सत्य से मुंह चुराती सत्ता
सत्य से मुंह चुराती सत्ता
डॉ . आशीष वशिष्ट
देश की वर्तमान परिस्थितियां और घटनाक्रम कदम-कदम पर यह इशारा कर रहे है कि आज सत्ता सत्य से मुह चुरा रही है और दुःखद बात यह है कि देश की भोली-भाली, अनपढ़ जनता सत्ता के कुचक्र, झूठ, प्रपंच और षडयंत्र को समझ नहीं पा रही है। देश में घटने वाली छोटी-बड़ी हर घटना के आगे-पीछे और मध्य में आपको सत्ता शामिल नजर आएगी लेकिन निजी स्वार्थों, कुर्सी पर जमे रहने की चाहत, वोट बैंक की घटिया और ओछी राजनीति के वशीभूत सब जानते-बूझते हुए भी सत्ता अपने नफे-नुकसान का हिसाब-किताब लगाकर ही कोई कार्रवाई करती है। सत्ता के टालू और चालू रवैये से सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक समस्याएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई गहरा रही है और एक ही देश में दो देशों हिन्दुस्तान और इण्डिया का निर्माण हो चुका है। देश में जात-पात और क्षेत्र की राजनीति, धर्म, भाषा, जाति और संप्रदाय के बढ़ते झगड़े, गरीबों, किसानों और स्त्रियों का बढ़ता शोषण , गरीबी, बेरोजगारी, नक्सलियों का बढ़ता साम्राज्य, विकास के नाम पर खुली लूट, बंदरबांट, सिर से पैर तक भ्रष्टाचार में डूबी सरकारी मशीनरी ये खुले आम चीख-चीख कर बता रहे हैं कि सत्ता सत्य से मुंह चुरा रही है।
आजादी से लेकर आज तक की राजनीति का इतिहास खंगाल कर देख लीजिए आपको एक नहीं सैंकड़ों उदाहरण ऐसे मिल जाएंगे जिसमें सत्ता ने सत्य का सामना करने की बजाए मुंह चुराने और छुपाने का ही काम किया है। आज सत्ता उस डरे हुए कबूतर की तरह हो गई है जो बिल्ली के सामने आने पर अपनी आंखें बंद कर बचने की नाकाम और बेवकूफी भरी कोशिश करता है। समस्याएं और सत्य सामने खड़ा है सत्ता सब कुछ जानते हुए भी रोटी को चोची कहकर लड़कपन और बचकाना व्यवहार कर रही है। आज देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है उनके पीछे सत्ता की नाकामी और नालायकी ही छिपी है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक जहां-तहां समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। सत्ता समस्याओं का सामना करने की बजाए समय गुजारने या लटकाने की कार्रवाई कर रही है। आजादी के वक्त पनपी कश्मीर की समस्या हो या फिर बाबरी मस्जिद का विवाद अगर सत्ता सही तरह से अपनी भूमिका निभाती तो आज ये समस्याएं कब की हल हो चुकी होती। लेकिन वोट बैंक की राजनीति में लिप्त राजनीतिक दल कभी नहीं चाहते कि देश में अमन- शान्ति और भाईचारे का वातावरण तैयार हो, भिन्न-भिन्न जाति और संप्रदाय के लोग एकजुट होकर बैठे। सत्ता को यही डर सताता है कि अगर विभिन्न कौम, जाति और संप्रदाय के लोग इकटठे होंगे तो उनके काले चेहरे और कारनामे बेनकाब हो जाएंगे। क्योंकि आज सत्ता और राजनीतिक दल एक-दूसरे के प्रति बुरी बातें फैलाकर ही वोट बोटरने से लेकर राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम करते हैं। ऐसे में हर राजनीतिक दल ने जात-बिरादरी में आम आदमी को बांटकर अपना-अपना वोट बैंक बना रखा है और अपने वोट बैंक को बचाने और अपने पक्ष में रखने के लिए वो किसी भी हद तक गिरकर देश के साथ धोखा, फरेब, षडयंत्र, बेईमानी और घटिया काम करने से गुरेज नहीं करते हैं। कश्मीर की समस्या विषुद्व रूप से राजनीति की पैदाइश है आजादी से लेकर आजतक सियासतदां सब कुछ जानकर भी कश्मीर पर सियासत ही कर रहे हैं। ये सच्चाई है कि बिना राजनीतिक इच्छाशक्ति के जनहित और देशहित से जुड़ी समस्याओं का समाधान संभव नहीं है हमारे तथाकथित ओछी मानसिकता और स्वार्थी नेता धरती के स्वर्ग कश्मीर को नरक बनाए हुए हैं। लाखों कश्मीरी पंडित घाटी से अबतक पलायन कर चुके हैं और जो लोग कश्मीर में बचे भी हुए हैं वो प्रतिदिन तिल-तिल कर मर रहे हैं, सत्ता कोई भी कार्यवाही ऐसी नहीं करना चाहती है जिससे उसकी छवि को धक्का लगे या फिर वोट बैंक को नुकसान हो। सत्ता की इसी घटिया प्रवृत्ति के कारण समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं दिल्ली में पंचसितारा होटलों के एअर कंडीशन कमरों में बैठकर राजनीति करने वाले नेताओं को क्या मालूम कि देश का आम आदमी किन हालातों में जीवन बसर कर रहा है।
कश्मीर की भांति पूर्वोत्तर राज्यों में सुलगता असंतोष, देश के लगभग दर्जन भर राज्यों में पांव पसारते नक्सली, राम जन्म भूमि का मसला, हिंदी और गैर हिंदी राज्यों में गहराती खाई, आरक्षण के प्रति बढती नाराजगी आदि वो मसले हैं जो आजादी के साथ हमें तोहफे में मिले हैं। क्या सत्ता को नक्सली आंदोलनों के पीछे छिपी सच्चाई का पता नहीं है, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी सरकार फौरी कार्यवाही करके समस्या से अपना पिंड छुड़ाना चाहती है। आज से लगभग चार दशक पूर्व नक्सली आंदोलन का जन्म कैसे और किन परिस्थितियों में हुआ सत्ता को सब मालूम है। जब गरीबों, शोषितो , किसानों और आदिवासियों ने अपने हक और हकूक की मांग की और मांगे पूरी न होने पर शोषित वर्ग ने जब हथियार का सहारा लिया तो सत्ता ने उसे नक्सली का तगमा पहना दिया। आखिरकर सत्ता और सरकारी मशीनरी ने ये जानने समझने की कोशिश क्यों नहीं कि जनता की मांग क्या है, विकास की लहर उन क्षेत्रों तक क्यों नहीं पहुंची है? हालातों का सही विष्लेषण किया जाए तो सही मायनों में सत्ता ने ही ऐसे हालात बनाए कि देश के आम आदमी और दुनिया से अनजान, अनपढ़ आदिवासियों को अपनी जायज मांगे मनवाने के लिए हथियार का सहारा लेना पड़ा। दरअसल सत्ता को पल-पल की जानकारी रहती है लेकिन वोट बैंक को लेकर अति सजग सत्ता कदापि ये नहीं चाहती है कि उसका वोट बैंक उससे दूर हो। ऐसे में नाराजगी से बचने के लिए वो जब तक पानी सिर तक नहीं पहुंच जाता फौरी कार्यवाही और बयानबाजी कर काम चलाने की कोशिश करती है और जब समस्या अति गंभीर रूप धारण कर लेती है तो अपनी नाकामियों का ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़कर राजनीतिक रोटियां सेंकने में मशगूल हो जाती है।
अयोध्या का मसला मंदिर और मस्जिद के बीच न फंसकर दो संप्रदायों के आन-बान और शान की लड़ाई बन चुका है। उच्च न्यायालय के समझभरे निर्णय ने देश को कत्ले आम से बचा लिया वरना सत्ता का बस चलता तो हालात बद से बदतर हो सकते थे। असल में सत्ता में बैठे और सत्ता से बाहर बैठे खद्दरदारी ये नहीं चाहते हैं कि अयोध्या का मसला कभी हल हो। अगर अयोध्या में मंदिर या फिर मस्जिद बन जाएगी तो हिन्दु और मुसलमानों के नाम पर वोट बटोरने वाले दलों की औकात दो कौड़ी की हो जाएगी और न जाने कितने छुटभए नेताओं की तो दुकानों पर ताला लग जाएगा। सत्ता में चालाकी कूट-कूट कर भरी हुई है, जब तक अपने स्वार्थ हल होते रहे सत्ता पंजाब में आंतकियों का परोक्ष रूप से साथ देती रही लेकिन जब हालात बिगड़ने लगे तो सत्ता ने आंखे तरेर ली और आंतकियों का समूल विनाश कर डाला। आखिरकर क्या देश की जनता ये नहीं जानती है कि भिण्डरेवाला को किसने पैदा किया था। लेकिन सत्ता की अपार और असीमित ताकत के आगे देश के आम आदमी की औकात ही क्या है कि वो सत्ता के खिलाफ मुंह खोल सके।
देश में जो भी घटनाएं, कांड या घोटाले हुए हैं उनकी सच्चाई सत्ता को बखूबी मालूम है लेकिन सत्ता अजगर की भांति सो रही है। लोकपाल बिल को लेकर मची घमासान और काला धन देश में वापिस लाने की मुहिम की सच्चाई से भी सत्ता मुंह चुराने का काम कर रही है। भारी जन दबाव के चलते लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग कमेटी में सिविल सोसाइटी के नुमांइदों को सरकार ने बेमन शामिल तो कर लिया लेकिन जो हरकतें सत्ता कर रही है उससे बखूबी साबित होता है कि सरकार जन और देश हित से जुड़े मसलों के प्रति कितनी गंभीर है। भोपाल गैस काण्ड, चैरासी के सिख दंगे, गोधरा कांड, सिख आंतकवाद, पूर्वोत्तर का अलगावाद, नक्सलवाद और सैंकड़ों घोटालों और घपलों की सच्चाईया सत्ता को मालूम है लेकिन सत्ता मुखौटा लगाकर देश की जनता के साथ छल कर रही है। अभी हाल ही में उजागर हुए 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले, काॅमनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्ष हाउसिंग घोटाला और अनाज घोटाले के पीछे की सच्चाई से सत्ता अनजान नहीं है। लेकिन राजनीतिक गुणा-भाग देखकर काम करने वाली सत्ता सच्चाई को हमेशा दबाने और छुपाने में ज्यादा दिलचस्पी लेती है। सत्ता के इस चरित्र से अपराधियों, गुण्डों, षरारती तत्वों, भ्रष्टाचारियों के हौंसले बुलंद होते हैं और समस्याएं जस की तस बनी रहती है। देश के आम आदमी का जो हाल है वो किसी से छिपा नहीं है। देश में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अषिक्षा और अत्याचारों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। किसान, मजदूर, और स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराध ये बताते हैं कि सत्ता कानों मंे तेल डाले बैठी है। इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता है कि अगर सत्ता चाहे तो बड़ी से बड़ी समस्या का हल किया जा सकता है लेकिन जब सत्ता वोट बैंक की तुच्छ और घटिया राजनीति में मस्त हो तो देश व आम आदमी का भला होने वाला नहीं हैै।
ऐसा नहीं है कि कोई एक अकेली राजनीतिक पार्टी या सत्ताधारी दल का चरित्र ऐसा है, सच्चाई यह है कि यहां हमाम में सभी नंगे हैं। केन्द्र और प्रदेश में जिस भी दल की सरकार होती है वो झूठ, बेईमानी, मक्कारी और छल का सहारा लेकर सत्ता का सुख भोगना चाहता है। विपक्षी दल सरकार की कार्रवाई और कारनामों को केवल इसलिए उछालते हैं ताकि उन्हें चुनावों में लाभ मिल सके। विपक्षी दलों की दिलचस्पी समस्या को हल करने या सत्य को उजागर करने की बजाए सत्ताधारी दल को बदनाम करने की होती है। सरकार और विपक्ष की खींच-तान, उठापटक और बयानबाजी में असल मुद्दा कहीं दब कर रह जाता है। अन्ना और रामदेव को जनहित के मुद्दों पर मिले भारी जनसमर्थन ने सत्ता की आंखें खोल कर रख दी है और सत्य यह है कि देश की जनता को सत्ता की सच्चाई का ज्ञान हो रहा है..........और जब जनता जाग जाती तो महान क्रांतियों की भूमिका लिखी जाती है। समय रहते सत्ता को सत्य का सामना करना होगा और देष और जन कल्याण की ओर ध्यान लगाना होगा तभी देश की सूरत और सीरत बदलेगी।


