सोनिया पर रंगभेदी टिप्पणी-मनुस्मृति सत्ता का हिंदू साम्राज्यवादी चरित्र ही रंगभेदी है
सोनिया पर रंगभेदी टिप्पणी-मनुस्मृति सत्ता का हिंदू साम्राज्यवादी चरित्र ही रंगभेदी है
संसदीय राजनीति का ताजा स्टेटस सोनिया पर रंगभेदी टिप्पणी नहीं है।
सोने की चिड़िया का पेट चीरने लगी है संसदीय राजनीति और सारे हीरे जवाहिरात देशी विदेशी पूंजी के हवाले
भारत सोने की चिड़िया अब भी है और उस सोने की चिडि़या से मालामाल होने वाले लोग हमें उल्लू बनाते रहे हैं यह कहते हुए कि अंग्रेज सोने की चिड़िया को लूटकर ले गये हैं।
संसदीय राजनीति का ताजा स्टेटस सोनिया के खिलाफ रंगभेदी टिप्पणी नहीं है।
भारतीय मनुस्मृति सत्ता का हिंदू साम्राज्यवादी चरित्र ही रंगभेदी है।
मीडिया में हम लोग खुदै उसी रंगभेद का शिकार हैं। पदोन्नति का वेतनमान मिल रहा है लेकिन पदोन्नति का पत्र नहीं मिल रहा है। जो पदोन्नति नहीं कर सकते वे बाकी सबकुछ कर रहे हैं क्योंकि पदोन्नति हमारी लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट कहते हैं कि नजर रख रहा है मजीठिया लागू करने पर। ग्रेडिंग मनमुताबिक और पदोन्नति का वेतनमान देने के बावजूद पदोन्नति नहीं।
सुप्रीम कोर्ट की खुली अवमानना है और हम अदालत में चले भी जायें तो न्याय हमें मिलना नहीं है। सच सामने है और भारत के सुप्रीम कोर्ट का सच से कितना वास्ता है, हम कहेंगे तो अवमानना हो जायेगी।
सोनिया पर रंगभेदी टिप्पणी पर ऐतराज से पहले भारतीय समाज और जीवन के हर क्षेत्र में, हर शाख पर काबिज उल्लूओं के व्यवहारिक रंगभेद का पहले विरोध तो करें।
रंगभेद से जिनका वर्चस्व बना हुआ है, बोलने लिखने और छपने की आजादी भी उन्हीं की है। महिमा उन्ही की है दसों दिशाओं में।
हम तो घुसपैठिये हैं। पत्रकारिता में चालीस साल बिता देने के बावजूद हम पत्रकारिता में न नागरिक हैं और नागरिक अधिकार हमें हैं। हम लोग शुरु से शंटिंग में हैं। साहित्य में किसी ने घास नहीं डाला और पत्रकारिता में फिर वहीं अश्वेत अछूत हैं।
जब पवित्रतम गाय की यह कथा है तो बाकी देश के बहुजनों की कथा व्यथा का क्या कहने।
सोनिया पर टिप्पणी से जिन्हें तकलीफ हैं, वे हमारे साथ बरते जा रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ जाहिर है कि कभी न बोलेंगे। बोलेंगे तो बात दूर तलक जायेंगी।
बहुजनों को मनुष्य भी जो समझने की भूल न करें, उन्हें सोनिया जी की चिंता ही सता सकती है। जात कुजात गासियां खाने के जनमजात अब्यसत हमें मत सिखाइये कृपया कि रंगभेद क्या बला है। हमारा वास्ता रंगभेद के शिकार पहाडों से भी है। पिघलते ग्लेशियर में दफन होकर भी हमारी हस्ती मिटती नहीं है, इसकी तकलीफ जिन्हें हैं, वे रंगभेद पर पादते हैं।
यह संसदीय राजनीति का दस्तूर भी है कि फर्जी मुद्दों पर ध्यान भटका दो, फिर जिसे छह इंच छोटा करना है उसे अठारह इंच का बना दो।
मसलन भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्ष की ओर से कड़े विरोध का सामना कर रही केंद्र सरकार ने कहा है कि इस मामले में उनको मनाने का प्रयास जारी है। संसदीय कार्य मंत्री एम। वेंकैया नायडू ने बुधवार को पत्रकारों को बताया कि विधेयक में हम विपक्ष के सुझावों को भी शामिल करेंगे। उम्मीद है कि इस मुद्दे पर सभी पक्षों के बीच सहमति बन जाएगी। सभी वरिष्ठ मंत्री विपक्ष के नेताओं को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए अध्यादेश में नौ आधिकारिक संशोधन किए गए हैं। विपक्षी दलों का समर्थन हासिल करने के लिए सरकार और संशोधन को तैयार है।
जाहिर है बिल यह भी पास होकर रहेगा। यूंभी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का कहना है कि भूमि अधिग्रहण बिल में वो सरकार के साथ चर्चा करने के लिए तैयार हैं। आवाज़ संपादक संजय पुगलिया के साथ खास मुलाकात में दिग्विजय सिंह ने कहा कि सरकार बिल में किए गए बदलाव को लेकर सामने आये तो बात जरूर होगी। उन्होंने कहा कि भूमि बिल का श्रेय बीजेपी लेना चाहती है, भूमि बिल पर सबके साथ बात होनी चाहिए। मोदी जी को अपना रवैया छोड़ना होगा। बिल से पहले सरकार को सभी पक्षों से बात करनी चाहिए थी।
पास हो या नहीं फर्क नहीं पड़ता। जो ममता बनर्जी भूमि अधिग्रहण के सख्त खिलाफ हैं, सत्ता में भी वे इस जिहाद की वजह से हैं और असलियत यह है कि उनके राज्य में गांव के गांव फर्जी दस्तावेजों के आदार पर बेदखल हो रहे हैं। मुआवजा या जमीन की कीमत दूसरे लोगों की जेब में। यह महामारी है। हम जानते नहीं हैं कि बाकी राज्यों का फंडा क्या है।
सुंदरवन में डकैती की खबरें तो मीडिया में छपती है लेकिव वहां और बाकी बंगाल में जो प्रामोमोटर बिल्डर सिंडिकेट राज में लोग अपनी जमीन जायदाद से रोज बेदखल हो रहे हैं, उसके लिए कानून का सहारा कुछ नहीं चाहिए।
इस कानून का तकाजा तो विरोध और प्रतिरोध के दायरे में लंबित कारपोरेट योजनाओं को चाली करने से है। कारपोरेट के अलावा जो महाजनी सभ्यता जारी है, उसे न कानून की परवाह है और न व्यवस्था की।
कृपया गूगल मैप पर इंडिया मिनर्ल्स का नक्शा देख ले और फिर समझ लें कि देश की अकूत प्राकृतिक संपदा को पूंजी के हवाले करने की संसदीय राजनीति के बिलियनर मिलियनर रंग बिरंगे लोग आर्थिक सुधारों के लिए क्यों और कैसे कैसे क्या क्या नाटक रच रहे हैं। नरमेध राजसूय के पुरोहितों का समझ लें।
शेयर बाजार को मोदी जमाने में ग्रोथ पच्चीस फीसदी से ज्यादा हो गया है जो हर हाल में बढ़ता जायेगा। सांढ़ों और घोड़ों की बेलगाम दौड़ का खुल्ला मैदान यह देश है।
रिजर्व बैंक का निजीकरण हो गया और मजा देख लीजिये कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआइ) आज 80 साल का हो गया।
इस समावेशी विकास के नतीजे कितने प्रलंयकर हैं, जो मारे जा रहे हैं, उनको नहीं मालूम, बाजार के चकाचौंध में खड़े धर्मांध लोग इसका मतलब कैसे बूझ लेंगे, हमरा सरद्रद लेकिन यही है।
इसी बीच अमेरिका की शह पर संयुक्त अरब सेना शिया संप्रदाय से लड़ने लगी है और ममता बनर्जी और मुकुल राय में सुलह हो गयी है तो विहिप नेता प्रवीण तोगाड़िया पर बंगाल में निषेधाज्ञा लागू हो गयी है।
इसी बीच भारत के गृहमंत्री ने बंगाल की सरजमीं से ऐलान किया है कि वे बांग्लादेशियों को गोमांस खाना बंद कर देंगे।
फिर धर्मोन्मादी तूफान जोरों पर है और देश भर में किसान असमय बरसात से माथे पर हाथ धरे सोच रहे हैं कि आत्महत्या करें या न करें।
पलाश विश्वास


