स्वच्छता अभियान को विस्तार देने की आवश्यकता
स्वच्छता अभियान को विस्तार देने की आवश्यकता
नरेन्द्र मोदी सरकार अपने आरम्भिक सौ दिनों में भ्रष्टाचारमुक्त भारत की अपनी घोषणा के प्रतीक रूप में खुले में शौच मुक्त अभियान को जनान्दोलन की तरह संचालित किया है। अब जो कोई भी अखबारों की सुर्खियों में बने रहने के लिए या मोदी की कृपादृष्टि पाने के लिए लालायित रहते आये हैं, उन्हें झाड़ू थामकर फोटो खिचवाने की सुविधाएं देकर देश के मुख्य अभियान में हिस्सेदारी निभाने का अवसर भी जुटा दिया। अखबार वाले खुश हैं कि उन्हें पन्ने रंगने के लिए सिर खपाने की ज़रुरत नहीं पड़ती। फोटोयुक्त समाचार बैठे बैठाये पंहुच रहे हैं और लोग खुश हैं कि उन्हें सिर्फ झाड़ू थाम कर नाम कमाने का ऐसा अवसर केवल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दौर में ही नसीब हो सका है। सरकार खुश है कि कभी कभार दलबल सहित झाड़़ू चलाने से जनता के कई बुनियादी सवाल दरकिनार किये जा रहे है और विरोधी दल सवाल भी नहीं उठा पाते क्योंकि झाड़ू मार संस्कृति उनके विरोध को गंदगी फैलाने वाला कूड़ा मान कर साफ कर देती है। नेताओं के हाथों में झाड़ू देखकर लगता है कि इनकी नीयत भी साफ हो चुकी होगी? लेकिन ऐसा प्रायः होता नहीं है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दौर में तो बिलकुल नहीं क्योंकि हम अपनी संस्कृति की शुद्धता अक्षुण रखने के लिए उसकी गंदगी को दूसरों से छुपाकर रखते हैं वैसे ही मन की गंदगी को भाषणों के पीछे छुपाकर अपने आपको पाकसाफ नागरिक सिद्ध करते आये हैं। अतः इस अभियान की जनान्दोलन के रूप में कामयाबी के लिए इसे विस्तृत फलक पर ले जाने की ज़रुरत है।
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि संप्रग सरकार ने निर्मल भारत नाम से जो अभियान शुरु किया था उसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी आये थे। मैं हिमाचल प्रदेश के मण्डी जि़ला के सफाई अभियान में सक्रिय रूप से जुड़ा था। मण्डी साक्षरता एवं जनविकास समिति इस अभियान की नोडल एजेन्सी के तौर पर काम कर रही थी और जनजागरण द्वारा जनता को घर में शौचालय बनाने के लिए जागरुकता अभियान का जिम्मा समिति को सौम्पा गया। समिति ने भारत ज्ञान विज्ञान समिति के सहयोग से कलाजत्थों में स्थानीय लोक संस्कृति के नाट्यरूप बांठड़ा के अलावा जनसंवाद के अन्य माध्यमों को अपना कर ऐसा माहौल बनाया जिसमें जनता बिना सरकारी सब्सिडी के एक लाख सत्तर हज़ार घरों में निजी शौचालय स्थापित करवा कर सरकारी अभियान में जनसहयोग का अभूतपूर्व उदाहरण पेश किया है।
इस उदाहरण का उल्लेख करने का मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि मोदी सरकार इस अभियान में सिर्फ अफसरों और नेताओं अभिनेताओं को जोड़ रही है। जनता तथा उनसे जुड़े संस्कृतिकर्मियों को जोड़े बगैर इसे जनान्दोलन बनाने की जि़द इसे सफलता से दूर ही रखेगी। इसलिए नरेन्द्र मोदी का सफाई अभियान केवल फोटो अभियान बन कर लुप्त हो जाने के लिए अभिशप्त है।
कांग्रेस सरकार भी इस अभियान के मानवीय पक्ष के प्रति उदासीन रही है। झाड़ू चलाकर हम सड़क तो साफ कर सकते हैं लेकिन हमारी आत्मा में गहरे छिपे हुए जातीय संस्कारों की सफाई कैसे हो सकती है ? इस अभियान को मानवीय चेहरा प्रदान करने के लिए हमें उन लोगों तक पहुंचना है जो गंदगी को उठाकर हमारे घरों सड़कों और दफतरों को साफ सुथरा रखते हैं। क्या आपने भारतरत्न सचिन तेन्दुलकर को झाड़ू चलाते हुए देखा है? तब आपने यह भी ज़रुर देखा होगा कि उनके हाथ मोजों से ढके हुए थे और मुंह पर मास्क लगा हुआ था यानि सफाई कर्मचारी को मानवीय गरिमा देने के लिए ज़रूरी कारवाई है।
मैं समझता हूं कि सचिन जैसा अल्पभाषी व्यक्ति इशारों में काम की बात करने में माहिर है तभी तो उन्होंने मोदी सरकार के सफाई अभियान की कमज़ोरी की ओर संकेत करके यह बता दिया कि सफाई अभियान को मानवीय चेहरा प्रदान करना ज़रूरी है। यह चेहरा फोटो सैशन में जुटे नेता अभिनेता और अफसरों से ज़्यादा उन लोगों की ज़रुरत है तो रोटी कमाने के लिए गंद में हाथ डालते हैं। सैप्टिक टैंक में उतर कर उसे साफ करते हैं। ऐसा करते हुए उन्हें अत्यंम अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। हम उसकी कल्पना करके ही नाकभौंह सिकोड़ने लगते हैं और वे हैं जो जि़न्दा रहने की कोशिश में यह सब अपना काम समझ करने के लिए विवश कर दिये गये हैं। इस अमानवीय यातना से उन्हें मुक्त करने के लिए यदि कुछ करोड़ रूपयों का प्रावधान करना पड़े तो गुड गवर्नेंस के नारे को सार्थकता देने के नाम पर जुटाया जा सकता है। वैसे भी इस मद पर उतना पैसा खर्च नहीं होगा जितना सरकार इस अभियान के विज्ञापनों पर खर्च कर रही है।
सवाल बजट का नहीं राजनीतिक इच्छाशक्ति का है जिसका फिलहाल अभाव ही लगता है।
सफाई अभियान का वास्तविक विस्तार तब होगा जब कस्बों शहरों और महानगरों में हररोज़ हज़ारों टन कूड़ा तैयार होता है उसका वैज्ञानिक तकनीक से खाद जैसे उपयोगी उत्पाद में रूपान्तरण करने के लिए संयत्र स्थापित किये जायें। इस प्रकार की व्यवस्था के बिना इकट्टा किया गया कूड़ा एक जगह से हटाकर दूसरी जगह फैंक देने से हम अपने घर का कूड़ा दूसरों के दरवाज़े के सामने रखने जैसा हो जायेगा। इसलिए बेहतर होगा कि सरकार स्वच्छता अभियान का हल्ला मचाने के बजाये उसके विधिवत निपटान की व्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित करे। कारपोरेट सैक्टर के सामाजिक दासित्व के नाम पर जो प्रावधान किया गया है उसका उपयोग ऐसे संयत्र स्थापित करने के लिए किया जा सकता है। इससे इस मद पर खर्च होने वाली का सामाजिक ऑडिट भी हो सकेगा।
O- सुन्दर लोहिया
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