डॉ . आशीष वशिष्ट


हमारा देश एक सोफ्ट स्टेट है, इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है। पिछले एक दशक में एक के बाद एक हुए आंतकी हमलों ने इस बात को और पुख्ता किया है। बुधवार को मुंबई में हुये सीरियल ब्लास्ट ने सुरक्षा तंत्र की पोल-पट्टी तो खोली ही है, वहीं सरकारी दावों और बयानों की सच्चाई भी पूरे देश के सामने आ गयी है। संसद पर हमले से लेकर ताजा बम ब्लास्ट तक हर बार आंतकी हमले के बाद सरकार ने आंतकवाद से सख्ती से निपटने के बयान तो जरूर जारी किये हैं लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। सरकार चाहे जितने लंबे-चैड़े दावे और कार्यवाही का आश्वासन दे लेकिन आंतकी घटनाएं रूकने का नाम नहीं ले रही हैं। पिछले एक दशक में हुयी आंतकी घटनाओं और उनसे जुड़े नुकसान का लेखा-जोखा किया जाय तो जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। वोट बैंक की गंदी और घटिया राजनीति, अव्यवहारिक, असंवेदनशील और अंगभीर राजनीतिक बयानबाजी देश की जनता को भ्रमित और चिढ़ाती है वहीं आंतकियों का हौंसला भी बुलंद करने का काम करती है। कानूनी दावपेंच और हीला-हवाली के चलते देश की जेलों में बंद आंतकियों का कड़ी सजा और फांसी की सजा न मिल पाना भी आंतकियों और दहशतगर्दो का आत्मबल बढ़ाता है, वहीं आंतकियों को कड़ी सजा न दे पाने के चलते संसारभर में ये मैसेज जाता है कि भारत एक साॅफ्ट स्टेट है। यहां आप आसानी से किसी भी वारदात को अंजाम दे सकते हैं और पकड़े जाने पर जेलों में सरकारी मेहमान नवाजी का मजा ले सकते हैं। असल में आंतक और आंतकियों से सख्ती से न निपटने की लचीली नीति और राजनीति के कारण ही आंतकी हर बार सरेआम वारदात करने में कामयाब हो जाते हैं और सरकार मुआवजा और बनावटी सख्ती दिखाने के अलावा कुछ नहीं करती है। 1993 से 2011 तक मुंबई पर पांच बार आंतकी हमले हुए हैं और इनमें लगभग मृतकों की संख्या लगभग 1658 और घायलों का आंकड़ा 700 के करीब है। गौरतलब है कि पिछले एक दशक में देश भर में हुये आंतकी हमलों में मृतकों और घायलों का आंकड़ा हजारों में है।

नब्बे के दशक के प्रारंभ से जम्मू-कश्मीर में आंतकवादी हिंसा ने अपना सर उठाया। भारत के आंतरिक हिस्सों में जो आंतकवादी गतिविधियों में बढ़ोत्तरी हुई है, उसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएआई की प्रमुख भूमिका है। सीमापार और देश के भीतर पनप रहे आंतकवाद की तारें कहीं न कहीं पाकिस्तान से जुड़ी मिलती हैं। लेकिन विश्व समुदाय और विभिन्न मंचों पर पाकिस्तान की नापाक हरकतों के सबूत सौंपने के बावजूद भी अपने स्वार्थ साधने के लिए समूचे विश्व के ताकतवर देश केवल बयानबाजी और संवेदना प्रगट करने के अतिरिक्त कुछ नहीं करता है। असल में समस्या हमारे तंत्र और व्यवस्था की भी है। इतिहास के पन्ने पलटने पर कई ऐसे वाकये दिखाई देते हैं जिन्होंने भारत को साॅॅफ्ट स्टेट का तगमा दिलाया है। 8 दिसंबर 1989 को तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुत्री डा0 रूबिया सईद का जम्मू कश्मीर लबरेशन फ्रंट के आंतकियों ने अपहरण कर लिया था। रूबिया को अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के लिए तत्कालीन वीपी सिंह की सरकार ने पांच हार्ड कोर आंतकवादियों षेख अब्दुल हमीद, गुलाम नबी भट्ट, नूर मुहम्मद कलवल, मुहम्मद अल्ताम, और जावेद अहमद जरगर को 13 दिसंबर को आजाद किया था। इसी कड़ी में 24 दिसम्बर 1999 को इंडियन एयरलाइन्स के विमान आई सी 814 को जिस तरह अपहरण करके कांधार ले जाया गया और जिस तरह सरकार ने हाई प्रोफाइल तीन आंतकवादियों मुशताक अहमद जरगर, अहमद उमर सैयद शेख और मौलाना मसूद अजहर को रिहा करके अपहरणकर्ताओं के समक्ष घुटने टेके उससे भारत के साॅॅफ्ट स्टेट होने का संदेश संपूर्ण विश्व में गया था। बढ़े हौंसले और बुरे इरादों के साथ 13 सितंबर 2001 को आंतकवादियों ने भारतीय लोकतंत्र के आधार स्तंभ संसद भवनपर दुस्साहसिक हमला करके भारतीय लोकतंत्र को सीधी चुनौती दी। भारतीय संसद पर हुये हमले के पांच दिन बाद अर्थात 18 दिसंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने स्वीकार किया कि भारत को अपनी संसद पर हुए हमले के बाद आत्मरक्षा में जवाबी कार्रवाई करने का वैध अधिकार है, लेकिन भारत और पाकिस्तान से इस मामले में संयम बरतने का अनुरोध किया। अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान पर सख्त रूख अपनाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि श् हमें संयम का उपदेश देने वाले हमारे पड़ोसी देश से पूछे कि यह आंतकवाद का खेल कब तक चलेगा।श् दुनिया के कोने-कोने में फैले आंतकवाद के तार इस्लामिक आंतकवाद से जुड़े हैं, हजारों दस्तावेजों और सुबूतों के बाद भी सरकार सीधे तौर पर कार्रवाई करने से बचती रही है परिणामस्वरूप 26 नवंबर 2008 में आंतकियों ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में आंतक का खुला तांडव किया और तीन दिन तक देश की सुरक्षा एजंेसियों और सरकार को खुली चुनौती दी। इस घटना में एकमात्र जीवित पकड़े गये आतंकी अजमल कसाब को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई तो गयी है, लेकिन लंबी व पेचीदा कानूनी कार्यवाही के कारण अदालत के निर्णय पर पालन हो पाना टेढ़ी खीर है। कसाब के अलावा संसद हमले के आरोपी और फांसी की सजा पाए अफजल गुरू और करीब दर्जन भर दुर्दांत कैदी भारतीय जेलों मंे आराम की जिंदगी बसर कर रहे हैं। असलियत यह है कि आंतकी घटनाओं में बारम्बार एक खास समुदाय का नाम आने से राजनीतिक दल और नेता बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं और सीधे तौर पर आंतक से जुड़े मसलों पर बयानबाजी करने के बजाय इधर-उधर की बातें करके मुख्य समस्या से ध्यान हटा देते हैं। नेताओं को ये लगता है कि आंतकियों पर बयान देने और सख्ती करने से मुस्लिम मतदाताओं में गलत मैसेज जा सकता है और मुस्लिम वोट बैंक दरक सकता है और उन पर सांप्रदायिक होने का ठप्पा लग सकता है। जब देश की आंतरिक सुरक्षा और जान-माल से जुड़े गंभीर मसले पर राजनीतिक दल और नेता रोटिया सेंकना और दहषतगर्दों के खिल