सबसे अधिक नुकसान में वे सपा विधायक रहेंगे, जो समाजवादी “औरंगज़ेब” के साथ खड़े हैं
सबसे अधिक नुकसान में वे सपा विधायक रहेंगे, जो समाजवादी “औरंगज़ेब” के साथ खड़े हैं
सबसे अधिक नुकसान में वे सपा विधायक रहेंगे, जो समाजवादी “औरंगज़ेब” के साथ खड़े हैं
लखनऊ, 07 जनवरी। समाजवादी पार्टी में चल रही अंतर्कलह थमने का नाम नहीं ले रही है। ताजा घटनाक्रम का विश्लेषण कर रहे हैं संदीप वर्मा
विधान सभा चुनाव में सपा की जीत और अखिलेश के जिद की जीत दो अलग अलग मुद्दे हैं। अखिलेश की जिद से सपा का वर्तमान और भविष्य दोनों ही खतरे में पड़ चुके हैं।
अखिलेश जी जब अपनी जिद की हद तक जाकर नेता जी से उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से बर्खास्त करके स्वयं गद्दी पर बैठते हैं तो दो ही बातें समझ में आती हैं या तो उन्हें अपनी जिद के आगे पार्टी बहुत ही बौनी लगती है या वह किन्ही अदृश्य हाथों की कठपुतली बन चुके हैं।
सपा के कार्यकर्ताओं को समझ लेना चाहिए कि औरंगजेब जैसा मजबूत और सबसे लम्बे समय तक राज करने वाले बादशाह को भी जनता औरंगजेब के शासन की खूबियों की बजाए उन्हें अपने पिता को कैद में डालकर गद्दी पर कब्जा करने वाले बादशाह के रूप में ही याद करती है।
अखिलेश जी की लोकप्रियता का अगर कोई ग्राफ कभी ऊँचा जा भी रहा था तो उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को कब्जाने के बाद उनकी अलोकप्रियता का ग्राफ भी उतनी ही तेजी से बढ़ता जा रहा है। अपने सलाहकारों और चाटुकारों की वजह से उनकी राजा बबुआ की इमेज धुलकर एक नया चेहरा दिखने लगा है।
अगर नेता जी पर अमर सिंह जी के ईशारों पर चलने का आरोप है तो अखिलेश जी पर भी कुछ लोगों के हाथ की कठपुतली बन जाने के सबूत मिल रहे हैं।
सपा के लिए सबसे खतरनाक और भविष्य में सबसे अधिक नुक्सान में वह विधायक सांसद रहने वाले हैं जो मुलायम सिंह जी की कृपा या सहयोग से सत्ता तक पहुचे हैं और आज अखिलेश के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।
अखिलेश जी के पास पूरी सत्ता आते ही सबसे पहले वह अपनी कोटरी के लोगों के लिए जगह बनायेंगे। कोटरी साईज बढ़ने की कीमत वही सपाई चुकायेंगे जो आज सत्ता की वजह से अपना नेता बदलने में देर नहीं लगा रहे हैं।
यही नहीं अगर आजम जैसे तथाकथित मुलायम सिंह जी के दिल में रहने वाले पुराने साथी भी अगर ताल ठोंक कर नेता जी का समर्थन नहीं कर रहे तो माना जाना चाहिए मुलायम सिंह जी ने इतने वर्षो में ना तो समाजवादी बनाये और ना ही अपने समर्थक तैयार किये और उनकी राजनीति ने सिर्फ सत्ता-लोलुप नेता ही पार्टी को दिए हैं।
यह उगता हुआ सूरज नहीं सत्ता का लालीपाप है।


