सत्ता पर बने रहने की मजबूरी और मोदीजी का अपने दोस्त ओबामा की तरह भावुक हो जाना
सत्ता पर बने रहने की मजबूरी और मोदीजी का अपने दोस्त ओबामा की तरह भावुक हो जाना
लखनऊ में अंबेडकर विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करते-करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भावुक हो गए। हैदराबाद विश्वविद्यालय में शोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या से उन्हें इतनी पीड़ा पहुँची कि मंच से उसे याद करते हुए उन्होंने कहा - माँ भारती ने अपना एक बेटा खो दिया और ऐसा कहते हुए उनकी आँखें भर आईं।
कुछ दिनों पहले ही मोदीजी के दोस्त बराक भी ऐसे ही भावुक हो गए थे।
व्हाइट हाऊस में एक संबोधन के दौरान अमेरिका में बढ़ रही हथियार संस्कृति और वर्ष 2012 में सेंडी हूक स्कूल में मारे गए बच्चों को याद करके विश्व के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति बराक ओबामा रो पड़े।
ओबामा से मोदीजी की समानताएं बढ़ती ही जा रही हैं
भाषण देने का खास अंदाज, जनता से संवाद की अनौपचारिक शैली और अब सार्वजनिक तौर पर आंसू बहाना, बराक ओबामा से मोदीजी की समानताएं बढ़ती ही जा रही हैं। बहरहाल, अपने पूरे शासनकाल में बराक ओबामा ने दर्जनों बार हथियार रखने की अनुमति सहज उपलब्ध होने पर चिंता प्रकट की। इस बीच कुछेक दुखद घटनाएं भी हुईं, जिसमें सिरफिरे बंदूकधारियों ने मासूमों को मार डाला। लेकिन हथियार विक्रेताओं के आगे अमरीकी सरकार इस कदर मजबूर है कि बंदूकों की बिक्री और आसानी से लाइसेंस उपलब्ध होने के चलन पर रोक नहीं लगा पाई। जाहिर है यह मजबूरी सत्ता पर बने रहने की है। भारत में भी प्रधानमंत्री कुछ ऐसे ही मजबूर नजर आते हैं। दलित छात्र रोहित की मौत पर हमेशा की तरह उन्होंने काफी देर से अपनी शोक संवेदनाएं प्रकट कीं। पहले भी जब कभी अल्पसंख्यकों या दलितों पर कोई टीका-टिप्पणी या अत्याचार हुआ और उसमें उनके ही दल या सरकार के लोगों की संलिप्तता सामने आई, तो उन्होंने लंबे मौन के बाद अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। यह समझना कठिन नहींहै कि जब देश का एक बड़ा तबका इस तरह के अत्याचार और व्यवहार पर नाराजगी प्रकट करने लगता है, मीडिया में इसकी आलोचना होती है तो प्रधानमंत्री अपनी चुप्पी तोडऩे पर मजबूर हो जाते हैं।
रोहित वेमुला की आत्महत्या के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई मोदीजी ?
रोहित वेमुला की आत्महत्या ने देश के शिक्षण संस्थानों की कार्यसंस्कृति, जातिवाद, राजनीति आदि पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनके जवाब तलाशने की जगह मामले को नए-नए मोड़ देने की कोशिशें जारी हैं। कभी रोहित की जाति पर सवाल उठाया जा रहा है, कभी छात्रों के आंदोलन को राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है। इस बीच रोहित के शेष चार निलंबित साथियों का निलंबन तो रद्द हो गया, लेकिन इस फैसले को लेने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई अब तक नहींहुई है। निलंबन वापस लेने का अर्थ है, कि उन छात्रों के साथ अनुचित कार्रवाई हुई थी। अगर ऐसा है तो फिर जो इसके जिम्मेदार हैं, उन्हें सजा क्यों नहींहुई?
दलित छात्र की आत्महत्या के मामले में आरोपी बना दिए प्रभारी कुलपति
हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति अप्पाराव पोदिले लंबी छुट्टी पर चले गए हैं और उनकी जगह जिन विपिन श्रीवास्तव को प्रभारी कुलपति बनाया गया है, वे उस समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं, जिन्होंने रोहित समेत 5 छात्रों के निलंबन की सिफारिश की थी। अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति फैकल्टी फोरम और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति आफिसर्स फोरम का आरोप है कि श्रीवास्तव 2008 में एक दलित छात्र सेंथिल की आत्महत्या के मामले में आरोपियों में से एक हैं। हालांकि विपिन श्रीवास्तव का कहना है कि वह मामला सुलझ चुका है। बंडारू दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी पर भी भाजपा सरकार और संगठन की ओर से कोई कार्रवाई के संकेत नहीं हैं, हालांकि पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य संजय पासवान ने गंभीर चेतावनी जारी की है कि सत्ता की राजनीति के भागीदारों को रोहित वेमुला प्रकरण को गंभीरता से लेना चाहिए या फिर विरोध, बदला, विद्रोह और प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार रहना चाहिए।
इन विडंबनाओं पर आँसू बहाने से कुछ नहीं होगा मोदीजी
क्या मोदीजी की मंचीय भावुकता इस चेतावनी के बाद उपजी है? अगर वे सचमुच रोहित की मौत से दुखी हैं तो क्यों नहीं दोषियों पर सख्त कार्रवाई के संकेत देते हैं? क्यों नहीं शिक्षा संस्थानों की बिगड़ती दशा को सुधारने के लिए कोई ठोस, कारगर कदम उठाते? अभी हाल ही में तमिलनाडु के एक मेडिकल कालेज में तीन छात्राओं ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। इस घटना में कालेज प्रशासन कटघरे में है। कोटा में इंजीनियर और डाक्टर बनने की हसरत पाले नौजवान आत्महत्या के लिए प्रवृत्त हो रहे हैं। सरकारी स्कूलों में पठन-पाठन की स्थिति निरंतर गिरती जा रही है। गणित और अंग्रेजी बहुत से बच्चों के लिए दु:स्वप्न साबित हो रही है और जो इनसे पार पा जाते हैं, उन्हें जाति मार देती है।
इन विडंबनाओं पर आंसू बहाने से कुछ नहीं होगा मोदीजी, जिनके हाथ में सत्ता है, शक्ति है, वे सुधारने का दम दिखाए, तभी स्थितियां बदलेंगी।
"देशबन्धु" का 26 जनवरी 2016 का संपादकीय, देशबन्धु से साभार


