पूरे बारह दिन बाद रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के रावण पर अन्ना टीम ने जीत हासिल की. वहीं अंतिम दिन स्वामी अग्निवेश भस्मासुर की तरह खुद की आग में जलते दिखे, मीडिया ने उनकी कलई खोल दी.

इस आंदोलन के दौरान कई छद्म देश-भक्तों के चेहरे भी बेनकाब हुए. साथ ही देश ने बाबा रामदेव के आंदोलन को असफल बनाने वालों को बेपर्दा होते भी देखा.

इस दौरान देश ने महसूस किया कि गांधी आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना आजादी के पहले था.

स्वतंत्रता के पहले साबरमती के संत ने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था, तो आजादी के ठीक चौंसठ साल बाद रालेगांव के संत की गांधीगिरी के सामने बेलगाम सरकार ने घुटने टेक दिये. इस जीत से अन्ना और उनकी टीम ने गांधी और जेपी के सपनों को न केवल साकार किया, बल्कि भ्रष्टाचार की बोली बोलने वालों के मुंह में ताला भी लगा दिया.

संसद में बिल पास होते ही पूरे देश ने 27 अगस्त की मध्यरात्रि को ठीक उसी अंदाज में जिया, जिस अंदाज में तत्कालीन समय लोगों ने 15 अगस्त 1947 के मध्यरात्रि को जिया था.

जनलोकपाल बिल पास होने पर अन्ना ने उपवास का भी अंत बहुत शानदार अंदाज में किया. पूरे बारह दिन तक टीवी पर दलित और अल्पसंख्यक समाज के नाम पर आंदोलन को घेरने वालों को अनशन के आखिरी दिन अन्ना ने करारा जवाब दिया. दलित और अल्पसंख्यक समाज की बच्चियों के हाथों उपवास तोड़कर रालेगांव के सन्त ने विघ्नसंतोषियों के होठों पर फेवीक्विक रख दिया. इस अंदाज को देश ने पूरे दिल के साथ स्वीकार किया.

अन्ना के अनशन तोड़ते ही पूरा देश विजय के जश्न में डूब गया. खुशी की लहर कुछ इतनी तेज थी की दिल्ली से उसे कन्याकुमारी तक पहुंचने में तनिक भी समय नहीं लगा. देखते ही देखते पूरा देश रंगमंच की दर्शक दीर्घा में तब्दील हो गया.

इस दौरान लोगों ने महसूस किया कि दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना ने राम की जीवंत भूमिका निभाकर भ्रष्टाचार के रावण को झुकने पर मजबूर कर दिया.

रामलीला मैदान के मंच से अन्ना ने उस गीतकार के सपनों को भी साकार कर दिया जिसने कभी लिखा था कि “लेकर चलुंगा जब यहां मशाल, तब तुम देखना, पानी से दिये जलेंगे, भिनसार होगी देखना”.

टीम अन्ना ने ऐसा कर दिखाया, अन्तत: सरकार को हजारे के सामने नतमस्तक होना पड़ा.

इतिहासकारों की मानें तो इस आंदोलन को सदियों तक याद रखा जायेगा. क्योंकि इंडिया अगेंस्ट करप्शन का मूल उद्देश्य (The basic objective of India Against Corruption) सत्ता हासिल करना नहीं बल्कि सत्ताधारियों की सोच और समझ को बदलना था. काफी हद तक अन्ना, इस मुहिम में सफल भी रहे. देश के कई नेताओं ने उनके इस अभियान को खुलकर समर्थन भी दिया. समर्थन देने वालों की फेहरिस्त में सत्ताधारी और गैर सत्ताधारी दल के नेता भी थे.

आम जनता ने अन्ना के समर्थन में देश के कोने-कोने में मशाल रैली और कैंडल मार्च, निकालकर जनलोकपाल बिल का समर्थन किया और उपवास भी रखा. जन लोकपाल बिल को समर्थन देने के लिये राज्य सरकार पर दबाव भी बनाया. मेहनत रंग लाई. बिल पास होने के बाद देश वासियों ने जमकर खुशियां मनाई.

Anna Hazare Arvind Kejriwal
इंडिया अगेंस्ट करप्शन

28 अगस्त का सूरज कुछ नयी आभा के साथ उदय हुआ. पहली किरण के पड़ते ही बच्चे बूढ़े सभी की उमंगे जवान हो गईं. देश के साथ इस पूरे अभियान में भ्रष्टाचार को मात देने में प्रदेश भी अछूता नहीं रहा. शहर हो या गांव, हर वर्ग अन्ना के अभियान का जमकर समर्थन किया. इस मुहिम में लोगों के बीच दूरियां सिमटती नज़र आयीं. टोपियों ने अहम् त्यागा. धरना स्थल पर बैठकर मौलानाओं ने रोजा इफ्तार किया. इस दौरान दोनों कौमों में भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर जुगलबंदी देखने को मिली. मसीही समाज भी अपने आप को रोक न सका. अन्ना के समर्थन में उनके भी कदम स्वस्फूर्त गिरजाघरों से हाथों में कैंडल लिये बाहर निकलते देखे गये. बच्चों ने भी आजादी की दूसरी लड़ाई को समर्थन देकर स्कूल का बहिष्कार किया. सरकार के खिलाफ मुंह न खोलने वाले कर्मचारियों ने भी कार्यालयीन समय के बाद कभी मशाल रैली तो कभी पोस्टर रैली निकाली, अन्तत: 27 अगस्त को तंत्र ने जनलोकपाल को ध्वनिमत से पारित कर दिया.

बिल पास होते ही लोग खुशी से झूम उठे. जगह-जगह जश्न मनाये गये. इस दौरान शहर में कौमी एकता का अदभुत नज़ारा देखने को मिला. जश्न में बच्चे बूढ़े, नौजवान, अमीर, गरीब सभी ने एक दूसरे को रंग गुलाल लगाया, साथ ही मिठाइयां, सेवइयां और केक बांटे. इस अवसर पर शहरवासियों ने एक साथ दीवाली, होली ,ईद और क्रिसमस मनाया, इस मंजर को जिसने भी देखा, वह देखता ही रहा, क्योंकि जश्न में धर्म, संप्रदाय, ऊंच, नीच की सारी दीवारें ढहती नज़र आईं ,यदि कुछ रह गई थी तो केवल और केवल अन्ना की हुंकार, नतमस्तक सरकार और अंगड़ाई लेता महान युवा भारत.

भास्कर मिश्र पारस

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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