सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों वाले सुप्रसिद्ध जनपक्षधर पत्रकार व “हस्तक्षेप.कॉम” के सम्मानित लेखक अरूण कुमार नहीं रहे। आज तड़के बरौनी में उनका निधन हो गया। पिछले कुछ वर्षों से वे कैंसर से जूझ रहे थे।
अरूण कुमार ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के वरिष्ठ संवाददाता के रूप में दो वर्ष पूर्व अवकाश ग्रहण किया था। टाइम्स ऑफ इंडिया के पटना संस्करण से वे लगभग तीन दशक तक संबद्ध रहे। वे श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, बिहार के महासचिव के अलावा ‘प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ के सदस्य भी थे।
बिहार में पत्रकारों के हक-हकूक के पक्ष में अरूण कुमार सबसे सशक्त आवाजों में से एक थे। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के कर्मचारियों का कई वर्षों तक चलने वाला लंबा संघर्ष अरूण कुमार के नेतृत्व के बगैर संभव न था। जब भी पत्रकारों पर हमले होते उसके विरूद्ध हमेशा अरूण कुमार सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़े होते।
‘प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ के वर्तमान में वे बिहार से इकलौते सदस्य थे। ‘प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ के तत्कालीन चेयरमैन मार्केंडय काट्जू ने बिहार में पत्रकारिता में लगाए जा रहे अंकुश के सबंध में जिस तीन सदस्यीय समिति का निर्माण किया अरूण कुमार उस टीम से सबसे प्रमुख सदस्य थे। प्रेस काउंसिल की रिपार्ट तैसार करने में अरूण कुमार की महती भूमिका थी। उन्होंने इस रिपोर्ट केा तैयार करने के सिलसिले में पत्रकारों के अलावा विभिन्न जनसंगठनों द्वारा प्रस्तुत ज्ञापनों को भी स्वीकार किया था। यह रिपोर्ट भी हस्तक्षेप पर प्रकाशित हुई थी, उस रिपोर्ट के बाद आलोचनात्मक रूख रखनक वाले जनतांत्रिक स्वरों को थोड़ा स्पेस भी मिलने लगा।
‘प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ के सदस्य की हैसियत से उन्होंने कई राज्यों का दौरा किया तथा पत्रकारों को एकजुट कर उनके पक्ष में हमेषा संघर्षरत रहे।
अवकाश ग्रहण के पश्चात अरूण कुमार बेगूसराय लौटे तथा वहॉं के कई मसलों को भी उठाते रहे। वे अॅंग्रेजी के उन पत्रकारों में थे जो हिंदी में पर्चे लिखा करते थे। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ पटना में वे अमूमन वामपंथी पार्टियों का बीट देखा करते तथा यथासंभव कोशिश करके वामदलों को अधिकतम स्पेस दिलाने का प्रयास करते। अॅंग्रेजी अखबारों में वे वाम विचारधारा का समर्थन करने वाले चुनिंदा पत्रकारों में शामिल थे। वे सी.पी.आई के बाकायदा सदस्य भी थे।
वैश्वीकरण के बाद के दौर में उनका हमेशा ये प्रयास रहता कि नये दौर में पत्रकारिता के बदलते स्वरूप एवं उस पर पूँजी के दबावों को उसके आर्थिक-राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाए। पत्रकारिता पर हमेशा उन्होंने बातचीत व विमर्श का आयोजन किया तथा एक समझ बनाने की कोशिश किया करते।
विभिन्न जनांदोलनों से भी गहरा रिश्ता था तथा जनता के लिए होने वाले संघर्षों के उतार-चढ़ाव पर वे पैनी निगाह रखा करते। जबसे उन्हें अपनी कैंसर की बीमारी का पता चला, वे बेहद बहादुरी से उससे मुकाबला करते रहे।
अपने फेसबुक पेज के माध्यम से होने वाली घटनाओं पर निगाह रखते तथा कभी-कभी बेहद आवश्यक टिप्पणी भी किया करते। शेष दुनिया से संवाद का माध्यम अपने अंतिम वक्त उनका फेसबुक ही रह गया था।
मीडिया हाउस के हमलों के विरूद्ध पत्रकारों, कर्मचारियों के पक्ष में बोलने वाला दुर्लभ व ताकतवर आवाज हमारे बीच से हमेशा के लिए चली गयी।
बिहार में धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व वामपंथी शक्तियों के लिए भी अरूण कुमार हमेशा प्रेरणादायी शख्सिययत बने रहेंगे।
हस्तक्षेप परिवार की ओर से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
अनीश अंकुर