सड़क सुरक्षा के मामले में सरकार पर भारी पड़ते हैं निहित स्वार्थ
सड़क सुरक्षा के बारे में अपने देश में कहीं कोई आंकड़ा नहीं है
नई दिल्ली, 8 मई। भारत में आवाजाही का सबसे बड़ा जरिया सड़क परिवहन है। सड़कों पर चलने वालों की ज़िंदगी को सुरक्षा प्रदान करना सरकार का ज़िम्मा है। लेकिन सड़क सुरक्षा के मामले में सरकार आम तौर पर लापरवाह ही पाई जाती है। संसद की एक समिति ने पाया है कि सड़क सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार सरकारी और गैर सरकारी 22 एजेंसियों में सभी ने अपना काम सही तरीके से नहीं किया है और उनको काम करने से रोकने में निहित स्वार्थों का सबसे ज़्यादा योगदान है। यह अजीब बात है कि अपने लाभ के लिए कुछ स्वार्थी लोग आम आदमी की ज़िंदगी को खतरे में झोंक रहे हैं।
केंद्रीय सड़क परिवहन और नेशनल हाईवे मंत्रालय का सबसे बड़ा ज़िम्मा सड़क यातायात और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है, लेकिन सरकार अलगर्ज़ है। इस मद में सरकार ने केवल दो सौ करोड़ रूपये का प्रावधान किया था। हाइवे एक्सीडेंट रिलीफ फण्ड में केवल 25 करोड़ रूपये दिए गए थे जबकि उसमें से भी केवल 15 लाख रूपये इस्तेमाल किये गए। आंकड़े इकठ्ठा करने के लिए साल भर में केवल दो करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया था। वह भी पूरी तरह से खर्च नहीं हुआ यानी आंकड़े इकठ्ठा करना किसी की प्राथमिकता ही नहीं है। इसीलिये सड़क सुरक्षा के बारे में अपने देश में कहीं कोई आंकड़ा नहीं है। जो है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। एक नमूना काफी होगा। सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों में 77 प्रतिशत मामलों में दुर्घटना का कारण " ड्राइवर की गलती " बता दिया जाता है। संसद की समिति को यह बात बिलकुल गलत लगी, क्योंकि कोई भी ड्राइवर सड़क पर अपनी रोटी कमाने निकलता है, मरने के लिए नहीं। वैसे भी जो ड्राइवर मर चुका है उसके मत्थे सड़कों, वाहनों और मोटर वाहनों की डिजाइन की खराबियों को मढ़ कर सरकारी संस्थाएं अपनी ड्यूटी पूरी मान लेती हैं।
संसदीय समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार को सड़क सुरक्षा के विभाग को मज़बूत बनाना चाहिए और उसे मजाक का विषय बनने से बचना चाहिए। समिति ने सरकार से सड़क सुरक्षा के बारे में एक श्वेतपत्र तैयार करने की मांग की है। संसदीय समिति ने अपनी जांच में पाया कि सड़क सुरक्षा में सबसे बड़ी बाधा है कि सरकार सड़क सुरक्षा के नियम कानून लागू नहीं करतीं। केंद्रीय यातायात और हाइवे मंत्रालय के पास कानून लागू कर पाने का अधिकार नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन बहुत सारी एजेंसियां हैं जो एक दूसरे का रास्ता काटती रहती हैं। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ऐसे हालात पैदा करने चाहिए, जिस से सभी सरकारी नियम कानून सही तरीके से लागू किये जा सकें।
सेन्ट्रल मोटर वेहिकिल रूल्स और कैरेज बाई रोड रूल्स बना तो दिए गए हैं लेकिन अभी तक वे केवल कागजों पर हैं, लागू नहीं किये जा सके। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि निहित स्वार्थ और सरकारी अधिकारियों की मिली भगत के चलते सड़क सुरक्षा को भगवान् भरोसे छोड़ दिया गया है। मोटर निर्माता, सड़कों की डिजाइन और सरकारी अधिकारियों की मामूली स्वार्थपूर्ति की कामना नियमों की अनदेखी का सबसे बड़ा कारण है।
कमेटी ने सवाल उठाया है कि सेन्ट्रल मोटर वेहिकिल एक्ट में जुर्माना बढ़ाने वाला संशोधन क्यों नहीं संसद में पेश किया गया। नेशनल रोड सेफ्टी और ट्रैफिक मैनजेमेंट बोर्ड की स्थापना के लिए तैयार किया गया बिल संसद में क्यों पेश नहीं किया गया है? यह सवाल बहुत सारे सवालों को जन्म देता है। मोटर वेहिकिल एक्ट के नियम 106 के तहत ऑटो डिपर लगाना अनिवार्य है लेकिन यह कहीं लागू नहीं हो रहा है।।कमेटी ने सरकार को निर्देश दिया है कि इसके बारे में स्थिति की सही जानकारी दें।
राष्ट्रीय राजमार्गों पर डिवाइडर लगाना भी अनिवार्य है वह क्यों नहीं लगाया गया, इसकी भी जानकारी माँगी गयी है।
शेष नारायण सिंह