सिर्फ आम आदमी परेशां, बाकी सब बहार है!
सिर्फ आम आदमी परेशां, बाकी सब बहार है!
सिर्फ आम आदमी परेशां, बाकी सब बहार है!
सांढ़ संस्कृति शबाब पर यूँ है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इस माह की शुरआत से अभी तक भारतीय पूंजी बाजार में 20,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है। सरकार के सुधार एजेंडा को लेकर उम्मीद के बीच इसमें बढ़ोतरी हुई है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ब्याज दरों में कटौती की वकालत करते हुए उम्मीद जताई कि रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पूंजी की लागत कम करने के कदम जरूर उठाएगा। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए कोयला ब्लाकों के आवंटन और कोयले का अंतिम उपयोग करने वाली विशिष्ट इकाइयों को ब्लाकों की नीलामी करने के पश्चात ही निजी क्षेत्र की कंपनियों को कोयले के वाणिज्यिक खनन की अनुमति देगी।
लोकतंत्र का नजारा यह। कटघरे में फंसी सत्ता बचाने के लिए ममताबनर्जी को बिना नोटिस कालेज स्क्वायर से लेकर धर्मतल्ला तक पूरे कोलकाता महानगर को जाम करने की इजाजत है आडवाणी, जेटली और राजनाथ सिंह से मिलने के बाद भी सीबीआई दबिश रहने की वजह से धर्मनिरपेक्ष केंद्र विरोधी जिहाद के लिए, लेकिन कोलकाता पुलिस ने हमें एक किमी की पदयात्रा मेट्रो चैनल धर्मतल्ला से रेड रोड पर अंबेडकर की प्रतिमा तक करने की इजाजत नहीं दी है क्योंकि हम सत्ता की राजनीति नहीं कर रहे हैं।
इसी राजनीति में हिस्सेदारी के लिए भूमि सुधार के ब्राह्मणवाद विरोधी, स्त्री पक्षधर, पुरोहित कर्मकांड वर्जक मतुआ हरिचांद गुरुचांद ठाकुर के वंशज शरणार्थियों को नागरिकता की मांग लेकर ठाकुर नगर में अनशन बजरिये परिवार के लिए लोकसभा टिकट का फैसला करने लगे हैं। मतुआ संघाधिपति दिवंगत सांसद कपिल कृष्ण ठाकुर को श्रद्धाजंलि देने के बहाने मतुआ वोट बैंक साधने ममता बनर्जी वहां पहुंचीं तो देश भर में बंगाली शरणार्थियों के खिलाफ रंगभेदी देश निकाला अभियान चलाने वाली भाजपा ने उसी इलाके में रैली की है।
राजनीति की पैदल फौज में सीमाबद्ध हो गयी है हमारी नागरिकता और लोकतंत्र की ताकत का अहसास नहीं है हमें।
हम अपने लोगों से, अपने स्वजनों से, अंबेडकर के नाम लाखों संगठन चलाने वाले लोगों से, इस संविधान की वजह से हर स्तर पर आरक्षण कोटा प्रतिनिधित्व का फायदा उठाकर सवर्ण बन जाने वालों से, अंबेडकर को जाने बिना, भारतीय संविधान में नागरिक अधिकारों के बारे में न जानने वाले छात्रों, युवाओं और महिलाओं से 26 नवंबर को पुलिसिया इजाजत के बिना पदयात्रा निकालने की अपील भी नहीं कर रहे हैं।
सिर्फ निवेदन कर रहे हैं कि पर्व त्योहार के तौर पर मुक्त बाजार में संकट में घिरी नागरिकता, स्वतंत्रता, संप्रभुता, खत्म किये जा रहे लोकतंत्र, विपर्यस्त मनुष्य प्रकृति पर्यावरण जलवायु और मौसम के पक्ष में लोकतंत्र का महोत्सव मनायें देशभर में।
लाठी का यह चित्र दंडकारण्य, मणिपुर या कश्मीर का नहीं है, यह नई दिल्ली के पास सत्ताकेंद्रे के पास लोकतंत्र का असली चेहरा है, इसे समझें और इस दमनतंत्र, जनसंहारी आर्थिक सुधारों के खिलाफ लोकतंत्र महोत्सव मनाकर अमन चैन कायम रखते हुए मुंहतोड़ जवाब दें।
यह जरूरी इसलिए है कि अमेरिका के अश्वेत राष्ट्रपति का इस्तेमाल बहुजनों को एनेस्थेसिया देने के लिहाज से आगामी गणतंत्र दिवस पर होना है और इससे पहले नागरिकता को आधार निराधार बनाकर बायोमेट्रिक डिजिटल रोबोटिक बना देने की तैयारी है तो बुल रन यानी सांढ़ों की निरंकुश दौड़ यानी विदेशी पूंजी के सर्वव्यापी वर्चस्व के लिए संसद में सारे कानूनों को बदल देने का बंदोबस्त है, जहां निवास करने वाले अरबपति करोड़पति कारपोरेट फंडिंग के प्रतिनिधि हैं और हमारे वे कुछ भी नहीं लगते।
ओबामा आने से पहले सारे सुधार लागू कर देने की अभूतपूर्व हड़बड़ी में है केसरिया कारपोरेट सरकार क्योंकि उन्हें मालूम है कि नीतिगत विकलांगता और राजनीतिक बाध्यताओं से जनसंहारी सुधार रोकने कामतलब सत्ता से बेदखली है।
जिन बोफोर्स तोपों की वजह से राजीव गांधी हारे और वीपी सिंह बजरिये मंडल कमंडल कुरुक्षेत्र बन गया देश, उसी तोप की गरज सुनायी पड़ रही है दिल्ली के जनपथ पर और अमेरिकी हथियार कंपनियों के पक्ष में तमाम सौदे तय कर रहे हैं नये प्रतिरक्षामंत्री।
रक्षा मंत्रालय से जाते-जाते उनके पूर्ववर्ती, मशहूर कारपोरेट वकील ने विदेशी पूंजी के लिए भारतीय प्रतिरक्षा, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के सारे दरवज्जे खुल्ला छोड़ गये हैं एफडीआई का भंडारा खोलकर। अब खुदरा बाजार की बारी है।
मोदीबाबू एफडीआई कहां करेंगे, कहां नहीं। यह ओबामा महाशय की मर्जी मिजाज के माफिक होना है। जो अफगानिस्तान में सैन्यशक्ति बढ़ाकर, तीसरे तेल युद्ध की शुरुआत करके और इजराइल के मार्फत यरूशलम के अल अक्श मस्जिद में ताला लगाने का करिश्मा कर आये हैं। बाबरी विध्वंस प्लस अल अक्श तालाबंदी का नजारा पेश होना है।
मोदी बाबू और उनके पार्टनर अमित शाह लेकिन इस बीच बागी सूबों और रागी क्षत्रपों को कब्जाने का खेल पूरी दक्षता के साथ खेल रहे हैं ताकि संसद में तमाम जनविरोधी कानून पास करके अमेरिकी पूंजी और तमाम विदेशी निवेशकों के हित साध दें।
बाराक ओबामा की प्रजा जो खुद को मानने से इंकार करें, ऐसे हर भारतीय नागरिक से अपेक्षा है कि 26 जनवरी को भारतीय गणतंत्र के अपहरण से पहले अंततः एक बार संविधान दिवस मनाकर 26 जनवरी को लोकतंत्र का महोत्सव जरूर मनायें।
गौर करें कि अमेरिकापरस्ती में बाजार में बहार ऐसे खिली है कि अब चिनारों में आगजनी तय है।
सिर्फ आम आदमी परेशां, बाकी सब बहार है!
अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा जी से नैन क्या मिले, भारत को अमेरिका बना दियो मोदी महाराजज्यू और अब संसद में मोदी की कदमबोशी की तैयारी, बुलरन में अर्थव्यवस्था, करोड़पति समुदाय बल्ले-बल्ले, गणतंत्र भी उन्हीं का!
O- पलाश विश्वास


