सियासी भंवर में छटपटा रहा उत्तर प्रदेश का आदिवासी समुदाय
सियासी भंवर में छटपटा रहा उत्तर प्रदेश का आदिवासी समुदाय
शिव दास
कांग्रस के महासचिव और नेहरू-गांधी परिवार के युवा राजू राहुल गांधी ने 21 जनवरी, 2012 को उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र दुधधी में पहली बार कदम रखा। अंग्रेजों के जमाने में क्राउन स्टेट के नाम से नवाजे गए इस आदिवासी बहुल इलाके की एक सभा से उन्होंने एक साथ कई निशाने साधने की कोशिश की, लेकिन उनकी ये कोशिश राजनीतिक भंवर में फंस गई। ऐसा दिखाई नहीं देता है। इसके पीछे कई वजहें हैं, जिनमें कई कांग्रस की गलत नीतियों के ही परिणाम हैं। कांग्रस के युवा राहुल गांधी ने पहली बार इस इलाके में कदम रखा है, जबकि वे उत्तर प्रदेश में सैकड़ों बार आ चुके हैं। दिल्ली में खुद को आदिवासियों का सिपाही बताने वाले राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े और आदिवासी बहुल इलाके में उस समय भी कदम नहीं रखे थे जब यहां के बच्चों के कुपोषण और भूखमारी की वजह से दम तोड़ रहे थे। और ये खबर राष्ट्रीय मीडिया से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बन रही थी। इतना ही नहीं यहां के बच्चों का भविष्य बर्बाद करने वाले फ्लोरााइडयुक्त पानी की आवाज उठाने वाले राहुल गांधी ने के बाद भी उन्होंने यहां का रुख नहीं किया, जबकि यहां के दो दर्जन से अधिक गांवों में विकलांग बच्चों की कतार लगी हुई है। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता पं. जवाहर लाल नेहरू ने आदिवासियों की इस धरती पर उद्यमिकरण की नींव रखी थी और यहां की जननता को विकास के सब्जबाग दिखाए थे। 12 जुलाई, 1954 को चौर्क सीमेन्ट फैक्ट्री का उद्घाटन करते हुए उन्होंने इस इलाके को भारत का स्विट्जरलैंड बनाने की बात कही थी। पंडित नेहरू ने कहा था, "...यह स्थान भारत का स्विट्जरलैंड बनेगा।" इसके बाद यहां ऐशिया का सबसे बड़ा गोविंद बल्लभ पंत जलाशय भी बना, जिसे लोग रिहंद बांध के नाम से जानते हैं। इस जलाशय के निर्माण से दुध्दी क्राउन स्टेट समेत कैमरून क्षेत्र के करीब दो लाख आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ा था। इन आदिवासियों के पुनर्वास की व्यवस्था आज तक नहीं हो पाई है। वे आज भी अपने हक के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। केंडर और राज्य की कांग्रेस सरकारों ने यहां के आदिवासियों और किसानों से ये वादा किया था कि रिहंद जलाशय के निर्माण के बाद उनकी पटरीली जमीनों की हल्की की प्यास बुझाने के लिए पानी मिलेगा, लेकिन उससे बिजली पैदावार की जाने लगी जो देश की राजधानी को रोशन तो कर रही है लेकिन यहां के विस्थापितों और किसानों के घरों का अंधेरा नहीं मिटा रही। इतना ही नहीं, इस जलाशय का प्रदूषित पानी यहां के आदिवासियों और दलितों के घरों के लिए धीमा जहरीला बन गया है जो उनके नौनिहालों को जमीनी पर पड़ने रहने के लिए मजबूर कर रहा है। रिहंद जलाशय के निर्माण के अलावा आदिवासी बहुल इस इलाके में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन यानी NTPC की कई इकाइयां भी स्थापित हुई हैं। फिर निजीक कंपनियों ने आदिवासियों की धरहर को नेस्तनाबूद करना शुरू कर दिया जिनमें हिंदालको, कनोरिया केमिकल्स, जेपी एसोसिएट्स सहित नामी-गिरामी कंपनियां शामिल हैं। अब हालात ऐसे हैं कि इस इलाके के आदिवासियों का कोई ही ऐसा घर हो जिसमें कुशलता या फ्लोरोसिस से प्रभावित सदस्य न हो। उत्तर प्रदेश का आदिवासी बहुल ये इलाका पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्विजरलैंड तो बन नहीं सका, लेकिन भोपाल जरूर बन गया जिसका अंदेशा आज से बहुत पहले एक कवि ने ये कहकर जताया था कि कल का कालिखाना काल बनेगा, सोनेभद्र एक दिन भोपाल बनेगा।


