सत्ता हथियाने के लिये कांठ का कांटा
सत्ता हथियाने के लिये कांठ का कांटा
सांप्रदायिकता और अवसरवाद का घिनौना खेल
डॉ. गिरीश
कांठ अब भी धधक रहा है। मंदिर पर माइक लगाना इतना भारी पड़ जायेगा, कांठवासियों ने शायद स्वप्न में भी न सोचा हो। लूट के लिये सत्ता और सत्ता के लिये वोट, फिर वोट के लिये विभाजन और विभाजन के लिये धर्म और जाति को औजार बनाना, यही खेल खेला जा रहा है आज उत्तर प्रदेश में। कांठ इस खेल का नया मोहरा है जो फूटवादी और लूटवादी ताकतों और सत्ता प्रतिष्ठान के लिये कमोवेश एक जैसे अवसर प्रदान करता है। कांठ के ग्राम अकबरपुर चैदरी के माजरा नया गांव के मन्दिर पर श्रद्धालुओं ने माइक लगाया हुआ था। इस बीच पुराने माइक को हठा कर नया माइक लगाया गया। हमारे धर्मपरायण देश में रोजाना न जाने कितने मन्दिर– मस्जिद बनाये जा रहे हैं और उन पर कब कानफोड़ू माइक टांग दिए जाते हैं, जान पाना बेहद कठिन है। लेकिन अकबरपुर चैदरी में मन्दिर पर टांगा गया माइक अति विशिष्ट माइक साबित हुआ तो इसमें बेचारे माइक का क्या दोष?
बताया जा रहा है कि इस मन्दिर पर महाशिवरात्रि एवं जन्माष्टमी के अवसर पर ही माइक चलाने की अनुमति है। फिर भोले-भाले ग्रामवासियों को नया माइक लगाने का खयाल अचानक क्यों आया, पेंच यहीं से शुरू होता है। सूत्र बताते हैं कि पवित्र रमजान माह के शुरू होने से पहले मन्दिर पर माइक लगाने का फलितार्थ समझने वालों ने ही इसका ताना- बाना बुना। मुरादाबाद के वर्तमान सांसद और स्थानीय कार्यकर्ताओं के इर्द- गिर्द ही इस घटना का चक्र घूम रहा है। वे इस जनपद की ठाकुरद्वारा सीट से विधायक थे जो उनके सांसद बनने के बाद खाली हुई है। शीघ्र ही प्रदेश में खाली हुई दर्जन भर विधानसभा सीटों के साथ ही चुनाव होना है। भाजपा की नजर इन सीटों को किसी भी कीमत पर अपनी झोली में डालने पर गढ़ी है। ज्ञातव्य है कि ये सारी सीटें भाजपा विधायकों के सांसद बन जाने से रिक्त हुई हैं। अतएव भाजपा के लिए इन सभी को जीतना बेहद महत्त्वपूर्ण है। यह गांव पीस पार्टी के विधायक अनीसुर्रहमान का गांव है। सभी समुदायों में उनका सम्मान है। यह बात बहुतों को अखरती है। उस समाजवादी पार्टी को भी जिसे लोकसभा चुनावों में करारी पराजय का सामना करना पड़ा है। वह इस हार से हतप्रभ भी है। वह अपनी इस पराजय के लिये सपा से अल्पसंख्यक वोटों के छिटकने को भी एक कारण मानती है।
सपा 12 विधानसभा सीटों के उपचुनावों को लेकर काफी गंभीर है। वह इन सीटों में से कुछ को भाजपा से झटक कर संदेश देना चाहती है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा का मुकाबला सपा ही कर सकती है। खबर है कि रमजान से पहले मन्दिर से माइक उतरवाने को जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा गया और स्थानीय सपाइयों ने माइक उतरवाने को प्रशासन पर दबाव बनाया। इसे अप्रत्याशित ही माना जायेगा कि स्थानीय प्रशासन ने 27 जून को नया गांव पहुँच कर मन्दिर का ताला तोड़ कर माइक उतार दिया। विरोध करने वाली भीड़ को पुलिस ने बुरी तरह धुना। महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। कई स्त्री- पुरुष पुलिसिया कार्यवाही में जख्मी हुये। ये अधिकतर दलित समुदाय के थे।
यहां सवाल उठता है कि माइक को उतरवाने के लिये पुलिसिया कार्यवाही ही क्या एकमात्र विकल्प थी? क्या इससे पहले कोई नागरिक पहल नहीं की जानी चाहिये थी? क्या स्थानीय विधायक और गांव के सभी समुदायों के लोगों को बैठा कर मामले को नहीं सुलझाया जा सकता था? लेकिन पुलिस- प्रशासन ने एक ही विकल्प चुना, पुलिसिया कार्यवाही का। और प्रशासन का यही कदम पुलिस और राज्य सरकार को शक के घेरे में ला खड़ा करता है। सब कुछ मुजफ्फरनगर कांड की तर्ज पर चल रहा था।
माइक उतारने की घटना एक स्थानीय घटना थी और इस पर स्थानीय प्रतिरोध को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन भाजपा तो जैसे मौके की तलाश में ही बैठी थी। गत लोकसभा चुनावों में हुये ध्रुवीकरण के चलते दलित मतों का एक भाग भाजपा की झोली में चला गया था अतएव भाजपा के लिये इस वर्ग को अपने साथ बनाये रखने की चुनौती भी है। फिर क्या था, भाजपा नेताओं के बयानों की झड़ी लग गयी। मुजफ्फरनगर के सांसद और अब केंद्र सरकार में राज्यमन्त्री एक दर्जन नेताओं के साथ कांठ को कूच कर गये जिन्हें स्थानीय प्रशासन ने रोक दिया। अगले दिन भाजपा और उसके आनुसंगिक संगठनों ने मुरादाबाद कलेक्ट्रेट में उग्र और अराजक प्रदर्शन किया। तनाव के चलते कांठ के बाजार अब तक बंद हैं। 4 जुलाई को भाजपा ने वहां महापंचायत का एलान किया और मुजफ्फरनगर दंगों के उसके सारे सिपहसालार कांठ की और कूच कर दिये। आसपास के जिलों की भीड़ भी एकत्रित की गयी। रोके जाने पर भीड़ ने कांठ स्टेशन पर धाबा बोल दिया। पुलिस और भाजपाइयों के बीच हुये इस तुमुल- युद्ध में जिलाधिकारी गम्भीर रूप से घायल हो गये और उनकी आंख की रोशनी चली जाने की खबर है। अन्य कई दर्जन नागरिक घायल हुये तथा करोड़ों करोड़ की सार्वजनिक सम्पत्तियां नष्ट हो गयीं। घंटों रेल यातायात ठप रहा और यात्रियों को बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। छापामार युद्ध की तरह पुलिस को बार-बार चकमा देकर भाजपाई तोड़फोड़ की कारगुजारियों को अंजाम देते रहे।
यह कोई नक्सली हमला नहीं था जिन पर कड़ी कार्यवाही करने की चेतावनी केन्द्रीय गृह मंत्री जारी कर चुके हैं। अपितु यह तो वोट के उन सौदागरों का निर्विघ्न तांडव था जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता की दुहाई देते नहीं थकते और सत्ता हथियाने के लिये कुछ भी कर गुजरने से नहीं चूकते। सौभाग्य अथवा दुर्भाग्य से वे आज केंद्र में सत्तासीन हैं। करेला नीम चढ़ गया है। लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित जीत ने भाजपा की सत्ता की भूख को बढ़ा दिया है। वह अब उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ होने के सपने देख रही है। उसे भली भांति पता है कि चुनाव अभियान के दौरान उछाला गया ‘अच्छे दिन आने वाले हैं‘ का लुभावना नारा छलावा साबित होने जा रहा है और मोदी लहर का जल्दी ही कचूमर निकलने वाला है। अतएव वह उत्तर प्रदेश में जल्दी से जल्दी विधान सभा चुनाव कराने को उद्यत है ताकि मोदी लहर पर सवार होकर सत्ता पर काबिज हो सके। अतएव वह प्रदेश सरकार को किसी भी तरह गिराने को हाथ पांव मार रही है। इसके लिये वह हर उस स्थानीय घटना जिसमें दो अलग अलग समुदाय लिप्त हों को सांप्रदायिक रूप देने में जुट जाती है।
लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद से प्रदेश में हर रोज एक न एक ऐसी वारदात हो रही है जिसको आसानी से सांप्रदायिक रूप दे दिया जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश इन घटनाओं का सघन केंद्र बना हुआ है। भाजपा का कोई न कोई मोर्चा हर दिन विरोध प्रदर्शन के नाम पर अराजकता पैदा करता दिखाई दे रहा है और उनका प्रांतीय नेतृत्व सरकार को बर्खास्त करने की मांग उठाता रहता है। उसके केन्द्रीय नेतृत्व का उसे सम्पूर्ण समर्थन हासिल है। विधान सभा की 12 सीटों और मैनपुरी की लोक सभा सीट के उपचुनाव में वह सौफीसद कामयाबी को उत्सुक है। इन सीटों में आधा दर्जन सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही हैं, इससे भाजपा की व्यग्रता को आसानी से समझा जा सकता है।
समाजवादी पार्टी ने भी लोकसभा चुनावों में अपनी करारी हार और सांप्रदायिक विभाजन का लाभ उठाने की अपनी नीति की विफलता से लगता है कोई सबक नहीं लिया है। वह न तो प्रदेश की कानून व्यवस्था को पटरी पर ला पा रही न सांप्रदायिक वारदातों को रोक पारही है। वह दुविधा की स्थिति में भी जान पड़ती है। सपा नेतृत्व का एक हिस्सा भाजपा के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग कर रहा है तो शीर्ष नेतृत्व कह रहा है कि मुरादाबाद में कुछ हुआ ही नहीं। राजनीति, शासन और प्रशासन की इस विकलांगता का भरपूर लाभ भाजपा उठाने में जुटी है। जनता की आंखो में धूल झोंकने के लिये भाजपा ने अपने विधायकों की जांच कमेटी गठित की है जो कांठ के भाजपा प्रायोजित उपद्रव की जांच करेगी। एक ‘साधु परिषद’ नामक संगठन द्वारा शिवरात्रि के दिन अकबरपुर चैदरी गांव के शिव मन्दिर पर जलाभिषेक करने की घोषणा की गई है। इसे भाजपा की विभाजन की राजनीति को बरकरार रखने की मंशा के विस्तार के रूप में देखा जा रहा है।
देश के किसी भी भाग में हिंसा और टकराव हो केंद्र से एक सदाशयता की उम्मीद की जाती है लेकिन केंद्र में हाल में ही सत्तारूढ़ हुई शक्तियां अपने संवैधानिक दायित्वों से ज्यादा अपने राजनैतिक हितों को अधिक तरजीह देती नजर आ रही हैं। कांठ को सांप्रदायिक हिंसा की नयी प्रयोगशाला बनाने वाले इसका कितना लाभ उठा पाएंगे यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन अकबरपुर चैदरी गांव और कांठ क्षेत्र की जनता तो इसके कुफल भोगने को मजबूर है। असुरक्षा वोध के चलते वह पलायन कर चुकी है, तमाम लोग रोटी रोजी को मुंहताज हैं और कईयों को इलाज नहीं मिल पा रहा। ऐसे में वोट के लिये मानवता को शर्मसार करने वाली कारगुजारियों में संलिप्त ताकतों को बेनकाब किया जाना चाहिये।


