सांप्रदायिक ताकतों द्वारा लेखकीय अभिव्यक्ति को बाधित करने की गुण्डागर्दी
सांप्रदायिक ताकतों द्वारा लेखकीय अभिव्यक्ति को बाधित करने की गुण्डागर्दी
विश्व पुस्तक मेले में इस बार कट्टर सांप्रदायिक ताकतों द्वारा लेखकीय अभिव्यक्ति को बाधित करने के अनेक प्रयास किए गए। चाहे वह 15 को पेंग्विन प्रकाशक के स्टाल के बाहर चल रहे रीडिंग सेशन विरोध हो या सुभाष गाताडे को पढने से रोकने की घटना। इसका ताजा उदाहरण 21 फरवरी 2014 को वाणी प्रकाशन द्वारा आयोजित साहित्योत्सव में वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय और कवि-संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी के कार्यक्रम से जुडी घटना के रूप में सामने आया। कट्टर धर्मान्धों ने भावनाओं को आहत करने का बेबुनियाद आरोप लगाते हुए आयोजन में व्यवधान उपस्थित करने का प्रयास किया। एक लोकतांत्रिक समाज में इस तरह के प्रयास मानवीय सभ्यता को सिर्फ आहत ही नहीं करते हैं, अपितु सामाजिक विकास की प्रक्रिया में भी अवरोध खड़ा करते हैं।
हम लेखक और संस्कृतिकर्मी इस तरह के प्रयास की भर्त्सना करते हैं और व्यवस्था द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी को सुनिश्चित किये जाने की माँग करते हैं।
मृदुला गर्ग,
सुरेश सलिल,
महेश कटारे,
रेखा अवस्थी,
एस. आर. हरनोट,
देवेन्द्र चौबे,
बली सिंह,
पवन करण,
मृत्युंजय सिंह,
पुनीत भार्गव,
अख़लाक़ अहमद आहन,
मनीन्द्र नाथ ठाकुर,
मदन कश्यप,
राज कुमार राकेश,
जीतेन्द्र श्रीवास्तव,
प्रभात रंजन,
गणपत तेली,
अजय नावरिया ,
देश निर्मोही,
भंवर लाल मीणा
अशोक कुमार पाण्डेय


