संविधान दिवस पर एक प्रोफेसर की चिंताएं
आपकी नज़र | हस्तक्षेप Concerns of a professor on Constitution Day जिस तरीके से आज माफीनामे वाले दक्षिणपंथियों द्वारा संविधान के मूल ढांचे पर हमले हो रहे हैं, वो कही न कही संविधान निर्माता और हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदानों पर कुठाराघात है।
संविधान दिवस पर प्रोफेसर रॉबिन वर्मा की टिप्पणी
Concerns of a professor on Constitution Day
आज संविधान दिवस है, हर जिंदा, इंसाफपरस्त और स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों के सपनों के भारत के निर्माण में योगदान देने वालों के लिए प्रेरणा का दिन है। आज के ही दिन समाज के अंतिम व्यक्ति को सही मायनों में द्वितीय आजादी मिली थी। भारत के संविधान की जीवंत संविधान कहा गया कि जिसमें सिर्फ प्रस्तावना को छोड़ कर संविधान के हर पन्ने पर बदलाव किया जा सकता है।
जिस तरीके से आज माफीनामे वाले दक्षिणपंथियों द्वारा संविधान के मूल ढांचे पर हमले हो रहे हैं, वो कही न कही संविधान निर्माता और हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदानों पर कुठाराघात है।
संविधान सभा की अंतिम बैठक 25 नवंबर 1949 को बाबा साहब ने अपने भाषण में कहा था कि भारत का संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर इसे अमल में लाने वाले लोग खराब निकले, तो संविधान निश्चित रूप से अच्छा साबित नहीं होगा।
संविधान को अंतिम रूप दिए जाने के चार दिन बाद ही यानी 30 नवंबर, 1949 को आरएसएस के मुख पत्र ऑर्गेनाइजर में लिखा गया कि हमारे संविधान में प्राचीन भारत में अद्वितीय संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है। आज तक, मनु के कानून, जैसा कि मनुस्मृति में वर्णित है, दुनिया की प्रशंसा को उत्तेजित करते हैं और सहज आज्ञाकारिता और अनुरूपता प्राप्त करते हैं। लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है।
आरएसएस और सावरकर जैसे उसके विचारक कभी भी भारत के संविधान के साथ सहमत नहीं हुए क्योंकि यह मनु के कानूनों पर आधारित नहीं था और यही कारण है की आजादी के बाद पहले आम चुनावों में करपात्री महाराज और जन संघ ने संविधान में लिखित रिफॉर्म्स के खिलाफ मिल कर चुनाव भी लड़ा।
तत्कालीन सरकारों ने 26वे संविधान संशोधन में राजा रजवाड़ों को मिलने वाले मुआवजे जिसे प्रिवी पर्स को समाप्त कर दिया गया।
1976 में 42वा संविधान संशोधन कर भारत के संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द जोड़कर दलितों, अल्पसंख्यकों और मजलूमों के अधिकारों पर किसी प्रकार की आंच न आने देने के लिए पुख्ता इंतजाम किया गया।
दक्षिणपंथियों द्वारा समय-समय पर संविधान पर हमले और संविधान को बदलने की कोशिशें होती रही हैं, जैसे 22 फरवरी 2000 को अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने भी संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए न्यायमूर्ति मनेपल्ली नारायण राव वेंकटचलैया आयोग का गठन संविधान में संभावित संशोधनों का सुझाव देने के लिए किया था। जिसने 2002 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी और जिस पर लोक सभा और राज्य सभा में सरकार को भारी विरोध झेलना पड़ा और 2004 में एनडीए सरकार की विदाई हो गई।
26 जनवरी 2015 में तत्कालीन सरकार द्वारा समाचार पत्रों में संविधान की प्रस्तावना को प्रकाशित करवाया गया जिसमें से सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द गायब थे। किरकिरी होने पर सरकार ने सफाई देते हुए इसे मानवीय भूल बताया था। 2015 में ही तत्कालीन दूरसंचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा था संविधान की प्रस्तावना में हमें सेकुलर शब्द की जरूरत नहीं है हम सेकुलर शब्द के बिना भी सेकुलर देश हैं।
2017 में कर्नाटक में ब्राह्मण युवा परिषद के एक कार्यक्रम में तत्कालीन बीजेपी सरकार के मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने कहा था की हम संविधान बदलने के लिए ही आए हैं और संविधान की तुलना "मनुस्मृति" तक से कर दी थी।
भारतीय लोकतंत्र में इससे भयावह क्या हो सकता है?
9 अगस्त 2018 को पार्लियामेंट स्ट्रीट पर बाबा साहब को अपमानित करने का काम किया गया और संविधान की प्रतियां जलाई गई। वो कौन लोग थे? और किसके इशारे पर उन्होंने इस कृत्य को अंजाम दिया था?
5 साल से ज्यादा बीतने एक बाद भी अभी तक जांच ही चल रही है। कुछ महीनों पहले ही दिल्ली की एक कोर्ट ने पुलिस की लचर जांच को लेकर फटकार भी लगाई थी।
मार्च 2020 को बीजेपी के राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा राज्य सभा में एक रेजोल्यूशन लेकर आए कि संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद शब्द हटा देना चाहिए।
18 अगस्त 2023 को इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में आर्थिक सलाहकार समिति के चेयरमैन बीबेक देब रॉय ने कहा कि एक नए संविधान का समय आ गया है। उनको स्पष्ट करना चाहिए कैसा होगा ये नया संविधान? बाबा साहब द्वारा दिए हुए संविधान से क्या दिक्कत है उनको? किसकी शह पर इतने बड़े पद पे बैठा आदमी नए संविधान की बात कर रहा है?
न्यायपालिका को संविधान का मजबूत स्तंभ में गया है। आज वही न्यायपालिका अपना भरोसा खोती जा रही है। हाल के वर्षों में न्यायपालिका ने ऐसे फैसले दिए हैं जो संविधान की आत्मा के खिलाफ हैं। चाहे वो उत्तराखंड उच्चन्यायालय का फैसला हो या मध्य प्रदेश उच्चन्यायलय का फैसला हो या कुछ वर्ष पहले मेघालय हाईकोर्ट का फ़ैसला हो।
संविधान पर हामले हो रहे हैं। जिस संविधान को दक्षिणपंथी ताकतें बदलने की कोशिश करती रहती हैं हम सभी को उन संविधान विरोधी दक्षिण पंथी ताकतों की मजम्मत करनी चाहिए क्योंकि जबतक संविधान सुरक्षित है तभी तब सभी वंचितों के हक और अधिकार सुरक्षित हैं।
देश के खातिर संविधान की सुनिए।
आप सभी को संविधान दिवस की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।


