सपा-बसपा गठबंधन SP-BSP alliance को दिल से भाजपा समर्थित मीडिया BJP supported media अगर यूपी में अधिसंख्य सीटों पर चुनाव पूर्व ही विजेता घोषित कर रही है, तो उसकी तह में जाने के लिये सपा नेतृत्व SP leadership पर कनफुसिया राजनीति को समझना होगा।

संदीप वर्मा

विधान सभा चुनाव Assembly elections में अखिलेश के नेतृत्व में कांग्रेस का गठबंधन Congress coalition, कांग्रेस का भविष्य (Congress's future) की राजनीति (Politics) को नजर रखने के बाद किया गया गठबंधन था। कांग्रेस पूरे मूड में थी कि विधानसभा चुनाव में सपा- बसपा और कांग्रेस तीनों ही दल मिलकर चुनाव लड़ें. तीनो दलों के गठबंधन से किस दल को आपत्ति थी, अब यह कोई रहस्य नहीं है। बसपा अपने अकेले दम पर ही चुनाव लड़कर सरकार बनाने लायक सीटें जीतने की उम्मीद कर रही थी। उनकी आशा थी कि सीटों की कमी होने पर भाजपा से समर्थन मिल ही जाएगा। कांग्रेस तो खैर समर्थन लायक सीटें लाने की हैसियत में कोई गिन ही नहीं रहा था। बाद में चुनाव परिणाम ने बसपा की प्रदेश में सरकार बनाने लायक हैसियत ही जीरो कर दी थी। यह लगभग तय हो गया था कि अब बिना किसी विशेष सहयोग के बसपा यूपी की राजनीतिक परिदृश्य में ख़त्म होने की बढ़ चुकी है।

सपा नेतृत्व अपनी हार के नतीजों को समझकर विश्लेषण करके सुधार की बजाय बौखलाहट में ज्यादा आ गया। मीडिया, जो अंदरखाने में संघ को समर्थन करता है, कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से हराने के लिए अपनी कुटिलता में लग गया। मीडिया से फीडबैक लेने के शौकीन सपा नेतृत्व का इस जाल में फंसना सामान्य सी बात थी। यहीं पर सपा नेतृत्व राजनीतिक तौर पर किसी नए खिलाड़ी की तरह फंस गया। कैसे ? यह अभी आगे समझ में आ जाएगा।

लोकसभा चुनाव में जीरो सीट और विधान सभा चुनाव में बीस का आंकड़ा भी ना छू पाने से प्रदेश में बसपा की राजनीति खत्म होने की सूचना दे चुकी थी। सपा नेतृत्व ने इस मौके का उपयोग समझने में संघी सलाहकारों की मदद ली। संघी सलाहकारों के लिए बसपा-सपा दोनों ही दलों का प्रदेश की राजनीति में मजबूती से डटे रहना जरूरी था। सपा नेतृत्व को उन्होंने उनकी हार का जिम्मेदार कांग्रेस का होना समझा दिया। कांग्रेस के पास वोट बैंक ना होना इसका सबूत बताया। (कांग्रेस के सम्बन्ध में बाद में )

चुनावी राजनीति में लगातार दो बड़ी हार के बाद बसपा अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए किसी मजबूत ऑक्सीजन की तलाश में थी।

इस बार संघी सलाहकारों की सलाह मानते हुए सपा नेतृत्व ने अपने अकेले की कीमत पर बसपा को वह ऑक्सीजन थमा दी है। इस गठबंधन का अंतिम सत्य यह है कि प्रदेश की राजनीति में बसपा को तगड़ी ऑक्सीजन मिल गयी है। कम से कम अगले बीस वर्षों के लिए बसपा प्रदेश की राजनीति में सपा के लिए गले की हड्डी बन चुकी है। तारीफ़ की बात यह है कि इस गठबंधन में पहले दिन से ही बसपा ड्राईविंग सीट पर है। थोड़ी देर के लिए हम बहन जी की पीएम पद पर ताजपोशी की कल्पना कर भी लें, तो सपा को इसमें फायदे की बजाए राजनीतिक नुकसान ही होने जा रहा है।

सपा नेतृत्व ने अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन को चालू रखने का प्रयास किया होता, तो प्रदेश की राजनीति में इसका फायदा कहीं अधिक होने वाला था। पहली बात बसपा गठबंधन में जब शामिल होती तो कांग्रेस, सपा के बाद उसकी हैसियत तीसरे नंबर पर होती। प्रदेश में सपा की मजबूती का जो मैसेज जाता उसका फायदा उन्हें आने वाले विधानसभा चुनाव में मिलता।

कांग्रेस के साथ गठबंधन जारी रखने की कीमत उन्हें सिर्फ अपने संघी सलाहकारों की नाराजगी या असहमति से ही उठाना पड़ता। मगर उन सम्बंधों में वहां भी वह ड्राईविंग सीट पर होते।

.......आज सिर्फ इतना ही . ..

सपा-बसपा गठबंधन को विजेता घोषित करना मीडिया का षड्यंत्र है।

(संदीप वर्मा, लेखक शिक्षक व राजनीतिक विश्लेषक हैं। पिछड़ों की राजनीति के विशेषज्ञ हैं।)

क्या यह ख़बर/ लेख आपको पसंद आया ? कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट भी करें और शेयर भी करें ताकि ज्यादा लोगों तक बात पहुंचे

Describing SP-BSP alliance as a winner is a conspiracy of the media, know how