सच में अजातशत्रु कवि– शिक्षक हैं केदारनाथ सिंह
सच में अजातशत्रु कवि– शिक्षक हैं केदारनाथ सिंह
केदारनाथ सिंह होने का मतलब
जगदीश्वर चतुर्वेदी
केदारनाथ सिंह से मेरा पहला परिचय 1979 में जेएनयू में उस समय हुआ जब मैं एमए में दाखिला हेतु इंटरव्यू देने भारतीय भाषा संस्थान (जेएनयू) गया। मैं उनको नाम से जानता था, इंटरव्यू लेने वालों में नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, मैनेजर पांडेय, मोहम्मद हसन, सुधेशजी, चिन्तामणिजी आदि मौजूद थे और मेरा एमए का दाखिला इंटरव्यू तकरीबन 55 मिनट चला और आदरणीय नामवरजी ने सबसे अधिक सवाल किए। सवालों की कड़ी में केदारजी ने भी एक सवाल किया, पूछा, कविताएं पढ़ते हो, मैंने कहा हाँ, बोले, निराला की बेहतरीन कविता सुनाओ। मैंने 'सरोज स्मृति' सुनाई। तत्काल नामवरजी की ओर संबोधित करके बोले डाक्टर साहब लड़का मेधावी है। नामवरजी ने हाँ में सिर हिलाया और कहा तुम तो सिद्धांत ज्योतिषाचार्य करके आए हो, हम तुमको सीधे पीएचडी में दाखिल दे सकते हैं। ले लो। मैंने कहा नहीं मैं तो पहले एमए करना चाहता हूँ। बोले क्यों। मैंने कहा आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदीजी की तरह हिन्दी की सेवा करना चाहता हूँ। तीर निशाने पर लगा और दाखिला हो गया।
आप सबको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैंने शास्त्री के आधार पर एमए में दाखिला लिया और मेरे शास्त्री (बीए के समकक्ष) में मात्र 50फीसदी नम्बर थे। संभवतः इतने कम नम्बरों के आधार पर जेएनयू में दाखिला पाने वाला मैं अकेला छात्र था। मेरा दाखिला टेस्ट अच्छा हुआ था लेकिन इंटरव्यू में केदारनाथ सिंह के एक वाक्य ने मेरा नसीब बदल दिया। मैंने बाहर आकर लोगों को बताया कि किसने क्या पूछा और क्या कहा। उसी बातचीत में पता चला कि केदारजी ने मेरी प्रशंसा करके मेरा दाखिला पक्का कर दिया ।
उसके बाद लगातार 7 सालों तक उनके सान्निध्य में रहकर पढ़ाई की। उनके ही निर्देशन में एमफिल और पीएचडी की। एमफिल मैंने जेएनयू में रिकॉर्ड समय में की। मैंने कोर्स वर्क खत्म होते ही तीसरे सीमेस्टर के पहले दिन ही शोध प्रबंध जमा कर दिया। मेरा विषय था 'आपात्कालीन हिन्दी कविता और नागार्जुन'। संभवतः जेएनयू में आज तक किसी भी छात्र ने कोर्सवर्क खत्म होते ही अपनाशोध प्रबन्ध जमा नहीं किया। बाद में केदारजी के साथ ही पीएचडी की। मैं पहला छात्रसंघ अध्यक्ष था जिसने पीएचडी की। यह मैंने 1986 में जमा की।
मेरा निजी अनुभव है कि केदारजी जैसा शिक्षक होना असंभव है। वे बेहतरीन शिक्षक हैं और कविता पढ़ाते समय इस कदर भाव में डूबे जाते थे कि आपको लगे कि बस कविता के अलावा अब और किसी विधा को पढ़ने की जरूरत नहीं है। स्वभाव से एकदम अनौपचारिक किसी भी किस्म के अहं,राग-द्वेष से दूरऔर छात्र की शक्ति पर अगाध विश्वास रखने वाले। हर हालत में छात्र हितों के साथ रहने वाले। कभी किसी छात्र को उन्होंने परेशान नहीं किया। कभी किसी के खिलाफ कोई चुगली या निंदा नहीं की। जबकि जेएनयू में कई शिक्षकों और छात्रों में चुगली की बीमारी थी। ईमानदारी और लगन के साथ कक्षाएं लेना, शोध छात्रों की मदद करना। जब भी मैं उनसे किसी भी मदद की मांग करता था तो वे मदद करते थे। हम लोगों को बार बार उनका स्नेह मिला। वे नामवरसिंह के करीबी होने के बावजूद उनसे एकदम भिन्न किस्म का जनतांत्रिक व्यवहार करते थे।
कलकत्ता विश्वविद्यालय से लौटकर मैंने फेसबुक पर उनको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की खबर पढ़ी तो मन बहुत खुश हुआ। यह हिन्दी का सम्मान तो है ही। हम सबके लिए भी गौरव की बात है। केदारजी जैसा शिक्षक, मनुष्य और कवि होना सचमुच में दुर्लभ है वे सच में अजातशत्रु कवि– शिक्षक हैं।


