सुरेश प्रभु की बुलेट रेल चल पड़ी पीपीपी पटरियों पर, कोका कोला और डाउ कैमिकल्स की ट्रेनें दौड़ेंगी
सुरेश प्रभु की बुलेट रेल चल पड़ी पीपीपी पटरियों पर, कोका कोला और डाउ कैमिकल्स की ट्रेनें दौड़ेंगी
सुरेश प्रभु की बुलेट रेल- बुलेट हुआ मेकिंग इन, पेंशन बीमा स्वाहा निवेशकों के लिए
कि रेल किराया इजाफा माफ हुआ और बिन नईकी गाड़ी लोकलुभावन बजट का सिलसिला है कि रेल अब प्राइवेट है और सेवा मुक्तबाजारी विनियंत्रित
'एक साल में अडाणी की संपत्ति 25000 करोड़ बढ़ी, अच्छे दिन'
'नौ महीने के शासनकाल में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार कॉर्पोरेट घरानों के हित में दिन-रात काम कर रही है...
आज सुरेश प्रभु के प्रवचन से इह जन्म धन्य हो गया और सार्थक हो गया डिजिटल देश में मेकिंग इन गुजरात, मेकिंग इन अमेरिका।हूबहू वैसा ही हो रहा है जैसा अभिभाषण में महामहिम ने कह दिया है। जैसा चिदंबरन करै हैं। जैसा इंडिया इंक कहै है।जैसे लीक बजटों के जरिये कारपोरेट लाबिइंग है। कारपोरेट फंडिंग है।
मोदी के मुताबिक रेलवे बजट विकास का हर पहलू छूता हुआ है।विकास का मतबल समझ लीजिये। विकास जो पीपीपी है, कयामत।
शेयर बाजार में जमकर मुनाफावसूली है। देश व्यापी बेदखली है। मीडिया के विकास परिदृश्य के मुताबिक हूबहू वैसा ही हो रहा है।
बहरहाल, प्रभु बोले, निवेश से बढ़ेंगी नौकरियां। यात्री किराया नहीं बढ़ा लेकिन कोयला, सीमेंट, यूरिया पर मालभाड़ा बढ़ाया गया है।
जनता के लिए थोक गाजर का प्रबंध है लोक लुभावन और खुल्ला एफडीआई, कंप्लीट प्राइवेटाइजेशन है। सब कुछ डिजिटल, सब कुछ रोबोटिक है। सब कुछ ऐप और तकनीक है। मनुष्य लेकिन कहीं नहीं है। नागरिक उपभोक्ता है।
रेलवे के संसाधन जुटाने के लिए केंद्र सरकार के अनुदान पर निर्भरता खत्म है कि कोका कोला और डाउ कैमिकल्स की ट्रेनें दौड़ेंगी देशी विदेशी पूंजी की पटरियों पर कि पेंशन,बीमा ,केंद्रीय मंत्रालयों,सार्वजनिक उपक्रमों की पूंजी बेखटके लगायी जायेगी संविदा हीरक विकास पर कि खुल्ला आमंत्रण है संयुक्त उपक्रमों के लिए हीरक परियों पर दौड़ेंगी ट्रेनें।
रेलवे मंत्री ने साफ किया कि वो रेल के विकास के लिए निजी कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर करेंगे, साथ ही राज्यों का भी सहयोग लेंगे।
सुरेश प्रभु ने ये भी साफ किया कि वो रेलवे में मेक इन इंडिया को आगे बढ़ाएंगे।
मुंबई में चलेंगी वातानुकूलित ट्रेनें ।
हर स्टेशन माडल होगा।
राज्य सरकारों के हिस्से का राजस्व भी पीपीपी हवाले।
अहमदाबाद से दिल्ली दौड़ेंगी बुलेट ट्रेनें।
बाकी लोग इंतजार करें बुलेट का।
हाई स्पीड तो है ही।
मुक्त बाजार से जुड़ जायेगा समूचा पूर्वोत्तर चाहे बाकी देस के लिए वे गैरनस्ली लोग अब भी हों प्रवासी और आफसा वहां नियतिबद्ध रहे जैसे मध्य भारत और बाकी भूगोल पर वध्य आदिवासी भूगोल निमित्तमात्र।
सो देशी विदेशी पूंजी के लिए सारा देश औद्योगिक कारीडोर है।
सारा देश अब सेज है।
फूलों की सेज सजी है कि महबूबा के लिए फूल बरसने लगे हैं विदेशी और सुगंध भी विदेशी है।
माफ करना दोस्तों कि अभी तो जिंदा हूं।
अभी तो डीएक्टिव मोड में भी किसी न किसी तरह आप तक पहुंच ही रही होगी हमारी आवाज आपकी अखंड निद्रा में खलल डालने के लिए।
हम तो दंडवायस हो गये यारों।
त्रिकालदर्शी नहीं हूं वैदिकी गणित पारदर्शिता से और आंकड़ों परिभाषाओं और पैमानों, तकनीक का मेगास्टार नहीं हूं।
इसीलिए जो यथार्थ है, उसी का किस्सागो हुए हम।
घर में संकट है कि सामने वाली बस्ती उखड़ रही है और प्रोमोटर वाहिनी से लड़ाई शुरू हो चुकी है बस्ती वालों के साथ। रसोई जिनके भरोसे चलती है, उस लीलावती ने काम पर आने से मना कर दिया है और सविता लगातार बीमार चल रही है।
फ्लू है लेकिन पता नहीं चला है कि उसे स्वाइन फ्लू है या नहीं।
मुझे खांसी है और तबीयत भी ढीली है।
दिल्ली मुंबई रोड के चक्रव्यूह भेदकर काम से देर रात तक घर पहुंचने के सिलसिले में अब जो क्रास फायरिंग का माहौल बना है, जो कारपोरेट प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज विकसित कमल कमल है, उसमें बिन केसरिया हुए लिखना पढ़ना तो दूर जीना कब तक संभव है, कुछ अंदाजा नहीं है।
भारत सरकार के डिजिटल देश में जनपक्ष में खड़ा होना सबसे बड़ा अपराध है।
विडंबना यह है कि हम सड़क पर फिलहाल उतर नहीं सकते लेकिन सड़क हमें बुला रही है और ठौर ठिकाने से बेदखल होते ही हम खुदबखुद सड़क पर होंगे।
जब तक न हों तब तक लीलावती और हिंदुस्तानी बस्ती और हमारे बीच एर अलंघ्य खाई है और खाई के इस पार हम खड़े हैं निःशस्त्र अपने स्वजनों की बेदखली का प्रत्यक्षदर्शी बनने के लिए।
हम जो देख रहे हैं, शायद आप भी वही देख रहे हों।
हम फिलहाल लिख सकते हैं और हो सकता है कि आप भी कुछ कहना चाहते हों लेकिन यह भी हो सकता है कि आपकी आवाज मूक हो और संभव है कि अपने-अपने चक्रव्यूह में, अपने-अपने रामायण और महाभारत की मारामारी में लहूलुहान हों आप हमसे कहीं बहुत ज्यादा।
हालात कयामती हैं और बख्तरबंद गाड़ियां नहीं है किसी के पास कि अश्वमेधी घोड़े खुदबखुद मिसाइलें है, नाम लिखे गाइडेड बुलेट हैं, बहते हुए पोलियम 210 है और गोमूत्र और हनुमान चालीस यंत्र के सिवाय कोई निदान नहीं है इस स्वाइन फ्लू से टकराने का।
हम हिंदी हैं जनमजात, हम हिंदू हैं जनमजात कि जनम और भूगोल पर किसी का कोई बस नहीं है।
हम गैर नस्ली है जन्मजात कि हम नस्ल नहीं चुन सकते बहरहाल घर वापसी हो या न हो, घर में हो या न हो, अवस्थान हमारा बदलता नहीं है और जाति व्यवस्था भी हिंदुत्व की तरह मुक्तबाजार के तिलिस्म की नींव है।
हम देख रहे हैं अपने चारों तरफ हिंदुस्तानी बस्तियों को उखड़ते हुए।
हम देख रहे हैं अपने चारों तरफ टुकड़ा-टुकड़ा हिंदुस्तान बिखरते हुए।
हम चारों तरफ से खून की नदियों से घिरे हैं।
हम हिंदी हैं।
हम जन्मजात हिंदू हैं।
हिंदुत्व हमारी पूंछ है और हम बजरंगवली हैं।
गाय हमारी माता है।
गोवध निषेध हमारा राष्ट्रधर्म है।
खेती और देहात उजाड़कर हम गो संवर्धन कर रहे हैं।
हरियाली की लाश पर हम गीता महोत्सव के तहत शव साधना कर रहे हैं।
जो गाय को माता मानते हैं वे दरअसल भारतीय कृषि की हत्या के साथ गोहत्या भी कर रहे हैं।
वे न विदेशी हैं और न वे विधर्मी हैं।
वे शत प्रतिशत हिंदुत्व के पीपीपी झंडेवरदार है।
संसद में रेल बजट पेश है।
कल आर्थिक समीक्षा पेश होगी।
महामहिम ने पूंजी निवेश पर जोर दिया है।
महामहिम ने अपने अभिभाषण में मेकिंग इन गुजरात और मेकिंग इन अमेरिका को वैधता देते हुए कहा है भूमि अधिग्रहण जायज है।
पलाश विश्वास
#RailBudget2015
#LandBillWar


