सारे माध्यम अब केसरिया हैं और कारपोरेट भी
सारे माध्यम अब केसरिया हैं और कारपोरेट भी
मिथकों की माया निराली है। मिथक की व्याख्या कोई भी कुछ भी बता सकता है। हमारे धर्म अधर्म कर्म अकर्म उन मिथकों के दायरे में सीमाबद्ध है और देश की आम जनता इन्हीं मिथकों के तिलिस्म में कैद हैं और हम हकीकत का समाना कर नहीं रहे हैं।
इस देश में झारखंड नहीं होता और न कोयला खानें होतीं तो मेरे पत्रकार बनने का कोई इरादा कभी न था। झारखंड और भारत की औद्योगिक उत्पादन प्रणाली को समझने के लिए सीधे जेएनयू से मैं अपरिचित मदन कश्यप के भरोसे अपने मित्र उर्मिलेश के कहने पर कुछ दिन झारखंड में बिताने के लिए कड़कती हुई उमस के मध्य तूफान एक्सप्रेस से मुगलसराय उतरकर पैसेंजर गाड़ी से धनबाद पहुंच गया था और कवि मदन कश्यप ने मुझे गुरुजी दिवंगत ब्रह्मदेव सिंह शर्मा के दरबार में पेश कर दिया था और गुरुजी ने ही हाथ पकड़कर मुझे पत्रकारिता का अ आ क ख ग सिखाया।
तब पत्रकारिता में अपने होने का सबूत देने में इतना उलझ गया कोयला खदानों में कि फिर भद्रसमाज में होने का अहसास न हुआ और न आगे पढ़ाई जारी रखने की कभी इच्छा हुई।
1980 से हम कोयला को काला हीरा मानते रहे हैं और अचानक हमारे जादूगर प्रधानमंत्री ने राउरकेला में पहुंचकर ऐलान कर दिया कि उनने कोयला को हीरा बना दिया है। प्रधानमंत्री बनने के बाद बुधवार को पहली बार ओडीशा पहुंचे नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं हिसाब देने आया हूं।
प्रधानमंत्री ने कोयला घोटाले का जिक्र करते हुए कहा कि हमने कोयले को हीरा बना दिया। 204 कोयला खदानों से देश को एक रुपया भी नहीं मिला था। अब केवल 20 खदानों के आवंटन से ही 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक मिल चुके हैं।
इस पर फुरसत मिली तो फिर चर्चा करेंगे।
सविता बाबू भूखी प्यासी अमृतसर एक्सप्रेस से पहली अप्रैल की रात साढ़े बारह बजे नजीबाबाद जंक्शन सही सलामत पहुंच गयीं और वहां से मायके की गाड़ी में मायके। उनका फोन बंद है।
इसी बीच विवेक देबराय पैनल ने अपनी सिफारिश में कहा है कि निजी कंपनियों को यात्री गाड़ी और मालगाड़ी चलाने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके लिए निजी कंपनियों को इंजन, वैगन, कोच और लोकमोटिव निर्माण का काम सौंप देना चाहिए। देबराय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे को कल्यानार्थ कामकाजों और आरपीएू प्रबंधन से दूर रहना चाहिए। रेलवे अभी हॉस्पीटल और स्कूलों का संचालन कर रही है. जिससे रेलवे को अलग रहने की बात कही गयी है।
कमिटी ने सभी मौजूदा प्रोडक्शन यूनिटों के स्थान पर रेलवे मैनुफैक्चरिंग कंपनी बनाने का सुझाव भी दिया है। इसके अलावा इस कमिटी में रेलवे स्टेशनों की जिम्मेदारी अलग कंपनी के हाथों में देने की भी बात कही गयी है। रेलवे बोर्ड में टिकट दलालों पर अंकुश लगाने की भी बातकही गयी है। इसके लिए पीआरएस सिस्टम में जरूरी फेरबदल किया जा रहा है।
इसी बीच न्यूनतम पांच रुपये किराये के देश में प्लेटफार्म टिकट दस रुपये का हो गया है। सर्विस टैक्स बढ़ने से रेल किराया बढ़ गया है और रिलायंस के कंधे पर सवार इंफार्मेशन टेक्नालाजी मार्फत इजरायली पूंजी की महक भारत में तेज हो गयी है।
इसी बीच उत्तराखंड और समूचे हिमालय क्षेत्र की लाइफलाइन सेवा डेढ़ सौ साल से भी चली आ रही पुरानी सेवा मनी ऑर्डर बंद हो रही है।
पोस्ट ऑफिस ने अपनी सुविधाओं को तेज बनाने के लिए मनी आर्डर की जगह ई मनी आर्डर सेना शुरू की है, आज से ये लागू हो गया है, पिछले लंबे समय से मनी आर्डर सेवा चल रही थी, जिन्होंने भी इसका इस्तेमाल किया होगा उन्हें याद होगा कि कैसे दो चार पंक्तियों के संदेश के साथ भेजे गए पैसे २-३ या ज्यादा दिनों में अपनी मंजिल तक पहुंचते थे। १०० साल पुरानी मैनुएल मनिऑर्डर सेवा आज से इतिहास बन जाएगी।
इसी बीच लंबे इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने नई विदेश व्यापार नीति (एफटीपी 2015-20) का ऐलान किया है। अगले पांच साल के लिए जारी इस नीति के तहत निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 'मेक इन इंडिया' और 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' पर जोर दिया गया है। निर्यात से जुड़ी कई योजनाओं की जगह सर्विस एक्सपोर्ट इंडिया स्कीम (SEIS) और मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट इंडिया स्कीम (MEIS) नाम की दो नई स्कीम शुरू की गई हैं। पुरानी स्कीमों के फायदों को इन्हीं में समाहित कर दिया गया है। नई नीति के जरिए सरकार 2020 तक वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात को 900 अरब डॉलर तक पहुंचाना चाहती है।
कल मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय से शिकायत की थी कि उत्तराखंड जाने वाली या उत्तराखंड से गुजरने वाली ट्रेनों में खाने पीने का कोई बंदोबस्त नहीं है।
अमृतसर एक्सप्रेस तो स्वर्णमंदिर के दरवाजे तक पहुंचता है तो पर्यटन और धार्मिक पर्यटन के लिए अति महत्वपूर्ण मंजिल तक पहुंचने की कवायद जब नरक यंत्रणा है तो बाकी देश में गैर मेट्रो ठिकानों पर जाने वाली ट्रेनों की कुछ तो सुधि लें निजीकरण के मार्फत यात्री सहूलियतें और सुरक्षा का रेल बजट पीपीपी पेश करने वाली सरकार।
देश डिजिटल है और तुरंत पीएमओ रिपोटिंग से आनलाइन कंप्लेन का फार्म भेज दिया गया, जिसे मैंने भर दिया और रेलवे शिकायत विभाग ने उसे पाने की सूचना भी दे दी है। नागरिकों को ऐसी पावती से सुशासन का आभास हो जाता है लेकिन हालात कितने बदलते हैं, देखना अभी बाकी है।
बहरहाल मैं मजे में हूं। पड़ोसियों की महिमा है कि मुझे अभी रसोई में जाना नहीं पड़ रहा है। चाय पानी से लेकर खाना पीना और दफ्तर का टिफिन भी वे बारी बारी ठीक से पहुंचा रहे है। अभी अभी खाना खा लेने का दसियों बरा तकादा हो चुका है।
सविताबाबू लेकिन मायके में ज्यादा दिनों तक ठहरने वाली नहीं हैं और पखवाड़े भर में आ धमकेंगी। इस बीच देर रात और सुबह सुबह कुछ पुरानी फिल्में देख सकता हूं।
हमें कभी यह साबित करने का मौका नहीं मिला और न मिलने वाला है कि अखबार कैसे चलाया जा सकता है।
जिस मसीहा के महिमामंडन के लिए कहा जा रहा है कि आज के मुकाबले हिंदुत्व की चुनौती कभी और कहीं ज्यादा थीं, उनकी विद्वता और हैसियत के मुकाबले मेरी दो कौड़ी की औकात नहीं है।
हमारे हिसाब से हिंदुत्व की सुनामी तो राममंदिर आंदोलन की शुरुआत कायदे से होने से पहले, राजीव गांधी के राममंदिर के ताला तुड़वाने से बहुत पहले आपरेशन ब्लू स्टार और सिखों के नरसंहार के जरिये पैदा हो गयी थी, जब समूचा सत्ता वर्ग और सारा मीडिया सिखों के सफाये पर तुला हिंदुत्व का आवाहन कर रहा था।
उन दिनों के अखबारों में तमाम मसीहावृंद के सुभाषित पढ़ लें तो जाहिर हो जायेगा कि वे हिंदुत्व का कैसे मुकाबला कर रहे थे।
हमारे आदरणीय मित्र आनंद स्वरूप वर्मा ने अस्सी के दशक के मीडिया के उस युंगातकारी भूमिका पर सिलसिलेवार लिखा है।
हमने दिल्ली में उनसे मिलकर और अभी हाल में फोन पर उनसे अनुरोध किया है कि भारतीय मीडिया के कायाकल्प के उस दशक के सच को किताब के रूप में जरूर सामने लाये थो तमाम दावेदारों के दावों का निपटारा हो जाये। हमने वे तमाम आलेख हस्तक्षेप के लिए आनंद जी से मांगे हैं। मिलते ही हम साझा करेंगे।
हमारी समझ से ग्लोबल हिंदुत्व के मुक्तबाजारी हिंदू साम्राज्यवाद का यह निरंकुश दौर पूंजी वर्चस्व समय में अमेरिका और इजराइल के दोहरे उपनिवेश भारत में भारतीय कृषि, भारतीय कारोबार और भारतीय उद्योग और समूची अर्थव्यवस्था के साथ सारी कायनात को मिटाने वाला अप्रतिरोध्य मनुस्मृति शासन है।
इसीलिए बहुजनों के हिंदुत्व और शत प्रतिशत हिंदुत्व के एजेंडे को हम बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार तो क्या सिखों के नरसंहार से भी ज्यादा खतरनाक मानते हैं।
सारे माध्यम अब केसरिया हैं और कारपोरेट भी।
सारी विधायें अब कारपोरेट हैं और केसरिया भी और हर जुबान पर देशी विदेशी पूंजी का ताला है और तमाम उजले चेहरे करोड़ों के रोजाना भाव बिक रहे हैं।
हमारे हिसाब से इससे पहले सारे विधर्मियों के सफाया का इतना खुल्ला एजेंडा डंके की चोट पर लागू करने वाला हिंदू साम्राज्यवाद का कोई राजकाज नहीं रहा है जो केसरिया है और कारपोरेट भी।
जो वाशिंगटन और तेलअबीब के सहयोग से आम भारतीय जनगण का पूरा सफाया करने पर तुला है।
भारतीय इतिहास में इससे बड़ा कोई दुस्समय आया है कि नहीं, हम नहीं जानते।
हमारी औकात चाहे जो हो, हमारी हैसियत चाहे जो हो, हम इस दुस्समय को यूं गुजरते हुए कयामत बरपाने से पहले कम से कम दम भर चीखेंगे जरूर आखिरी सांस तक।
अपने अपने हित में कीर्तनिया संप्रदाय भले ही इस सामाजिक यथार्थ के दस दिगंत को झुठलाने का प्रयास करें, हमारा कोई दांव चूंकि कहीं नहीं है और हम आदतन अंकुर के उस बच्चे की तरह खिड़कियों पर पत्थर उठाकर मारनेवाले हैं, चाहे अंजाम कुछ भी हो।
पलाश विश्वास


