पलाश विश्वास
गौरतलब है कि दुनिया के बेहद गरीब लोगों में से एक तिहाई भारत में रहते हैं और यहां पांच साल से कम उम्र में मौत के मामले सबसे अधिक होते हैं। सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने यह रिपोर्ट जारी की। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट के तथ्य नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए चुनौती हैं और वह इससे निपटने में सफल रहेगी। नजमा ने कहा, ‘‘अच्छे दिन आएंगे।’’
अच्छे दिनों की आहट दरअसल छापामार हमलों में तब्दील होने जा रही है। सेज को रिवाइव हीं नहीं कर दिया गया, निजीकरण को विनिवेश परिभाषित करने वाले लोगों ने सेज को औद्योगिक गलियारा और महासेज को अब स्मार्ट सिटी में कायाकल्पित कर दिया है। सेज का विकराल विदेशी चरित्र अब विकास के कामसूत्र मुताबिक दिलफरेब दिमागपलटू है। इसके साथ ही जबरन बेदखली के खिलाफ जनविद्रोह को सिरे से राष्ट्रद्रोह घोषित करते हुए धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता के आवाहन के साथ भारतीय जनता के विरुद्ध नयी युद्ध प्रस्तुतियां घनघोर हैं।
अब सलवा जुड़ुम का मायने आदिवासी के विरुद्ध लामबंद आदिवासी ही नहीं है, बल्कि ग्लोबीकरण और मुक्तबाजार का मलाई मक्खन खोर एक प्रतिशत के खिलाफ अर्तव्यवस्था से लेकर समाज में जाति व्यवस्था, नस्ली भेदभाव और भौगोलिक अस्पृश्यता के मार्फत बहिष्कृत निनानब्वे फीसद जनगण का अतीत भविष्य और वर्तमान है और इस निनानब्वे फीसद में ध्वस्त उत्पादन प्रणाल की पूरी श्रमशक्ति, सारी की सारी कृषि जीवी जनता के अलावा ज्यादातर स्त्रियां, युवाजन, बुजुर्ग और बच्चे शामिल हैं, जिनक लिए कारपोरेट केसरिया सब्जबाग के अच्छे दिनों के बहाने मूसलाधार दूसरे चरण के आर्थिक सुधार हैं।
बजट पर वैदिकी सभ्यता अभी भारी है। भारत सरकार और सत्तादल के साफ इंकार के बीच सहयोगी शिवसेना की रणहुंकार के मध्य और वैदिकी के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कवायद के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मजबूती के साथ वैदिकी के साथ है और इससे स्वयं सिद्ध है कि जैसे मैंने पहले ही लिखा है कि बजट पर चर्चा न होने देने के लिए यह मामला वैदिकी अंब्रेला है। उधर ट्राई संशोधन पास करने में मोदी के साथ खड़ी वामासुरमर्दिनी ममता बनर्जी का भगवाकरण भी तेज हुआ है जो अब जनहित में मोदी के राजकाज का समर्थन करेंगी। जाहिर है कि रंग बिरंगी अस्मिताओं के साथ कांग्रेस के जनहिते के सेज महासेज प्रतिमान भी समानधर्मी हैं।
गाजा में इजरायली नरसंहार के खिलाफ जब विश्व जनमत हर रोज इजरायली हमले के खिलाफ तेज से तेज स्वर में प्रतिरोध दर्ज करा रहा है, तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करने वाले हम आधिकारिक तौर पर भारत की ओर से इसकी निंदा भी नहीं कर पा रहे हैं। इससे समझ लीजिये कि विदेशी आवारा पूंजी, युद्धक जायनवाद और अमेरिकी हितों का यह रसायन भोपाल गैस त्रासदी से कितना ज्यादा मारक होने वाला है।
सेज पर पिछले दस सालों में शायद सबसे ज्यादा बोला लिखा गया है। नंदीग्राम सिंगुर सेजविरोधी आंदोलनों के कारण बंगाल में पैंतीस साला वामशासन का ही अंत नहीं हो गया, बाकी देश में भी वाम जनाधार तितर बितर हो गया। यह आंदोलन जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ संगठित हुआ और इसका असर महाराष्ट्र से लेकर पंजाब और यूपी के भट्टा परसौल में भी हुआ।
सेज विरोधी आंदोलन की वजह से ही भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून पास करके 1884 के एकतरफा कानून को बदल दिया गया।
कारपोरेट केसरिया सरकार ने सेज को पुनर्जीवित ही नहीं किया है, बल्कि भूमि सुधार कानून के कारपोरेट हितों के विरोध वाले प्रावधान हटाने की भी पूरी तैयारी कर दी है।
भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन की वजह से आबंटित कोयला ब्लाकों को अभी तक विकसित नहीं किया जा सका है। तो पर्यावरण हरी झंडी न मिलने के कारण अरबों डालर की विदेशी पूंजी का निवेश निलंबित है। नियमागिरि में अपढ़ आदिवासी पंचायतों ने महाबलि वेदांत की परियोजना रोक दी।
जाहिर है कि संविधान के तहत प्राकृतिक संसाधनों पर राष्ट्र और जनगण के अधिकारों के संरक्षण हेतु जो संवैधानिक प्रावधान हैं, उनको खत्म करना करोड़पति अरबपति रजनीतिक कारपोरेट तबके का मुख्य कार्यभार है और अमेरिकी जायनी हितों के मुताबिक इसे बखूब अंजाम दिया जा रहा है।
अदाणी पोर्ट्स ऐंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) को हरी झंडी पर्यावरण और समुद्रतट संरक्षण कानून के विपरीत मिली है, जो जबर्दस्त ब्रेकथ्रू है लंबित परियोजनाओं के लिए।
नमो सुनामी में जाहिर है कि अदाणी समूह की भी किंचित भूमिका की चर्चा हो चुकी है और इसका दोहराव उसी तरह जरुरी नहीं है, जैसे रिलायंस का।
खास बात तो यह है कि तमाम सरकारी बंदरगाहों को बेसरकारी बना देने की भी योजना है। विमानन, रेलवे, मेट्रो, भूतल परिवहन के बाद अब समुद्र पर भी विदेशी पूंजी का शिकंजा कसने ही वाला है।
इसी सिलसिले में अदाणी समूह की विजयगाथा पठनीय है।
तेल गैस के भंडार तो ओएनजीसी से लेकर रिलायंस समूह को भेंट में दे ही दिये गये हैं और अब ओएनजीसी के सेल आफ के बाद सामुद्रिक संसाधनों पर मुकम्मल कब्जा हो जाना है।
इसी सिलसिले में हाल में बांग्लादेश के साथ हुए समुद्र समझौते का उल्लेख करना जरूरी है। दक्षिण चीन सागर के तेलक्षेत्र को लेकर आंतरजातिक विवाद में फंसने वाले भारत ने जिस तरह 19 हजार वर्गकिमी तेलक्षेत्र बांग्लादेश को सौंप देने के लिए तुरत फुरत राजी हो गया, उसके पीछे हुए खेल का खुलासा बाकी है।
क्षेत्रीय शांति की परवाह अगर भारत के वर्चस्ववादी सत्तावर्ग को होती तो पड़ोसियों से संबंध इतने बुरे भी नहीं होते। दरअसल बांग्लादेश में सबसे बड़े दाता जापान है तो हाल में मोदी के राज्याभिषेक के मध्य चीन से भी आर्थिक सहयोग और जलसंधि के समझौते कर चुकी हैं हसीना वाजेद।
इसी सिलसिले में गौरतलब है कि मोदी सरकार ने बांग्लादेश को यूपीए सरकार के जमाने के अनुदान में भी कटौती कर दी है।
तो यह समझने वाली बात है कि भारत में तेल गैस की एकमात्र सक्षम सराकारी कपनी ओएनजीसी जब सेलआफ पर है तो किस कंपनी को हिंद महासागर के अब तक भारत के कब्जे में रहे 19 हजार वर्गकिलोमीटर बांग्लादेशी तेल गैस क्षेत्र भेंट में मिलने वाली है।
इस सिलसिले में यह भी गौरतलब है कि भारत में रिलायंस को गैस आपूर्ति के लिए करीब नौ डालर का भाव मिलना तलवार की धार की तरह अर्थव्यवस्था का बोझ है तो बांग्लादेश में यही गैस रिलायंस की ओर से दो डालर के भाव से बेची जाती है।
तो समझ में आने वाली बात है कि इस 19 हजार वर्ग किमी तेल गैस क्षेत्र पर किसकी दावेदारी सबसे मजबूत रहनी है।
कल ही मैंने आईटी सेक्टर के सिमटने की चेतावनी दी थी और आज खबरें बता रही हैं कि इस सर्वनाश में बहुत देरी भी नहीं है।
मसलन, प्रोद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी माइक्रोसाफ्ट ने अब तक की सबसे बड़ी छंटनी की घोषणा की योजना बनाई है और यह भारतीय मूल के कार्यकारी सत्य नडेला के पद-भार ग्रहण के बाद से कर्मचारियों की छंटनी का पहला मौका होगा। नडेला ने पिछले सप्ताह कर्मचारियों के लिए जारी चिट्ठी में सांगठनिक बदलाव का संकेत दिया था। न्यूयार्क टाइम्स की खबर के मुताबिक माइक्रोसाफ्ट की गुरूवार को छंटनी की घोषणा करने की योजना है और यह अब तक की सबसे बड़ी छंटनी होगी। इससे पहले 2009 में सबसे अधिक संख्या में कर्मचारियों की छंटनी हुई थी जबकि 5,800 लोग इससे प्रभवित हुए थे।
इलेक्ट्रानिक कयामत की दूसरी बड़ी सूचना यह है कि सॉफ्टवेयर क्षेत्र की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट फिनलैंड में अपनी मोबाइल फोन इकाई से एक हजार नौकरियों की कटौती की योजना बना रही है। सूत्रों के हवाले से फिनलैंड के समाचार पत्र हेलसिनजिन सैनोमैट ने यह खबर प्रकाशित की है।
इसी के मध्य अमेरिका में नमो प्रशस्ति क स्वर तेज होने लगे हैं। वहां भी अब भारत की तरह ही नमो मंत्र की अखंड जाप है।
हमारी धर्मोन्मादी पढ़ी लिखी जनता के लिए अपार हर्षोल्लास का सबब है गुजरात माडल के यह अभिनव ग्लोबीकरण।
बजट की संसदीय भूमिका पर बिजनेस स्टैंडर्ड की यह रपट मौजूं हैः

एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री से जब यह पूछा गया कि इस बजट से उनके मंत्रालय के ढांचे में क्या बदलाव होगा तो उन्होंने मजाकिया लहजे में यही कहा, 'सच कहूं तो मुझे इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता।'
ज्यादातर सांसदों का मानना है कि अगली सरकार बजट में फेरबदल जरूर करेगी। सांसदों ने इस बजट के राजनीतिक इस्तेमाल पर भी सवाल खड़े किए, उनका मानना है कि इससे न तो चुनावों में किसी दल को फायदा मिलेगा और न ही इससे कोई नुकसान होगा।
उम्मीद के मुताबिक अंतरिम बजट को लेकर सबसे अधिक उत्साह कांग्रेस के सांसदों के बीच ही देखने को मिला। पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल ने कहा, 'वित्त मंत्री ने क्या शानदार काम किया है। उन्होंने दिखा दिया कि वैश्विक मंदी के बावजूद हर साल तरक्की हुई है। पांच सालों के दौरान औसतन 6.2 फीसदी की वृद्घि दर देखने को मिली जो राजग सरकार के कार्यकाल के मुकाबले कहीं अधिक है।'
दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कुछ अलग ही अंदाज में बजट की खूबियों के बारे में बात की। उन्होंने कहा, 'सभी मानकों के मुताबिक यह एक अच्छा बजट है। पिछले पांच सालों के संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान करीब 14 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से ऊपर उठे हैं। कृषि क्षेत्र की औसत विकास दर 4 फीसदी रही।' अच्छी खाद्यान्न पैदावार का श्रेय मॉनसून को देने के बजाय उन्होंने कहा, 'सरकार ने किसानों के हाथों में अधिक धन दिया। करीब 7 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण दिया गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया गया। इन सभी चीजों की वजह से विकास हुआ है। दुनिया में कौन सी ऐसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था है जो पांच फीसदी की दर से विकास कर रही है।' उन्होंने कहा कि शिक्षा और अन्य सामाजिक क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे के विकास को देखते हुए साफतौर पर यह कहा जा सकता है कि सरकार की ओर से कोई भी नीतिगत जड़ता नहीं है।
सांसदों ने संक्षिप्त बजट दस्तावेज का अच्छी तरह से इस्तेमाल किया। लोकसभा में चंडीगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाले बंसल ने कहा, 'मैं काफी लंबे समय से एक रैंक-एक पेंशन के लिए कोशिश कर रहा था और मैं इस बात से काफी खुश हूं कि इसे बजट में शामिल किया गया क्योंकि अब मैं अपने क्षेत्र में जाकर लोगों से कुछ कह सकूंगा।' भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने से रोकने के लिए अगले चुनावों में कांग्रेस के संभावित साथी दलों ने वित्त मंत्री की ओर नरम रुख अपनाया। बीजू जनता दल से राज्यसभा सदस्य भतृहरि महताब ने पूछा, 'बजट में दिखाया गया है कि अब ज्यादा पैसा राज्यों की ओर जाएगा। राज्यों और केंद्र शासित राज्यों की योजनाओं को केंद्र की ओर से दी जाने वाली मदद वर्ष 2013-14 के 1,36,245 करोड़ रुपये बजट अनुमान से बढ़ाकर वर्ष 2014-15 के लिए 3,38,562 रुपये कर दिया गया। तो मैं यह कैसे कह सकता हूं कि यह अच्छा बजट नहीं है।' हालांकि उन्होंने योजनागत खर्च में कटौती पर अपनी चिंता भी जाहिर की। उन्होंने कहा कि गैर-योजनागत खर्च में इजाफा भी खतरे की घंटी है। उन्होंने कहा, 'राजकोषीय घाटा कम कैसे हो सकता है जबकि रुझान ऐसा है। यह व्यावहारिक नहीं है।'
उन्होंने कहा कि बिहार और ओडिशा जैसे विकासशील राज्य इस बात से निराश जरूर हैं कि आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन द्वारा विकासशील राज्यों पर पेश की गई रिपोर्ट का कोई प्रभाव बजट में देखने को नहीं मिला। विकास को बढ़ावा देने का यह भी एक तरीका हो सकता है।
बजट पर तीखी टिप्पणी करते हुए लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ से कहा, 'अब तो आप स्प्रे भी इस्तेमाल कर चुके हैं, करने के लिए कुछ भी बाकी नहीं बचा है।' इस त्वरित टिप्पणी का जवाब देते हुए कमलनाथ ने अंतरिम बजट की ओर इशारा करते हुए कहा, 'हम जहां जाते हैं, अपनी छाप छोड़ ही आते हैं। यही हमारी आदत है।'

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आंकड़े दुरुस्त करने का सिलसिला जारी है और अब कहा जा रहा है कि आधार और सुधार से व्यापार घाटा भी घटने लगा है।
आधार को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से नत्थी किया गया है। सेज महासेज और स्मार्टसिटी समय में नागरिकता निलंबित रहेंगे। वर्जित क्षेत्रों में निजता का कोई अधिकार होने का सवाल ही नहीं है और इन घोषित फारेन टेरीटेरी यानी वर्जित क्षेत्रों में न भारतीयदंडविधि लागू होगा और न भारतीय संविधान।
इसी सिलसिले का खुलासा बतौर बिजनेस स्टैंडर्ड में सुरभि अग्रवाल और अदिति दिवेकर ने स्मार्ट सिटी पर अपने आलेख में विकास के साथ निजता के सवाल भी उठाये हैं,जो गौरतलब है। खासकर ये स्मार्टसिटी भी सेज महासेज के शहरी आकार ही होंगे और वर्जित क्षेत्र भी।

इस रपट पर जरुर ध्यान देने की जरूरत हैः
सरकार ने आम बजट में 100 स्मार्ट सिटी के लिए 7,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इससे विशेषकर प्रौद्योगिकी केंद्रित कंपनियों के लिए तमाम अवसर पैदा होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ समय बाद सरकार को इस तरह की परियोजनाओं के कारण उठने वाले निजता के मुद्दे का समाधान करना पड़ सकता है। भारत में अभी तक इस तरह का निजता कानून नहीं है, जिनमें सरकार के लिए निगरानी के वास्ते वर्जित क्षेत्रों का ब्योरा दिया गया हो।
प्रौद्योगिकी से संबंधित मसलों को देखने वाले थिंकटैंक आईटी फॉर चेंज के कार्यकारी निदेशक परमिंदर जीत सिंह ने कहा, 'प्रौद्योगिकी के मसले पर हम खुश हैं, लेकिन इन मसलों को उठाने के लिए यही अच्छा वक्त है।' एक स्मार्ट सिटी की सड़कें, यातायात, बिजली, पानी और निकासी व्यवस्था एक प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म से संबद्ध होती हैं। इन सभी पर एकीकृत केंद्र के माध्यम से नियंत्रण होता है। इससे न सिर्फ बेहतर शहरी नियोजन में मदद मिलती है, बल्कि संसाधनों के इस्तेमाल में भी सुधार होता है। हालांकि इन शहरों की बात करें तो यहां पर घरों में क्लोज्ड सर्किट कैमरों और तमाम उपकरणों के माध्यम से पैनी निगरानी व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। इसके साथ ही कार्यालयों में जानकारियां भेजने के लिए चिप लगानी होंगी, हालांकि इससे निजता से संबंधित चिंता हो सकती है। सरकार नागरिकों के बारे में ज्यादा जानकारियां संग्रहित करना बंद कर सकती हैं, सुरक्षित नहीं रखने की स्थिति में इनका दुरुपयोग हो सकता है।
सूचना प्रौद्यगिकी क्षेत्र के उद्योग संगठन नैसकॉम के अध्यक्ष आर चंद्रशेखर ने कहा, 'हमें जानकारी हासिल करने का अधिकार है, लेकिन अगर सिक्के के दूसरे पहलू पर गौर करें तो यहां निजता का अधिकार खत्म हो जाता है।' पूर्व संचार एवं आईटी सचिव निजता विधेयक पर हुई चर्चाओं का हिस्सा रहे थे, नई सरकार के अंतर्गत इसका भविष्य फिलहाल स्पष्ट नहीं है। इस विधेयक को पहली बार 2010 में तैयार किया गया था और तब से इसके मसौदे में कई बार बदलाव किया जा चुका है। बीते साल दिल्ली मेट्रो में यात्रा कर रहे एक युगल की कैमरा फुटेज इंटरनेट पर लीक हो गई थी, जिससे काफी हायतौबा मची थी। सरकार कितनी जानकारियां रिकॉर्ड कर सकती है, ऐसे डाटा तक किनकी पहुंच हो सकती है, कौन इनका इस्तेमाल कर सकता है और इसके दुरुपयोग पर कितना जुर्माना लगाया जाएगा, ऐसे कई मुद्दे हैं जिनकी व्याख्या होनी जरूरी है।
हालांकि भारत के पास एक सूचना प्रौद्योगिकी कानून है और ऐसे मुद्दों का निबटारा इसके माध्यम से ही किया जाता है, लेकिन