सस्ती दलील भागवत की, संघ हिंदुत्व के साथ खिलवाड़ कर रहा है
सस्ती दलील भागवत की, संघ हिंदुत्व के साथ खिलवाड़ कर रहा है
किसके पुरखे क्या थे से किसी के धर्म और राष्ट्रीयता के प्रश्नों का लेना देना क्या है ! अक्सर संघियों को यह कहते सुना जाता है कि भारत में सबके पुरखे हिन्दू थे, इनके हिन्दू थे, उनके हिन्दू थे। वे कहते हैं सब भारतीय हिन्दू हैं। फिर कहते हैं, वे हिन्दू नहीं उनके पुरखे हिन्दू थे। वे इतिहास और वर्तमान को हिन्दू मुसलमान के भेद से ही देख पाते हैं, यह कहने की बात ही नहीं।
पुरखे हिन्दू थे कहकर वे किस किस्म की आत्मसंतुष्टि पाते हैं ?
दुनिया में नए नए धार्मिक विचार समय समय पर आये हैं। लोग प्रवर्तकों के जब अनुयायी हुए तो निश्चित ही तत्कालीन धार्मिक पहचान को छोड़ा होगा। उस पहचान से किसी की अगली पीढ़ी को नयी पहचान के लिए सिर्फ चिढ़ाया जा सकता है, किन्तु सच में तो पूर्व पहचान की पराजय का एलान ही है यह कहना।
ईसा से पहले ईसाई क्या थे, मोहम्मद से पहले मुसलमान क्या थे, किस देश में थे तो क्या थे, आदि बातें छोड़े हुए धर्म वालों की कुंठा व्यक्त करती हैं, उनकी खीझ भी। संघ हिंदुत्व के साथ यही खिलवाड़ कर रहा है।
सस्ती दलील दी है संघ प्रमुख ने।
इंदौर में मोहन भागवत ने कहा कि जिस तरह जर्मनों का जर्मनी, ब्रिटिश का ब्रिटेन और अमेरिकियों का अमेरिका है उसी तरह हिंदुस्तान हिंदुओं का है। हालांकि पहली बार उन्होंने कहा कि यह 'दूसरों' का भी है। 'दूसरों' शब्द के प्रयोग के साथ वे परायेपन को हवा देने से बाज नहीं आये।
संघ नख से शिखर तक, अपने जन्म से अब तक धर्म और राष्ट्रीयता पर भ्रमित है। जर्मन, ब्रिटिश या अमेरिकन कोई धर्म नहीं हैं, जबकि हिन्दू धर्म है यह मोटी बात ऐसा नहीं कि संघ प्रमुख जानते न हों, इसीलिए उन्होंने 'दूसरों' शब्द का प्रयोग किया। जिन देशों के हवाले से उन्होंने राष्ट्रीयता को परिभाषित किया उनके आधार पर कहा जा सकता था कि भारत भारतीयों का है क्योंकि हिन्दू तो नेपाल सहित दूसरे देशों में भी हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं कहा। विधितः देश का नाम भारत या इण्डिया है, हिंदुस्तान नहीं। शायद उन्हें यह भी समझ नहीं है।


