डॉ. बिनायक सेन को उम्र कैद (life imprisonment for Dr. Binayak Sen) के बाद प्रधानमन्त्री को नींद कैसे आ रही है? …. विरोध प्रदर्शन नहीं होते तो आज जेसिका, प्रियदर्शिनी और रुचिरा के हत्यारे जेल में नहीं होते

आनंद प्रधान

डॉ. बिनायक सेन को देशद्रोह के आरोप (Allegations of sedition) में उम्र कैद की सजा पर कुछ बुद्धिजीवियों का तर्क है कि यह फैसला अदालत का है। अदालत की सबको इज्जत करनी चाहिये। अगर आप फैसले से सहमत नहीं हैं तो ऊँची अदालत में जाइये लेकिन अदालत के फैसले के खिलाफ सड़क पर विरोध मत करिये। उनका यह भी कहना है कि अदालत के फैसले के विरोध से देश में अराजकता फ़ैल जायेगी और इसका सबसे अधिक फायदा साम्प्रदायिक फासीवादी शक्तियाँ उठायेंगी।

कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे बुद्धिजीवी या तो बहुत भोले हैं या फिर बहुत चालाक।

वैसे सनद के लिए बताते चलें कि ठीक यही तर्क देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों काँग्रेस और भाजपा का भी है। लेकिन सोमवार को जंतर-मंतर पर बिनायक सेन को सजा देने के खिलाफ आयोजित प्रदर्शन के दौरान अरुंधती ने बिल्कुल ठीक कहा कि सबसे बड़ी सजा तो खुद न्याय प्रक्रिया है। मतलब यह कि डॉ. सेन दो साल पहले ही जेल में रह चुके हैं। अब उच्च न्यायालय में जमानत के लिए लड़ें और जीवन भर मुक़दमा लड़ते रहें।

सचमुच, इससे बड़ी सजा और क्या हो सकती है कि 61 साल की उम्र में डॉ. सेन इस अदालत से उस अदालत और इस जेल से उस जेल तक चक्कर काटते रहें? क्या यह याद दिलाने की जरूरत है कि भ्रष्ट और निरंकुश

सत्तायें, उन पर ऊँगली उठाने वालों या जनता के लिये लड़ने वालों को पुलिस की मदद से जेल-अदालत-कचहरी के अन्तहीन यातना चक्र में कैसे फँसाती रहती हैं?

ऐसे एक नहीं, सैकड़ों उदाहरण हैं। आज भी पूरे देश में सैकड़ों बिनायक सेन सत्ता और पुलिस के षड्यंत्र और अदालत की मुहर के साथ जेलों में सड़ रहे हैं। इनमें जन संगठनों से लेकर कथित आतंकवादी संगठनों के लोग शामिल हैं। इसके अलावा हजारों निर्दोष नागरिक हैं जो पुलिसिया साजिश के कारण बरसों-बरस से जेल-अदालत-कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं।

लेकिन इससे किसी की नींद खराब नहीं हो रही है। प्रधानमंत्री आराम से सोये हुये हैं। याद कीजिये, जब 2007 में आस्ट्रेलिया पुलिस ने भारतीय डॉक्टर मोहम्मद हनीफ को ग्लासगो बम विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किया (Indian doctor Mohammad Hanif arrested in connection with the Glasgow bombings) था, तब पूरे देश में फूटी गुस्से की लहर के बाद मनमोहन सिंह ने कहा था कि ‘ (डॉ. हनीफ की गिरफ़्तारी के बाद) वे रात में सो नहीं पाते।’

ताजा खबर यह है कि आस्ट्रेलिया ने न सिर्फ डॉ. हनीफ से गलत केस में फँसाये जाने के लिये माफ़ी माँगी है बल्कि उन्हें मुआवजा देने का भी एलान किया है।

लेकिन कहना मुश्किल है कि डॉ. बिनायक सेन की गिरफ़्तारी के बाद प्रधानमन्त्री को नींद कैसे आ रही है?

असल में, जिसके पास थोड़ी सी भी बुद्धि है और उसने उसे सत्ता और पूँजी के पास गिरवी नहीं रखा है, वह डॉ. सेन को देशद्रोह के आरोपों में उम्र कैद की सजा पर चुप नहीं रह सकता है। वैसे ही जैसे बहुतेरे बुद्धिजीवियों और सम्पादकों ने जेसिका लाल, प्रियदर्शिनी मट्टू, रुचिका गिरहोत्रा जैसे मामलों में निचली अदालतों के अन्यायपूर्ण फैसलों पर खुलेआम अपना गुस्सा जाहिर किया था। देश भर में विरोध प्रदर्शन हुये थे और जनमत के दबाव में ताकतवर लोगों द्वारा न्याय का मजाक बनाये जाने की प्रक्रिया पलटी जा सकी थी।

कहने की जरूरत नहीं है कि अगर वे विरोध प्रदर्शन नहीं हुये होते और लोगों का गुस्सा सड़क पर नहीं आता तो जेसिका, प्रियदर्शिनी और रुचिरा के हत्यारे सम्मानित नागरिकों की तरह आज भी घूम रहे होते।

सचमुच, आश्चर्य की बात यह नहीं है कि डॉ. बिनायक सेन जेल में क्यों हैं बल्कि यह है कि हम सब बाहर क्यों हैं?

कई बार ऐसा लगता है, जैसे पूरा देश ही एक खुली जेल में तब्दील होता जा रहा है जहाँ सच बोलना मना है। सच बोलने का मतलब है- खुली जेल से बन्द जेल को निमन्त्रण।