।
हम लगातार लिख रहे थे कि शारदा कोई अकेली पोंजी कंपनी नहीं है।
इससे पहले संचिता और दूसरी बड़ी सहारा बेसहारा कंपनियों का आंतरजातिक कारोबार रहा है, जो निवेशकों के दिन दहाड़े लूटती रही हैं।
राजनीतिक जांच पड़ताल और कारोपेट प्रतिद्व्ंद्विता के चलते होने वाले पर्दाफाश से किसी का अब तक कुछ बिगड़ा नहीं है।
वे जेल में भी होते हैं तो जेल की दीवारें वातानुकूलित कारपोरेट गलियारा की शक्ल अख्तियार कर लेती है।
शारदा पोंजी कारोबार से जुड़े हर चेहरे की संसदीय भूमिका इस देश के लोकतंत्र का हश्र की सबसे सार्थक अभिव्यक्ति बन गयी है।
शारदा के सारे ब्रांड एंबेसेडर या विधायक हैं या सांसद या मंत्री या मुख्यमंत्री, इस चमत्कार से साफ जाहिर है कि संसदीय प्रणाली से जनता बेदखल हो गयी है।
किसका कान टानकर किसका सिर गिलोटिन पर टांग दिया जाये, इससे कोई फर्क पड़ता नहीं है। किसकू गद्दी कुलांचे मारने लगीं और कौन फिर बदलाव के दावेदार हैं, इससे भी आम जनता की धर्मयुद्ध कुरुक्षेत्र नियति बदलने वाली नहीं है। भगवान वचन है।
बंगाल में बीस हजार करोड़ का शारदा घोटाला फर्जीवाड़ा है तो ओड़ीशा में ग्रीन प्लांटेशन के नाम पर पच्चीस हजार करोड़ का घोटाला।
बंगाल सरकार और बंगाल की राजनीति की तरह वहां ओड़ीशा सरकारी और ओड़िया राजनीतिकी महिमा भी अपरंपार।
शारदा जमायत से नत्थी है तो ग्रीन पोंजी का एपीसेंटर सीधे दुबई में है।
अमेरिका की वैश्विक विनियंत्रित विनियमित निजी कारपरोरेट कंपनियों की युद्धक अर्थव्यवस्था की वजह से अमेरिका अब अपनी नसों में हर वक्त ध्वस्त ट्विन टावर के विस्फोटों को जी रहा है पल प्रतिपल और हम अपने लोकतंत्र, संविधान को तिलांजलि देकर डालर से नत्थी निजीकरण के उस दुष्चक्र में फंसे हैं तो आतंक के विरुद्ध युद्ध में देश और जनता को झोंकने के सिवाय कोई विकल्प बचता ही नहीं है।
बंगाल में शारदा तो ओड़ीशा में ग्रीन प्लांटेशन के मार्फत आंतरिक सुरक्षा के मोसादिया स्थाई बंदोबस्त का किरचों में बिखरता जो नजारा है, सैकड़ों पोंजी कंपनियों की देशव्यापी और आंतर्जातिक बेलगाम नेटवर्किंग के धमाके कहां-कहां हो सकते हैं, अब इसका पता बायोमेट्रिक डिजिटल देश के पवनपुत्रीय आधार निगरानी से तो लगने से रहा।
कानून तोड़ने वालों को कानून का संरक्षण जहां राजकाज है, कानून तोड़ने की प्रक्रिया को वैधता बनाने की जिस संसदीय प्रणाली की राजनीतिक बाध्यता है और हर रोज जहां पूंजी प्रवाह को अबाध निरंतर बनाने के लिए नवधनाढ्य आभिजात क्रयशक्ति के हित में श्रमजीवियों के जनसंहार हेतु कानून बनाये बिगाड़े जाते हैं और राजकाज जहां विशुद्ध देशी विदेशी कारपोरेट लाबिइंग है, जहां नारायण मूर्ति संपादकीय आलेख लिखकर देश के प्रधान स्वयंसेवक के लिए अमेरिकी यात्रा का एजेंडा डिक्टेट करते हों, जहां नीतिगत फैसले कारपोरेट बगुला भगत करते हों, जहां कारपोरेट वकील वित्तीय प्रबंधन के बदले रक्षा सौदे तय करते हों, जहां विकास का मतलब पीपीपी माडल गुजराती है तो समझ लीजिये कि अनाड़ियों सांढ़ों से किसकी फजीहत होती है।
सियाना सांढ़ सारे तो छुट्टा हैं और उनकी लिस्टेड अनलिस्टेड कंपनियों में झोंकी जा रही है सारी कायनात, ऐसा लेकिल धर्मोन्मादी केसरिया कारपोरेट राज है।
राजनीति और मुसलिम विद्वेष के अलावा जो वित्तीय प्रबंधन का मामला है, जिसमें प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री, वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक, सेबी, ईडी, आयकर विभाग, कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली जो इस पोंजी में गले गले डूब हैं, तमाम गरीबी उन्मूलन विकास सूत्र बुलेट इंफ्रास्ट्रकचर डिजिटल समरसता समावेश के जो रस्मी कर्मकांड में रोज रोज बलिप्रदत्त आम आदमी है, वहां लेकिन मीडिया की नजर है ही नहीं।
मीडिया बस राजनीतिक समीकरण बनाने बिगाड़ने के खेल में शामिल है और बाकी जो मुक्तबाजारी तिलिस्म तामझाम मनोरंजक कामोत्तेजक जापानी तेल वियाग्रा मस्ती कार्निवाल तंत्र मंत्र यंत्र है, उसके लिए टीआरपी है, विज्ञापन है और सामाजिक सरोकरा वाला मुक्ताबाजारी भोग जनमत है और बिलियनरो मिलियनरों के इस स्मार्ट देश से बाकी जनता का देश निकाला है।
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