केरल के शिक्षित और सभ्य समाज का संकट - कमला सुरैय्या से हादिया तक

इस लोकतांत्रिक देश में किसी को भी किसी अन्य के मामले में पागल होने का लाइसेंस प्राप्त है

के.पी.शशि

सुप्रसिद्ध लेखिका कमला सुरैय्या का जन्म 1934 में एक हिन्दू रूढ़िवादी नायर परिवार (नलप्पात) में हुआ था। उन्होंने 1999 में 65 साल की उम्र में इस्लाम धर्म को अपनाया और अपना नाम कमला दास से बदल कर कमला सुरैय्या कर लिया। हिन्दू रूढ़िवादी वर्ग के लिए उनका यह कदम बेहद निंदनीय था। संघ परिवार के आरोप और निजी हमले उनकी मृत्यु तक जारी रहे। यहां तक ​​कि मौत के बाद भी धर्म संबंधित विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा।

जब विवेकानंद ने केरल को एक पागलखाना बताया था।

इतिहास ने एक बार फिर खुद को दोहराया है और इस बार शिकार एक साधारण लड़की है। इस लड़की से संबंधित विवाद को मीडिया और विविध राजनीतिक विचारधाराओं के द्वारा पागलपन का दर्जा दिया गया है। यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब विवेकानंद केरल राज्य के दौरे पर आये थे और उन्होंने केरल को एक पागलखाना बताया था।

केरल में एक रोचक स्थिति बनी हुई है। ईज़ावा समुदाय में पली बढ़ी एक लड़की कई वर्षों से इस्लाम से प्रभावित है और वह अपने धर्म को बदलना चाहती थी और वह अखिला से हादिया बन गई। 57 वर्षीय इस्लामोफोबिया से ग्रस्त बुद्धिमान पिता एम अशोकन हादिया के इस फैसले को समझ पाने में नाकाम है। हादिया के पिता लव जिहाद और सीरिया 'ट्रांसपोर्टेशन' के डर के साथ अदालत पहुंच चुके हैं। चे ग्वेरा भी एक भावुक व्यक्ति था और उसने अपने डॉक्टर की किट के बजाय बंदूक उठाई थी।

इस लोकतांत्रिक देश में किसी को भी किसी अन्य के मामले में पागल होने का लाइसेंस प्राप्त है

अशोकन का यह भ्रम केरल में पूरे समाज का भ्रम बन गया है और इसका पूरा श्रेय संघ परिवार को जाता है।अशोकन उसका पिता है और हमारी वर्तमान व्यवस्था में पितृसत्ता को लागू करने के लिये सर्वाधिक जिम्मेदार व्यक्ति पिता हैं इसलिए किसी भी बेटी के खुद के फैसले की तुलना में पिता के फैसले को ज्यादा समर्थन मिलता है।संघ परिवार के नेतृत्व के अनुसार 'बेटी के मानवाधिकारों पर विचार करने से पहले पिता के मानव अधिकारों पर विचार करना चाहिए'।

लेकिन बेटी का विद्रोह यहीं खत्म नहीं होता है। वह शाफिन जहां से शादी करने का फैसला करती है।

अब शाफिन जहां कौन है?

वह एक लोकप्रिय राजनीतिक दल एसडीपीआई का सदस्य है और यह दल 'हाथ काटने ' के कुख्यात मामले में बुरी तरह फंसा हुआ हैं। शफीन जहाँ के खिलाफ भी एक आपराधिक मुकदमा है पर हाथ काटने वाले मामले नहीं है लेकिन ​​जिन लोगों के खिलाफ मामले लंबित हैं, उन्हें भी भारतीय संविधान के तहत शादी करने का अधिकार है और वह किसी भी राजनीतिक दल से हो सकते हैं। इससे शादी करने का अधिकार कम नहीं होता है। यदि न्यायालय ने तकनीकी आधार पर इस विवाह को सही नहीं पाया तो क्या अदालत को दो वयस्कों के बयानों और हितों पर विश्वास नहीं करना चाहिए? अगर उनकी शादी तकनीकी तौर पर दोषपूर्ण थी तो अदालत ने दो वयस्कों की इच्छाओं के विपरीत उनके विवाह को रद्द करने के बजाय तकनीकी त्रुटि को सही क्यों नहीं किया?

अदालत ने लड़की को उसके पिता की संरक्षकता में क्यों भेजा?

क्या लड़की की कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं हो सकती ?

इस लड़की को उसके घर में पिता, पुलिस और संघ परिवार की संरक्षकता में कैद क्यों किया गया है?

उसे किसी से मिलने की अनुमति नहीं है। वह फोन, इंटरनेट या संचार के किसी अन्य साधन का उपयोग नहीं कर सकती है। लंबी प्रतीक्षा के बाद इस महीने केवल एक व्यक्ति जो इस लड़की से मिल पाया वह है संघ परिवार का एक कार्यकर्ता राहुल ईश्वर।

दिलचस्प बात यह है कि इस परिस्थिति में घर वापसी शब्द की जगह लव जिहाद शब्द का अधिक प्रयोग किया जा रहा है। केरल के समाज के लिए इस मुद्दे का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह एक वयस्क महिला के स्वतंत्रता के अधिकारों को समझे और उसके निर्णय का सम्मान करें,चाहे इसे पसंद करें या नहीं। सिविल सोसायटी और अदालत की यह जिम्मेदारी है कि इन दो वयस्क व्यक्तियों द्वारा लिये गए इस निर्णय को समझे तथा इसे स्वीकार करे। अन्यथा मुझे केरल में पागलपन की इस स्थिति पर कॉमेडी फिल्म बनानी होगी।

वैसे कोर्ट का फैसला कॉमेडी फिल्म की पटकथा के लिए पर्याप्त सामग्री प्रदान करता है।

फैसले के कुछ अंश -

'सुश्री अखिला, श्री आशोकन (याचिकाकर्ता )और श्रीमती पोनम्मा की एकमात्र संतान है दोनों हिंदु (एजावा) समुदाय के हैं और कोट्टायम जिले में वाइकम में रहते हैं इसलिए श्रीमती अखिला का पालन पोषण हिंदू धर्म के विश्वासों और परंपराओं के अनुसार किया गया। वर्तमान में, वह 24 वर्ष की है और उस ने होम्योपैथी चिकित्सा, बीएचएमएस (होम्योपैथिक चिकित्सा और शल्य चिकित्सा बैचलर) में अपनी डिग्री कोर्स पूरा कर लिया है।उनसे बीएचएमएस कोर्स के लिए शिवराज होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज, सलेम में दाखिला लिया था।यह विवाद का विषय नहीं है। शुरू में वह कॉलेज के हॉस्टल में रहती थी बाद में उसने कॉलेज के बाहर किराए पर घर ले लिया और चार अन्य सहेलियों के साथ वहां रहने लगीं।उसकी दो सहेलियां हिंदू थी जबकि अन्य दो मुसलमान थी। उनमें से सुश्री जसीना के उसकी गहरी दोस्ती हो गयी। वह सुश्री जसीना के साथ कई बार उसके घर गई और कई बार वो साथ रहे। जसीना के साथ उसकी नज़दीकी ने उसे इस्लामिक धर्म के सिद्धांतों और विश्वासों के प्रति आकर्षित किया। याचिकाकर्ता का आरोप है कि हादिया को जबरन इस्लाम धर्म में लाया गया है। कोर्ट का फैसला इसी तरह के पितृसत्तात्मक रत्नों रूपी वाक्यो से सजा हुआ है।

उपरोक्त फैसले में प्रभावित शब्द ठीक है लेकिन प्रत्यायन शब्द का प्रयोग करने का अर्थ किसी वयस्क, शिक्षित महिला के स्वतंत्र विचारों को मान्यता न देना है। इस समय अशोकन के घर में चल रहे भावनात्मक नाटक की हम कल्पना ही कर सकते हैं। इसमें शामिल पात्रों के निर्णय के अनुसार स्क्रिप्ट एक त्रासदी या कॉमेडी बन सकती है।

हालांकि, किसी भी धर्म में किसी के जबरन रूपांतरण की अवधारणा मेरे तर्क को प्रभावित नहीं करती है। कंधमाल में, हिन्दुवादी बलों के द्वारा आदिवासी ईसाईयों और दलित ईसाईयों का जबरन धर्म परिवर्तन किया गया। आदिवासियों पर यह दबाव बनाया गया कि यदि आप हिंदू धर्म में परिवर्तित नहीं होते हैं तो आप को मार दिया जाएगा चूंकि कुछ लोग मारे गए भयवश कई लोगो ने हिन्दू धर्म को अपना लिया था। अब उनमें से ज्यादातर लोग अपने धर्म में वापस चले गए हैं इसलिए जबरन धर्मान्तरण के तर्क की एक सीमा है आप अपने विश्वास के लिए मर सकते हैं लेकिन आप को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और यदि आप ऐसा करते हैं तो आप आस्तिक नहीं हैं।शायद न्यायाधीश को इस दुखद वास्तविकता को समझना चाहिए।

बुद्धिवादी अशोकन ने अपने सारे तर्क कौशल को खो दिया है। वह किसी को भी हादिया से मिलने की इजाजत नहीं देता। यदि आप कोशिश करते हैं तो आप को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ेगा। बेशक, पुलिस मशीनरी भी तर्कसंगत हो गयी है।

सनी कपिक्कड़ अशोकन से मिलने के बाद कहा कि : 'मुझे यकीन है कि अशोकन द्वारा कहे गए शब्द स्वयं उनके नहीं हैं। वे भाजपा और संघ परिवार के शब्द हैं जो बाहर से पूरे घटनाक्रम को संचालित कर रहे हैं'। क्या इसका मतलब यह है कि हमें हिंसक होना चाहिए या यह घोषणा कर देनी चाहिए कि वह हमारा दुश्मन है? हम सभी को हादिया और उसके परिवार की मानसिक स्थिति को समझना चाहिए।

फिर कोर्ट का फैसला आता है:

"उनके आवेदन पत्र के समर्थन में दाखिल अपने हलफनामें में, हदिया ने उन परिस्थितियों को बताया है जिसमें उसने अपना घर छोडा था। उनके अनुसार, वह 24 साल की थी और पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद सालेम में शिवराज होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज में बीएचएमएस कोर्स में इंटर्नशिप कर रही थी। उसने अपने हलफनामे में कहा है कि जब वह अपनी सहेलियों साथ सलेम में एक किराए के घर में रह रही थी, तब उसकी दो सहेलियां सुश्री जसीना और सुश्री फसीना ने उसे समयबद्ध प्रार्थना और अच्छे चरित्र से प्रभावित किया फिर उसने इस्लामिक किताबें पढ़ना शुरू किया और इस्लाम के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए इंटरनेट में वीडियो भी देखा करती थी।वह हिंदू धर्म में कई देवी देवताओं की अवधारणा से भ्रमित थी कि उसे किस भगवान की पूजा करनी चाहिये तब इस्लाम द्वारा प्रतिपादित एक ईश्वर की अवधारणा ने उसे आकर्षित किया। उसने औपचारिक रूप से धर्म परिवर्तन की घोषणा के बिना ही इस्लाम धर्म का पालन करना प्रारंभ कर दिया। वह अपने कमरे में और साथ ही साथ अपने घर पर भी इस्लामिक रीति से प्रार्थना करने लगी। एक दिन उसके पिता ने उसे प्रार्थना करते देख लिया और उसे इस्लाम के विरुद्ध चेतावनी दी। उसके पिता के अनुसार, इस्लाम आतंकवाद का धर्म है। हादिया के अनुसार, उसके पिता एक नास्तिक हैं जबकि उसकी मां हिंदू धर्म को मानती है। उसने अपने इस्लामिक विश्वास को छुपा कर रखा था। नवंबर 2015 में जब उस के दादा की मृत्यु हो गई, तब वह अपने दादा के अंतिम संस्कार और अनुष्ठानों के समय घर पर ही थी, जो लगभग 40 दिनों का था। उसके रिश्तेदारों ने उसे धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करने के लिए मजबूर किया तब उसने मुस्लिम धर्म को अपनाने का फैसला किया। वह 2.1.2016 को घर छोड़कर सीधे सलेम जाने के बजाय सुश्री जसीना के घर गयी। उसकी सहेली जसीना ने अपने पिता अबु बकर को यह बताया। जसीना के पिता ने उसे इस्लाम में धर्मांतरण के लिए कुछ संस्थाओं के विशेष पाठ्यक्रम में प्रवेश दिलाने कि कोशिश की। वो अखिला को के .आई .एम. नामक संस्था में ले गए लेकिन वहां उसे दाखिला नहीं मिला। तब श्री अबु बकर उसे थारबीठुल इस्लाम सभा ले गए, यह संस्थान उसे बाहरी उम्मीदवार के रूप में दाखिला देने के लिए तैयार हो गया। बाहरी उम्मीदवार के रूप में शामिल होने के उद्देश्य से श्रीमती अखिला ने एक हलफनामा दिया कि वह बिना किसी भय या दबाव के स्वयं की इच्छानुसार इस्लाम धर्म को स्वीकार कर रही है। अब समस्या क्या है? निर्णय में कहा गया है कि उसने अपनी इच्छानुसार बिना किसी दबाव या असम्यक प्रभाव के इस्लाम धर्म को स्वीकार किया है।

फैसले में यह भी कहा गया है कि वह इस्लामिक पुस्तकों को पढ़ने और वीडियो देखने से प्रभावित हुई। क्या यह अपराध है? इस लोकतांत्रिक देश में, निश्चित रूप से किसी भी व्यक्ति को कोई भी धर्म को चुनने का अधिकार है और कोई न्यायालय उसे रोक नही सकता ,तकनीकी आधार पर भी नहीं।

जब सुप्रसिद्ध लेखिका कमला सुरैय्या ने अपना धर्म बदला था और मुस्लिम बन गई थी तब उनके आलोचकों की एक बड़ी संख्या थी लेकिन आज की तरह हिंदुत्ववादी ताकतें उस समय जनसाधारण की चेतना को सुस्पप्ष्ट नहीं कर पायी थीं।

पिछले एक दशक के भीतर केरल में जनसाधारण की चेतना में बहुत बदलाव आया है। कमला सुरय्या जीवनी | Biography Of Kamala Suraiyya in Hindi

कमला सुरैय्या को एक फायदा यह भी मिला कि वह प्रसिद्ध लेखिका थीं। न सिर्फ़ मलयालम में बल्कि विभिन्न भाषाओं में उन्होंने काम किया जिसमें अंग्रेजी भी शामिल है और देश के विभिन्न हिस्सों में नारीवादियों के बीच उनका एक प्रशंसक क्लब था। फिर भी शिक्षित केरलवासियों के इस्लामोफोबिया ने इस प्रतिष्ठित लेखिका के लिए केरल में रहना मुश्किल कर दिया था। इस्लाम धर्म को अपनाने के बाद उन्हें पुणे पलायन करना पड़ा लेकिन यह सब यहीं बंद नहीं हुआ। वह चाहती थीं कि उन्हें मरने के बाद इस्लामी सिद्धांतों के तहत दफनाया जाए। केरल में इस्लामोफोबिया से ग्रस्त लोगों ने इस मुद्दे पर भी पर्याप्त समस्याएं पैदा की लेकिन उनके पुत्र मोनू नलप्पात को धन्यवाद जिसने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया और कमला को उनकी इच्छा के अनुसार दफन किया।

एक साक्षात्कार में कमला ने कहा था: "मैं हिन्दुओ के शव दहन के तरीके के खिलाफ हूं और मैं नहीं चाहती कि मेरा शरीर जला दिया जाए"। मुझे हमेशा से इस्लामी जीवन शैली के प्रति गहरा लगाव रहा है। मैंने दो अंधे मुस्लिम बच्चों इरशाद अहमद और इम्तियाज अहमद को पाला और ये बच्चे मुझे इस्लाम के करीब लाए। इनको पढ़ाने से पहले मुझे इस्लामी शास्त्रों का अध्ययन करना पड़ता था।अब एक दार्जिलिंग में प्रोफेसर और दूसरा लंदन में एक बैरिस्टर के तौर पर काम कर रहा है।

केरल के समाज को यह समझना चाहिए कि धर्म परिवर्तन भारतीय संविधान के तहत अपराध नहीं है

अंबेडकर ने भी बौद्ध धर्म को अपनाया था लेकिन यह बहस स्वतंत्र भारत के बाद से शुरू हुई है। इसका प्रारंभ उड़ीसा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 1967 से हुआ और कई राज्यों ने इस का अनुसरण किया लेकिन सौभाग्य से केरल में धर्म परिवर्तन प्रतिबंधित करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है। उड़ीसा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम1967 पर उचित बहस होनी चाहिये। उड़ीसा में सरकार की अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन नहीं कर सकता। संघ परिवार के द्वारा इस कानून को बढ़ावा दिया गया और इसके बाद कई राज्यों ने इस तरह के कानून का निर्माण किया। यह अधिनियम भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। अम्बेडकर ने बिना किसी सरकार की अनुमति के बौद्ध धर्म को अपनाया था। यह कानून अतः करण, अभिव्यक्ति, आध्यात्मिक और धार्मिक स्वतंत्रता पर एक आक्रमण जो कि पूर्णतः असंवैधानिक है।

संघ परिवार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत 2024 तक एक 'हिंदू राष्ट्र' बन जाएगा। इसके पहले सिर्फ एक ही चुनाव बचा है - 201 9 में। यह चुनाव भारत में धर्म, आध्यात्मिकता और यहां तक ​​कि नास्तिकता के भविष्य का भी निर्धारण करेगा। भारत में धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का मौका पहले ही गंवा दिया है। यह इतिहास में बार-बार हुआ और अब सब कुछ 2019 के चुनाव के निर्णय पर निर्भर करता है।

हादिया को अपनी पसंद का धर्म चुनने के अधिकार का कट्टरपंथी ताकतों के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए। उसे न्यायालय, संघ परिवार, एसडीपीआई और केरल के समाज के द्वारा एक वयस्क नागरिक के तौर पर देखा जाना चाहिए। इस समय केरल के समाज को हादिया के मानवाधिकारों के लिए एक साथ खड़ा होना चाहिए।

(अंग्रेज़ी (originally published in Countercurrents.org) से हिन्दी अनुवाद - नताशा खान)

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