मैं मेरा बेटा और ‘आप… वो कुछ अच्छा काम करेंगे। लेकिन उससे ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे। हमें उस भी दिक्कत नहीं है, हमारा विरोध इस काम को गांधी, भगतसिंह के सपने के नाम पर कर इसे क्रांति बताने पर है। इससे लोगों में इन महान नेताओं की नीति के बारे में भ्रम फैलता है, उन्हें लगता है यही असली बदलाव है।

अनुराग
मोदी

जब
से आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली में चुनाव जीतकर सत्ता में आई है, तब से मेरी, मेरे
18 वर्षीय बेटे से अमूमन रोज इस बात पर बहस होती
है कि मैं, और मेरी पत्नी ‘आप’ पार्टी में क्यों
नहीं जाते? उसका कहना है: आप लोग अपनी-अपनी नौकरी
छोड़ बीस साल से लोगों के बीच काम कर रहे हो; आप
लोगों पर इस दौरान पर दसियों झूठे केस लगे हैं; जेल
गए; मंत्री के कहने पर जानलेवा हमला हुआ; फिर भी आज तक आप और आपके लोगों को 4-5 हजार से ज्यादा वोट नहीं मिले। ‘आप’ पार्टी में
जाओगे तो जीत जाओगे! मंत्री बन जाओगे; आप
लोगों के पास तो बीस साल का इतना अनुभव है!

मेरे
बेटे से ‘आप’ को लेकर हुए सवाल जवाबों को मैं यहाँ रख रहा हूँ।

पहला
सवाल : आप, आम आदमी पार्टी में क्यों नहीं जाते? वो भी तो आपके जैसे लोग हैं! आपके जैसा ही काम
करना चाहते हैं! सत्ता में जाकर आप भी लोगों के लिए काम कर पाओगे।

जवाब
: दूर से हम लोग एक जैसे दिखते हैं, लेकिन
ऐसा नहीं है! ‘आप’ पार्टी का कहना है उनकी कोई विचारधारा नहीं है, ना ही उनकी सामाजिक और आर्थिक नीति कांग्रेस और
अन्य स्थापित पार्टियों से अलग है। हम समतावादी विचारधारा मानते हैं और हर तरह की
गैरबराबरी दूर करना चाहते हैं। हम सत्ता को इसका एक साधन मात्र मानते हैं, इसलिए सत्ता में जाना चाहते हैं, सिर्फ सत्ता में जाने के लिए अपना जिन्दगी भर
का मिशन कैसे छोड़ दें?

दूसरा
सवाल : इसका मतलब है, ‘आप’ पार्टी में ईमानदारी के अलावा अलग
कुछ नहीं है?

जवाब
: हाँ, बिलकुल सही है। ‘आप’ पार्टी का कहना
है- सामाजिक गैर बराबरी के मुद्दे उठाने से आपसी खाई बढ़ती है। मूल मुद्दा है-
लोगों की समस्याओ का हल। अगर निजीकरण से भी देश की गरीबी दूर की जा सकती है, और लोगों को सुविधा दी जा सकती है तो क्या
दिक्कत है। किसानों की समस्या उनके फसल की ज्यादा कीमत देने से हल हो जाएंगी।
सिर्फ इन सब काम के क्रियान्वयन में ईमानदारी की जरूरत है।

तीसरा
सवाल: अगर सब काम ईमानदारी से हों, लोगों
की समस्याएँ हल हों, तो फिर आपको निजीकरण से क्या दिक्कत है? निजी स्कूल, अस्पताल
तो अच्छे होते है!

जवाब
: पहला, हर आदमी बेईमान नहीं है, और सिर्फ ‘आप’ पार्टी के लोग ईमानदार हैं ऐसा
नहीं है। इसलिए, सिर्फ ईमानदारी से समस्या हल नहीं
होगी। और लोगों की असली समस्या सिर्फ भ्रष्टाचार के कारण नहीं है, बल्कि सरकार की गलत सामजिक और आर्थिक और
प्रशासनिक नीति के कारण है,
और असल में आपकी विचारधारी तय करती है
कि आपकी ईमानदारी किसके प्रति होगी। दूसरा, निजीकरण
मतलब सिर्फ निजी स्कूल और अस्पताल नहीं है। निजीकरण के पीछे दुनिया के बड़े-बड़े
कॉर्पोरेट हैं, जो हमारे जल, जंगल, जमीन, बिजली, सड़क, खेत, उद्योग
धंधे सब पर कब्जा करना चाहते हैं। इनके पास देश की सरकार से ज्यादा ताकत और पैसा
है। भारत में लागू बीस के साल की इस नवउदारवाद की निजीकरण की नीति के बाद जहाँ
लाखों किसान क़र्ज़ के बोझ तले दबकर आत्महत्या करने पर मजबूर हुए हैं, वहीं लाखों आदिवासी, दलित, किसान
विस्थापित हुए हैं; देशी उद्योग धंधे बंद हुए है; लाखों मजदूरों को काम से निकला गया है; हमारा पर्यावरण नष्ट हो रहा है और निजीकरण के
कारण कॉर्पोरेट करप्शन बढ़ा है। तीसरा, देखते-देखते
शिक्षा व्यापार बन गई। आज एक आम आदमी अपने बच्चों की पढाई और ईलाज पर खर्च करते या
तो क़र्ज़ लेता है, या भ्रष्टाचार करने को मजबूर होता है।
नई पीढ़ी ने सरकारी स्कूल,
अस्पताल आदि कहाँ देखे हैं! पहले हम
सब- अमीर-गरीब, एक ही स्कूल में पढ़ते थे। धीरे-धीरे
निजी स्कूल खुलने से प्रभावशाली लोग निजी स्कूल में अपने बच्चों को भेजने लगे, जिससे सरकारी बद्दतर हालत में पहुँच गए। आज
शिक्षा, ईलाज, सड़क, पानी, बिजली सब बाज़ार के मुनाफे के धंधे बनाए जा रहे हैं। जब अमेरिका
जैसे पूंजीपति देश में
88% बच्चे
सरकारी स्कूल में पढने जाते हैं
, तो हमारे जैसे गरीब देश में प्रधानमंत्री और चपरासी के बच्चे के लिए
एक जैसे स्कूल क्यों नहीं है
? अगर आम आदमी की मूलभूत जरूरतों के
साधनों पर दुनिया की बड़ी-बड़ी निजी कम्पनियों पर कब्जा हो जाएगा तो देश फिर से
आर्थिक गुलाम नहीं हो जाएगा? अगर
सरकार लोगों को मूलभूत सुविधा भी नहीं देगी, तो
फिर सरकार की ऐसी ‘ईमानदारी’ किस काम की ?

चौथा
सवाल: मेरा दसवीं तक का स्कूल भी निजी था, क्या
आप उसके भी खिलाफ है?

जवाब
: नहीं! पहले के जमाने में लोग शिक्षा और स्वास्थ्य को सेवा का काम मानव सेवा का
काम मान कर स्कूल और अस्पताल खोलते थे, धंधा
नहीं। फिर भी समाज में काम धंधे की कमी नहीं थी। मुम्बई के चेम्बूर में जिस स्कूल
में तुम दसवीं तक पढ़े, उसमें पहली की फीस एक रुपए और दसवीं की
दस रुपए है, फिर भी वो आज भी उस इलाके का सबसे
अच्छा स्कूल है। उसका पैसा सरकार से आता है, सिर्फ
व्यवस्था निजी संस्था देखती थी। ऐसे सैंकड़ों स्कूल कई सामाजिक संस्थाओं ने पूरे
मुम्बई में खोले, जो आज भी सर्वोतम हैं। हम बिना मुनाफे
के सामाजिक नियंत्रण वाले ऐसे निजीकरण के पक्ष में हैं।

पांचवा
सवाल: ‘आप’ पार्टी के लोग विकास करेंगे।

जवाब
: हम समता की विचारधारा में विश्वास रखते हुए जब तक ऐसी विकास नीति नहीं बनाते हैं, जिसमें सबको बराबर फायदा मिले तब तक विकास के
नाम पर गैर बराबरी फैलेगी। अभी तक एक के संसाधन छीनकर दूसरे को देना का नाम ही
विकास है, इसलिए गाँव और शहर में ईतनी खाई बढ़ी
है और पर्यावरण का नाश हुआ है। हमें वैकल्पिक विकास नीति बनाना होगा।

छठवां
सवाल: तो फिर आप लोग कब चुनाव जीतोगे? देश
कैसे बदलेगा?

जवाब
: देश बदलने के लिए पहले सामाजिक बराबरी लाना होगा, जिससे समाज के हर वर्ग के बातों को बराबरी का स्थान मिले, दूर-दराज के गाँव-गाँव तक दबे हुए तबके के लोग
स्वतंत्र होकर वोट कर सके। इसके लिए देश के पढ़े-लिखे युवाओं को मीडिया की फ़िक्र
किए बिना अपने केरियर की फ़िक्र छोड़ गाँव-गाँव जाकर बदलाव का काम करना होगा। ऐसा
होगा तब देश बदलेगा।

सातवां
सवाल: ‘आप’ पार्टी के लोग कुछ तो अच्छा कम करेंगे?

जवाब
: सही है, वो कुछ अच्छा काम करेंगे। लेकिन उससे
ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे। हमे उस भी दिक्कत नहीं है, हमारा विरोध इस काम को गांधी, भगतसिंह के सपने के नाम पर कर इसे क्रांति
बताने पर है। इससे लोगों में इन महान नेताओ के नीति के बारे में भ्रम फैलता है, उन्हें लगता है यही असली बदलाव है।

आठवां
सवाल: अरविन्द केजरीवाल मीडिया का कितना नाम हो गया है। उस मीडिया में ईतनी बढ़ाई
ऐसे ही होती है?

जवाब
: तुम खुद जानते हो! हम और हमारे जैसे अनेक लोगो को तुम बचपन से देख रहे हो, जो अपनी जिन्दगी की हर मुसीबत भूल देश बदलाव के
काम में अपन सब कुछ छोड्कर लगे है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जिन्दगी लगा दे, जब ऐसे लोग चुनाव लड़ते हैं, तो मीडिया उन्हें कवरेज क्यों नहीं देती है? मीडिया में जो हमारे दोस्त हैं, वो कहते हैं, हमारे मालिक के आदेश हैं अपने अखबार में किसानों, आदिवासियों, दलितों
जैसे मुद्दों को नेगेटिव मुद्दे मानकर मीडिया में ज्यादा स्थान नहीं देना है।
हजारों किसान हर साल आत्महत्या कर रहे हैं, लाखों
आदिवासियों को बेघर बार कर दिया गया है- ऐसे मुद्दे तुम्हे समाचारों में पढने को
कहाँ मिलते हैं?

जाने-माने
सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता अनुराग मोदी समाजवादी जन परिषद् के राष्ट्रीय
कार्यकारणी सदस्य हैं।